गोरखपुर : सीएम सिटी में सब्‍जी बेचने को मजबूर बास्केटबॉल का नेशनल प्‍लेयर

गोरखपुरः वैश्विक महामारी कोरोना ने जीवन स्‍तर में किस कदर बदलाव के साथ बहुतों का करियर भी दांव पर लगा दिया है. इसका एक जीता-जागता उदाहरण मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ के शहर गोरखपुर में देखने को मिल सकता है. जी हां, बॉस्‍केटबाल के नेशनल जूनियर खेल चुके खिलाड़ी को यहां तंगहाली की वजह से सब्‍जी का ठेला लगाना पड़ रहा है. चाय-पान की दुकान चलाने वाले पिता की दुकान जब लॉकडाउन में बंद हो गई, तो खर्च चलाना मुश्किल हो गया. लेकिन, जिस पिता ने बड़े अरमानों के साथ बेटे का करियर संवारा था, उसके सपने भी बेटे के सपनों के साथ चकनाचूर हो गए हैं.

गोरखपुर के प्रौद्योगिकीय विश्‍वविद्यालय रोड पर मोतीराम अड्डा के आगे जंगल सिकरी बाईपास रोड के रहने वाले सुरेन्‍द्र गुप्‍ता बचपन से ही खेल-कूद में आगे रहे हैं. चार भाईयों में होनहार सुरेन्‍द्र बीए दितीय वर्ष के छात्र भी हैं. वे खुश होते हुए बताते हैं कि उन्‍होंने मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ के महाराणा प्रताप इंटरमीडिएट कालेज से 12वीं पास किया है. उनके हाथों पुरस्‍कार भी पा चुके हैं. कद 5’.9’’ होने के बावजूद सुरेन्‍द्र ने बॉस्‍केटबाल में करियर बनाने की ठानी. बहुत से सीनियर खिलाडि़यों को रेस में पीछे छोड़ते हुए, वो कामयाबी की सीढ़ी चढ़ने लगे.

उनकी शुरुआत साल 2013-14 में हुई. उसे स्‍टेडियम में प्रवेश मिला. अंडर-17 यूपी टीम में उनका चयन हुआ. पहली नेशनल चैंपियनशिप 7 से 14 अक्‍टूबर 2014 को चंडीगढ़ में खेली. मई 2016 में दूसरी चैंपियनशिप और तीसरी जूनियर नेशनल चैंपियनशिप 2017-18 में भुवनेश्‍वर में खेलने का मौका मिला. उन्‍होंने बताया कि लॉकडाउन की वजह से पिता की चाय-पान की दुकान बंद हो गई. जब अनलॉक में खुली, तो आमदनी न के बराबर हो गई. ऐसे में खर्च चलाना मुश्किल होने लगा. वे कहते हैं कि खिलाड़ी कभी बैठ नहीं सकता है. यही वजह है कि उन्‍होंने सब्‍जी का ठेला लगाने की ठानी. उनका कहना है‍ कि खिलाड़ी के लिए कोई काम बड़ा या छोटा नहीं होता है.

सुरेन्‍द्र ने बताया कि उनके इस फैसले से उनके परिवार और पिता रामवृक्ष को धक्‍का तो लगा है. लेकिन, लॉकडाउन की वजह से खेल ठप पड़ा है. ऐसे में रोजगार की जरूरत उन्‍हें रही है. वे कहते हैं कि उन्‍हें इस बात का मलाल तो हैं कि वे राष्‍ट्रीय खिलाड़ी होने के बाद भी सब्‍जी बेचने को मजबूर है. लेकिन, फिर भी वे रोज एक से डेढ़ घंटे का समय निकालकर प्रैक्टिस करते हैं. वे आगे खेलना भी चाहते हैं. सब्‍जी बेचने के इस काम में उन्‍हें कोई शर्म नहीं है.

वे कहते हैं कि आज उनके पास कई खिताब हैं. लेकिन, एक ढंग की नौकरी नहीं है. सरकार को कोई ऐसा इंतजाम करने की जरूरत है, कि उनके जैसे राष्‍ट्रीय स्‍तर के खिलाड़ी को इस तरह से सड़क पर ठेला लगाकर सब्‍जी बेचने को मजबूर न होना पड़े. वे कहते हैं कि बहुत से लोग ये नहीं जानते हैं कि वे राष्‍ट्रीय स्‍तर के खिलाड़ी हैं. वे अपने खेल के बारे में सब्‍जी खरीदने आने वाले लोगों को बताना नहीं चाहते हैं. क्‍योंकि इसके लिए उन्‍हें शर्मिंदगी झेलनी पड़ेगी.

सुरेन्‍द्र के पिता रामवृक्ष गुप्‍ता देवरिया बाईपास पर जंगल सिकरी बाईपास पर चाय-पान की दुकान चलाते हैं. रामवृक्ष ने घर के ठीक सामने टूटी-फूटी सी इसी दुकान के सहारे सुरेन्‍द्र को न सिर्फ बॉस्‍केटबाल में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्‍साहित किया. बल्कि उसे हॉस्‍टल भी भेजा. हालांकि उन्‍हें इस बात का अफसोस है कि लॉकडाउन के कारण उनके होनहार बेटे सुरेन्‍द्र को सब्‍जी का ठेला लगाने को मजबूर होना पड़ा है. लेकिन, इस बात का विश्‍वास भी है कि वो एक दिन फिर अपनी काबिलियत और मेहनत के दम पर बॉस्‍केटबाल का राष्‍ट्रीय फलक पर चमकता हुआ सितारा बनेगा.

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