सिंगल प्लास्टिक से बनी तमाम वस्तुएं एक धीमे जहर की तरह ना केवल हमारे वातावरण को जहरीला कर रही हैं!

सिंगल यूज प्लास्टिक से बनी बहुत सी चीजों पर बैन लग गया है लेकिन बिना सामाजिक जागरूकता के इस बैन की कामयाबी संभव नहीं लगती।

अनु जैन रोहतगी


सिंगल यूज प्लास्टिक से बनी बहुत सी चीजों पर बैन लग गया है लेकिन बिना सामाजिक जागरूकता के इस बैन की कामयाबी संभव नहीं लगती। जरूरत है सिंगल यूज प्लास्टिक को लोगों के दिलों, घरो, काम की जगह से पूरी तरह से निकालने, इसके निर्माण पर पूरी तरह से बंद लगाने के लिए कुछ पहलुओं पर गंभीरता से विचार करने की।

यूनाइटेड नेशन्स की एक रिपोर्ट के अनुसार विश्वभर में हर साल 300 मिलियन टन प्लास्टिक बनता है जिसमें से लगभग पचास फीसदी एक बार इस्तेमाल करके फैंक दिया जाता है। देश में भी सेंट्रल पोलूयूशन कंट्रोल बोर्ड आफ इंडिया की एक रिपोर्ट बताती है कि हर साल यहां 3.3 मिलियन मैट्रिक टन प्लास्टिक कूड़ा निकलता है जो लगातार बढ़ रहा है।

सिंगल प्लास्टिक से बनी तमाम वस्तुएं एक धीमे जहर की तरह ना केवल हमारे वातावरण को जहरीला कर रही हैं बल्कि मानव और धरती पर रहने वाले तमाम जीव-जन्तुओं में बढ़ती बीमारियों और मौत का कारण भी बन रही हैं। आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि सिंगल यूज प्लास्टिक से बने बैग का औसतन इस्तेमाल सिर्फ 20 मिनट होता है लेकिन इसको नष्ट होने में 400 से 1000 साल लग जाते हैं। इसकी रिसाइकलिंग नहीं होती और समय के साथ सिंगल प्लास्टिक से बना तमाम सामान धीरे-घीरे सुक्ष्म टुकड़ों में टूटता रहता है और हमारे जल-वायु,मिट्टी को प्रदूषित करता रहता है।

इसी बढ़ते प्रदूषण की वजह से जहां इंसान कईं तरह के कैंसर, इंफर्टिलिटी, सांस की बीमारियां, नसों में रूकावट की समस्याओं का तेजी से शिकार हो रहे हैं, वहीं हमारे जीव-जंतु भी सिंगल प्लास्टिक के कारण अपनी जान गवां रहे हैं।

एक अनुमान के अनुसार प्लास्टिक के कारण हर साल एक से दो लाख समुद्री जीव और दस लाख समुद्री पक्षी मर जाते हैं। इसी कारण समुद्र की लगभग 700 किस्में लुप्त होने के कगार पर हैं।

वल्ड इकनोमिक्स फोरम के अनुसार इस समय हमारे समुद्रों मे लगभग 150 मिलिटन टन प्लास्टिक तैर रहा है। यही हाल रहा तो वर्ष 2050 तक पहुंचते-पहुंचते समुद्रों में मछलियों से ज्यादा प्लास्टिक हो जाएगा।

कछुए, समुद्री चिड़ियां, मछलियां, व्हेल समुद्र में इकट्ठे प्लास्टिक को अपना खाना या दुश्मन समझकर खा जाते हैं जिससे दम घुटने, पचा ना पाने और पेट में जमा प्लास्टिक उन्हें कईं बीमारियों को शिकार बनाता है और बहुतों की जान का कारण बन जाता है।खतरनाक बात ये है कि मछलियों आदि के पेट में मौजूद प्लास्टिक के सूक्ष्म टुकड़े इंसान तक पहुंच जाते हैं और उन्हें बीमार कर रहे हैं।

 

ऐसे में जरूरी है कि बहुत जल्द से जल्द हम सबको सिंगल प्लास्टिक के विकल्प सामानों के बारे में जागरूक होना होगा और दूसरी तरफ लघु उघोगों को इन्हें बनाने के लिए हर संसाधन उपलब्ध कराने होंगे।

