मृतक के भी होते हैं अधिकार, जानिए कोरोना काल में क्यों उठी इसकी मांग

कोरोना काल में लगातार मृतकों से दुर्व्यवहार की खबरें आती रहीं. संक्रमण से मौत के बाद खुद परिजन भी मृतक का अंतिम संस्कार करने से कतराते दिखे और लाशें जहां-तहां फेंक दी गईं. यही देखते हुए मृतकों के अधिकार की बात उठ रही है. मृत शरीर के भी अधिकार हैं, जिसमें सम्मान से अंतिम संस्कार समेत कई दूसरी बातें शामिल हैं.

मृतक के हक की बात करते हुए सबसे पहले तो ये समझना जरूरी है कि क्या मृत शरीर भी कोई व्यक्ति है या फिर वो मौत के बाद वस्तु बन जाता है! इस बारे में न्यूजीलैंड के कानूनविद और शोधार्थी सर जॉन सेलमंड ने एक थ्योरी दी थी, जिसे वैश्विक स्तर पर माना जाता है. इसे सेलमंड थ्योरी भी कहते हैं. इसमें एक व्यक्ति को परिभाषित करते हुए कहा जाता है कि जन्म से लेकर मृत्यु तक कोई इंसान व्यक्ति की श्रेणी में आता है. उसके पास सम्मान से जीने, रहने और मौत के बाद भी सम्मान से अंतिम संस्कार का हक होता है.

जनरल क्लॉजेस एक्ट (General Clauses Act) के सेक्शन 3(42) में भी व्यक्ति की यही परिभाषा दी गई है यानी वो शख्स जिसे कानूनी अधिकार मिलें हों और जिसकी कानूनी जिम्मेदारियां भी हों. मौत के साथ ही व्यक्ति की कानूनी जिम्मेदारियां और अधिकार खत्म हो जाते हैं लेकिन मौत और अंतिम संस्कार तक ये जस के तस बने रहते हैं.

मृतक की वसीयत को भी काफी गंभीरता से लिया जाता है और उसका पूरी तरह से पालन हो सके, कानून ऐसी कोशिश करता है. इंडियन पीनल कोड भी इससे अलग नहीं. वो ध्यान रखता है कि मृतक की आखिरी इच्छा का सम्मान हो और किसी भी तरह से उसकी छवि को धक्का न लगे. यही कारण है कि अगर कोई व्यक्ति या संस्था, मृतक की इमेज को चोट पहुंचाने की कोशिश करे तो कानून समेत मृतक के परिजन इसपर मानहानि का केस कर सकते हैं. बता दें कि जीवित व्यक्ति भी अपनी छवि खराब होने पर मानहानि का मामला दर्ज करवा सकता है.

मृतकों के साथ अभी इस तरह की खबरें भी आ रही हैं कि मौत के बाद उनके गहने गायब हो गए. कई बार मृत शरीर के साथ यौन हिंसा जैसी बातें भी दुनिया के कई हिस्सों से आती रही हैं. मृत शरीर के साथ यौन हिंसा को नेक्रोफीलिया कहते हैं. ये एक प्रवृति है, जिसे आमतौर पर अपराधी या बीमार मानसिकता के लोग करते हैं. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) और अमेरिकन साइकेट्रिक एसोसिएशन ने इसे पैराफीलिया भी कहा है. ये भी कानून की नजर में भयंकर अपराध है

कानून किसी भी तरह से मृत शरीर के साथ हिंसा या खराब व्यवहार की इजाजत नहीं देता है. खासकर यौन हिंसा या शरीर के साथ क्रूरता के लिए देशों में अलग-अलग सजाओं का प्रावधान है. जैसे न्यूजीलैंड में मृतक के साथ किसी तरह की हिंसा करने वाले को 2 साल की सख्त सजा और जुर्माना देना होता है. अमेरिका, ब्रिटेन और दक्षिण अफ्रीका में भी इस तरह की सजा है.

भारत में बीते कुछ सालों में शवों से यौन हिंसा जैसी घटनाएं बढ़ीं. कुछ सालों पहले उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में शव खोदकर तीन लोगों ने एक युवती से गैंगरेप किया. साल 2006 में नोएडा में सीरियल किलिंग की खबर आई, जिसमें एक बिजनेसमैन और उसका सहयोगी महिलाओं और बच्चों के शवों से बलात्कार करते थे.

मृत शरीर से यौन हिंसा की घटनाएं बढ़ने के बाद भी हमारे यहां इसके खिलाफ कोई पक्का कानून नहीं. हालांकि IPC की धारा 377 में अननेचुरल सेक्स के लिए सजा दी जा सकती है.

वहीं IPC के सेक्शन 297 के तहत मौत के बाद किसी का उसकी आस्था या धर्म के मुताबिक अंतिम संस्कार न होने पर सजा का प्रावधान है. या फिर अगर मृतक के शरीर से छेड़छाड़ हो या अंतिम संस्कार में बाधा डालने की कोशिश हो तो भी एक साल की कैद और जुर्माने का नियम है.

भारत में सेक्शन 21 के तहत मृतक के सारे अधिकार आते हैं. इसमें सबसे जरूरी हिस्सा ये है कि मृतक को हर हाल में गरिमा से इस दुनिया से आखिरी विदा मिलनी चाहिए. यानी उसके शरीर से बगैर किसी छेड़छाड़ उसका अंतिम संस्कार हो. वैसे इसमें ऑर्गन डोनेशन की छूट रहती है अगर मृतक ने ऐसी इच्छा जताई हो या फिर उसके परिजन इसकी अनुमित दें तो. बेघर और अनाम मृतकों के लिए भी कानून यही नियम लागू करता है कि अगर उसके शरीर या कपड़ों से धर्म की पहचान हो सके, तो उसी मुताबिक अंतिम क्रिया हो.

मृतक के अंतिम संस्कार के बाद भी ये नियम लागू रहता है. खासकर अगर उसे दफनाया गया हो तो उसकी कब्र के साथ कोई छेड़खानी नहीं होनी चाहिए, जब तक कि खुद कोर्ट किसी संदिग्ध मामले की जांच के लिए ऐसा आदेश न दे. यानी अंतिम संस्कार किए जाने से पहले शरीर के अधिकार मृतक के परिजनों के पास होते हैं, लेकिन इसके बाद लाश कानून की जिम्मेदारी हो जाती है.

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