कृष्णा जन्माष्टमी : जानिए भगवान श्री कृष्ण ने 16 हजार कन्याओं से विवाह क्यों रचाया था

जो मुरली की धुन पर जीवन संवारता है…मिश्री की मिठास को रिश्तो में घुलता है..चोरी कर माखन खाता है…..और बंसी बजाकर सबको नाचाता है…गोकुल में बसता है…लेकिन वृंदावन में रास राचाता है। अब आप समझ ही गए होंगे…कि आखिर हम किसकी बात कर रहे है। जी हां आज मुरली बजैया, रास रचैया, देवकी और यशोदा के नटखट लाल का जन्मदिन है। जन्माष्टमी पूरा देश धूमधाम से मना रहा है। बाल गोपाल के कदमो से घर रौशन हो जाता है। खुशियों के दीप जलते है। मुरली की मिठास, माखन का स्वाद और राधा रानी के प्यार से ही बनता है यह जन्माष्टमी का त्यौहार।

कहा जाता है कि लीला नगरी गोकुल की हर गोपी कृष्ण के प्रेम में दीवानी थी। इन सबके साथ कृष्ण ने महारास रचाया था। जिसे प्रेम का महापर्व कहा जाता है। इसी तरह मथुरा में उनके राजकीय वैभव की गाथा में रूक्मणी समेत कितनी ही रानियों का वर्णन मिलता है। एक कथा ऐसी भी आती है। जिसमें कृष्ण का एक साथ 16 हजार कन्याओं से विवाह करने का वर्णन मिलता है।

यह उस समय की बात है जब कृष्ण कंस का वध कर मथुरा के राजा बन चुके थे। सब कुछ ठीक चल रहा था । प्रजा सुखी और संपन्न थी और हर तरफ आनंद का माहौल था। इसी समय श्री कृष्ण को एक सूचना मिली कि कई राज्यों से कुमारी कन्याओं का हरण किया जा रहा है कृष्ण को पता चला कि मानसिक रूप से बीमार एक व्यक्ति इन कन्याओं का हरण बलि देने के लिए कर रहा है और इनकी संख्या बहुत अधिक है।

भगवान कृष्ण ने सभी कन्याओं को मुक्त कराकर उनके घर भेज दिया । इसके साथ ही उस व्यक्ति को मृत्युदंड भी दिया। अब यहीं से असल कहानी शुरू होती है।

कृष्ण ने जिन कन्याओं को मुक्त कराया उनकी संख्या 16 हजार थी। इन कन्याओं को अपनो से बिछड़े काफी वक्त हो गया था और इस वजह से ये दयनीय जीवन जी रही थी।

ये कन्याएं जब अपने घर पहुंचीं तो उनके घरवालों ने उन्हें अपनाने से मना कर दिया। उनके माता-पिता का कहना था कि अब उन कन्याओं का चरित्र कलंकित हो गया है। अब समाज उन्हें अपना नहीं सकता और उन्हें घर में शरण देकर वे समाज में अपमान नहीं झेल सकते। अपनी रोती कलपती कन्याओं को देखकर भी घर वालों का दिल नहीं पसीजा और उन्होंने जवाब दे दिया कि जिस कृष्ण ने तुम्हें बचाया उसी से पूछो कि तुम्हें कहां रहना है।

घर से ठुकराए जाने पर ये सभी कन्याएं एक एक कर मथुरा जा पहुंची और कृष्ण से मदद की गुहार लगाने लगीं। भगवान कृष्ण ने जब सारी बात सुनी तो वे द्रवित हो उठे। उन्होंने कहा कि दयनीय जीवन झेल रही अपनों की याद में तरस रही इन कन्याओं का क्या दोष ? क्यों उन्हें उस अपराध का दंड दिया जा रहा है जिसमें इनकी भागीदारी है ही नहीं। अगर कोई किसी का अपहरण कर ले तो इसमें पीडि़त का क्या दोष।

कृष्ण के समझाने पर भी कन्याओं के अभिभावक उन्हें यह कहकर अपनाने को तैयार नहीं हुए कि अब उनका मान चला गया है। इस बात से कृष्ण क्रोधित हो उठे और अपनी लीला के द्वारा 16 हजार रूपों में प्रकट हुए। इसके बाद जो हुआ। उसे कृष्ण की अगदभुत लीला कहा जाने लगा। कृष्ण ने हर एक कन्या का हाथ थाम और उनसे विधिवत विवाह किया और उसे सौभाग्य का वरदान दिया।

कहा जाता है….कि जैसे ही कृष्ण ने इन कन्याओं से विवाह किया। वैसे ही इनके माता-पिता इन्हें अपनाने को तैयार हो गए। इस विवाह के बाद वे बड़े गर्व से बताते कि मथुरा के राजा कृष्ण उनके दामाद हैं। इस तरह 16 हजार कन्याओं को समाज में मान दिलाने के लिए कृष्ण ने महाविवाह संपन्न किया।

लेकिन अक्सर यह सवाल भी उठता है कि जब भागवान कृष्ण इतनी सारी गोपिकाओ के साथ रास-लीला करते थे। तो कृष्ण को एक ब्रह्मचारी के रूप में क्यों जाना जाता है। तो हम आपको बता दें कि कृष्ण हमेशा से ब्रह्मचारी थे। ब्रह्माचारी का अर्थ होता है। भागवान के रास्ते पर चलना, भले ही आप किसी भी मजहब से हों । आपको हमेशा यही बताया गया और आपका विवेक भी आपको यही बताता है कि अगर भगवान जैसा कुछ है या तो वह सर्वभौमिक है या फिर वह है ही नहीं..
। ब्रह्मचर्य का अर्थ है सबको अपने भीतर समाहित करने का रास्ता।

कृष्ण में शुरू से ही सब कुछ अपने भीतर समाहित कर लेने का गुण था। आपको याद होगा कि कृष्ण नबालपन में अपनी मां को जब यह दिखाने के लिए अपना मुंह खोला था कि वह मिट्टी नहीं खा रहे हैं तभी उनकी मां ने उनके मुंह में सारा ब्रह्मांड देखा था यानि तब भी उनके अंदर सब कुछ समाया हुआ था।

जब वे गोपियों के साथ नाचते थे। तब भी सब कुछ उनमें ही समाहित था। उन्होंने कहा भी है ’मैं हमेशा से ही ब्रह्मचारी हूं और हमेशा सदमार्ग पर ही चला हूं। गोपियां उनके प्रेम में सम्मोहित रहती थीं। उन्होंने हमेशा इस नाते का मान रखा।

इस तरह श्री कृष्ण ने कई लीलाएं दिखाई। आज के दिन उनकी इन्ही लीलाओ का गुणगान किया जाता है। जन्माष्टमी भारत में हीं नहीं बल्कि विदेशों में बसे भारतीय भी आस्था और उल्लास से मनाते हैं। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर मथुरा नगरी भक्ति के रंगों से सराबोर हो उठती है। तो सारे मंदिरों में झांकियां सजाई जाती है और भगवान कृष्ण को झूला झुलाया जाता है।

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