आल इंडिया प्लास्टिक मैन्यूफैक्चर्स एसोसिएशन की माने तो सिंगल प्लास्टिक से बनी वस्तुओं के बैन होने से देश में मौजूद लगभग 100,000 छोटे और मध्यम पंजीकृत उघोग बंद हो रहे हैं और इसमें काम करने वाले लगभग दस लाख लोग सीधे तौर पर बेरोजगार होने के कगार पर हैं। । हालांकि इनमें से बहुतों ने कुछ समय पहले से ही सिंगल प्लास्टिक के विकल्प के तौर पर मौजूद स्टील, बैंबू, सिलिकान, पाॅटरी, सैरामिक के अलावा , कपड़ा , जूट, बायोप्लास्टिक का इस्तेमाल करके कटलरी, बैग, बोतल, मग, तथा कईं और चीजें बनानी शुरू कर दी हैं और बहुत से लोगों का रोजगार बच गया है।

लेकिन ये उधोग भी कईं बड़ी समस्याओं से जूझ रहे हैं और सरकार से इसका हल चाहते हैं। इन चीजों को बनाने के लिए कच्चे सामान बहुत हद तक बाहरी देशों से आता है। उपलब्धता की कमी तो है ही साथ ही नई मशीनरी, नए संसाधन जुटाने से निर्माण मूल्य ज्यादा आता है। इसलिए सरकार को लघु उधोगों को इस संकट से उबारने के लिए बड़ें पैमाने पर वितीय सहायता देनी चाहिए साथ ही कच्चे माल के आयात पर टैक्स में कमी करने की इनकी मांग पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।

हालांकि सरकार भी सिंगल यूज प्लास्टिक के विकल्प की चीजों से सामान बनाने वाले बहुत से स्टार्ट अप को वितीय सहायता दे रही है। छोटे और लधु उधोगों मंत्रालय ने सेंट्रल इंस्टीट्यूट आफ पैट्रोकैमिक्ल्स इंजीनियरिंग इन उधोगों की समस्या जानने, उन्हें नया सामान बनाने की ट्रेनिंग देने के लिए देशभर में कार्याशालाओं की शुरआत की है।

बैंबू से बने टूथब्रश, स्टील, कांच या मिट्टी के गिलास, पानी की बोतल, इको फ्रेंडली काफी मग, बैंबू या लकड़ी से बनी कटलरी , जूट और कपड़े के बैग बहुत से ऐसे विकल्प मौजूद हैं जिनसे हम भी अपनी दिनचर्या से आसानी से सिंगल प्लास्टिक को अलग कर सकते हैं। मुशिकल भी है और महंगा भी। लेकिन सिंगल प्लास्टिक के खतरनाक नुकसान को देखते हुए इसे बनाने वाले और इसका इस्तेमाल करने वाले थोड़ा बहुत त्याग, नुकसान झेल सकते हैं।

बाहर देशों में सरकार और पब्लिक मिलकर ही सिंगल प्लास्टिक से बनी चीजों को पूरी तरह से खत्म कर रही है, जैसे कि पोलैंड में घास को खास तरह से प्रोसिस कर पैकिंग के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है , वहीं थाइलैंड में केले के पत्तों और बैंबू की पैंकिंग को बढ़ावा दिया जा रहा है। माना जाता है कि विश्वभर में इस्तेमाल होने वाला प्लास्टिक में लगभग 40% फीसदी सिंगल प्लास्टिक से बना सामान होता है, तो सोचिए इसको बैन होने का एकदम से क्या असर होगा। पहले दिन से ही सड़कों पर फैला कचरा नहीं दिखेगा, कूड़ेघर और लैंडफिल खाली होंगे, मिट्टी के साथ-साथ हवा और पानी प्रदूषित नहीं होगा और सबसे ज्यादा हमारे नाली और बड़े नालों नहीं रूकेगे, समुद्र और नदी सुरक्षित होंगे।

ये काम अकेले सरकार , सरकारी नीतियां या कानून नहीं कर सकता है। डिमांड और सप्लाई की चेन, उपभोक्ता का दृढ़ संकल्प ही तोड़ सकता है।

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