रांची : कांग्रेस 100 साल पहले भी महंगाई व चरमराई अर्थव्यवस्था के खिलाफ आंदोलन किया : रामेश्वर

रांची।कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सह खाद्य आपूर्ति एवं वित्त मंत्री रामेश्वर उरांव ने अखिल भारतीय कांग्रेस द्वारा जारी धरोहर श्रृंखला की 18वीं वीडियो सोशल मीडिया पर अपलोड कर देश के वर्तमान पीढ़ियों को अवगत कराने का काम किया। उरांव शनिवार को राष्ट्र निर्माण की अपने महान विरासत कांग्रेस की श्रृंखला धरोहर की उन्नीसवीं वीडियो को अपने सोशल मीडिया पर जारी करने के बाद पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा कि 1915 से 1919 तक के कांग्रेस अधिवेशन में देश में हिंदू मुस्लिम एकता के जरिए एक बड़े आंदोलन की पृष्ठभूमि तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

आज से ठीक 100 साल पहले आज ही की तरह देश में विकट समस्या थी, महंगाई चरम पर थी, जनता पर अनावश्यक टैक्स का बोझ लाद दिया गया था, महामारी से हजारों लोगों की जानें चली गई थी, अहंकारी ब्रिटिश हुकूमत रोलेट कानून जैसे हथकंडों से देश की आवाज दबा रही थी । 1919 के मोंटेग्यू चेम्सफोर्ड जैसे सुधारों के नाम पर मताधिकार सीमित कर दिया गया। प्रांतों की शक्तियां कम कर दी गई, कुल मिलाकर ब्रिटिश हुकूमत का मकसद जनता का शोषण करना था। इसी बीच फरवरी 1920 में गांधी ने पंजाब में ब्रिटिश कृत्यों की निंदा करते हुए जालियांवाला बाग नरसंहार के लिए ब्रिटिश हुकूमत को माफी मांगने के लिए कहा अन्यथा असहयोग आंदोलन की चेतावनी दे डाली। 31 अगस्त 1920 को आंदोलन शुरू होना तय हुआ, लेकिन दुर्भाग्यवश एक अगस्त को बाल गंगाधर तिलक का निधन हो गया, लिहाजा सितंबर 1920 में कोलकाता में कांग्रेस का विशेष अधिवेशन बुलाया गया। इस अधिवेशन में स्वराज्य की स्थापना होने तक असहयोग कार्यक्रम चलाने की सहमति बनी।

कांग्रेस के इसी विशेष अधिवेशन में विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार,खादी का प्रयोग, चरखा काटना ,सरकारी शिक्षण संस्थाओं, विधान परिषदों ,न्यायालयों का बहिष्कार और पंचायतों के माध्यम से न्याय का निर्णय हुआ। साथ ही सरकारी उपाधि को लौटाने, सरकारी सेवाओं को छोड़ने, सरकारी करों का भुगतान न करने, सरकारी तथा अर्ध सरकारी उपक्रमों का बहिष्कार का भी निर्णय लिया गया। इसके साथ ही हिंदू मुस्लिम एकता को प्रोत्साहित करने ,छुआछूत को दूर करने और अहिंसा को सर्वोपरि रखा गया। उराँव ने कहा एक तरह से देखा जाए तो 1920 का यह कांग्रेस अधिवेशन असहयोग आंदोलन की यात्रा में सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव साबित हुआ।अभी इन प्रस्तावों के जमीनी असर से ब्रिटिश हुकूमत की नींद धुआँ धुआँ होना बांकी थी, अभी तो असहयोग आंदोलन का रूप सामने आना बांकी था।
मंत्री आलमगीर आलम ने कहा कि कोलकाता में 1920 के कांग्रेस अधिवेशन में असहयोग कार्यक्रम चलाकर स्वराज की स्थापना तक सरकारी सेवाओं, विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने का निर्णय लेकर अंग्रेजी हुकूमत को कड़ी चेतावनी दी। हमारे धरोहर के इस एपिसोड में असहयोग आंदोलन के संघर्ष की कहानी को करीब से समझने की आवश्यकता है।
मंत्री बादल पत्रलेख एवं बन्ना गुप्ता ने कहा कि गांधी के नेतृत्व में चलाया जाने वाला यह प्रथम जन आंदोलन था। इसमें असहयोग और व्यास काल की नीति अपनाई गई। इस आंदोलन का व्यापक जनाधार था, शहरी क्षेत्र से मध्यम वर्ग तथा ग्रामीण क्षेत्र में किसानों और आदिवासियों का इसे व्यापक समर्थन मिला। इसमें श्रमिक वर्ग की भी भागीदारी थी इस प्रकार यह प्रथम जन आंदोलन बन गया।

Related Articles

Back to top button