स्टाफ नर्स विमल के प्रयास से थारू गांवों में गूंजी किलकारियां, अपनी मेहनत से बनाई अलग पहचान

बलरामपुर । मरीज का इलाज डाक्टर करता है लेकिन उसकी देखभाल का जिम्मा नर्स संभालती है। एक अच्छी नर्स बनने के लिए त्याग की भावना होना ही जरूरी नहीं बल्कि अच्छी ट्रेनिंग और तजुर्बा होना भी काफी जरूरी होता है। अपने इसी तजुर्बे के सहारे एक स्टाफ नर्स भारत नेपाल के सीमावर्ती स्वास्थ्य केन्द्र पर लोगों को खुशियां बांट रहीं हैं। केन्द्र पर इनकी तैनाती से ना सिर्फ संस्थागत प्रसव को बढ़ावा मिला है बल्कि थारू बाहुल्य गांवों के लोगों का विश्वास भी इनके प्रति बढ़ा है।

थारू विकास परियोजना स्वास्थ्य केन्द्र विशुनपुर विश्राम में तैनात स्टाफ नर्स विमल कुमारी पटेल को थारू जनजाति के लोग बिटिया कहकर बुलाते है। विमल पर ग्रामीणों ये विश्वास ऐसे ही नहीं बढ़ा इसके लिए उन्होने कड़ी मेहनत भी की है। 19 नवम्बर 2012 को बस्ती जिले की रहने वाली 22 वर्षीय विमल की तैनाती सामुदायिक स्वास्थ केन्द्र पचपेड़वा में हुई। विमल को सरकारी नौकरी मिलने में पिता रिटायर्ड शिक्षक निवास चैाधरी ने अहम भूमिका निभाई। विमल के सामने नया काम होने की चुनौती व स्टाफ की कमी के कारण बहुत सी कठिनाईयां सामने आई लेकिन उन्होने इसका डटकर मुकाबला किया। विमल की तैनाती से पूर्व सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र में प्रसव काफी कम होते थे लेकिन उसकी तैनाती के बाद संस्थागत प्रसव का आंकड़ा बढ़ने लगा। करीब दो साल बाद अन्य स्टाफ नर्सो की तैनाती के बाद अस्पताल में प्रति माह होने वाले संस्थागत प्रसव का आंकड़ा बढ़कर करीब 250 से 300 पहुंच गया।

7 साल अस्पताल में मेहनत और लगन से काम करने के बाद स्टाफ नर्स विमल को स्वास्थ्य विभाग ने नई जिम्मेदारी सौपी। 14 सितम्बर 2019 को विमल की तैनाती भारत नेपाल सीमावती क्षेत्र में बने अंतिम थारू विकास परियोजना स्वास्थ्य केन्द्र विशुनपुर विश्राम में हुई। इस केन्द्र में आयुष चिकित्सक द्वारा ओपीडी पहले से ही संचालित थी लेकिन क्षेत्र में संस्थागत प्रसव ना के बराबर होने के कारण जिला स्वास्थ्य समिति ने इसे प्रसव ईकाई बनाने का निर्णय लिया और स्टाफ नर्स विमल कुमारी पटेल की तैनाती की गई। विमल ने अपने अनुभव और मिलनसार व्यवहार से लोगों को संस्थागत प्रसव कराने के लिए प्रेरित किया। जिसका नतीजा ये हुआ कि क्षेत्र में मातृ शिशु मृत्युदर में काफी कमीं आई और संस्थागत प्रसव को बढ़ावा मिला। सीएचसी पचपेड़वा में काम करने का अनुभव भी विमल के काम आया। अकेली स्टाफ नर्स होने के बावजूद उन्होने बिना घबराए चुनौतियों का सामना किया। विमल बतातीं है कि वे अस्पताल में आई गर्भवती महिलाओं को सुरक्षित प्रसव कराने के लिए उचित सलाह देती हैं। महिलाओं में एनीमिया को दूर करने के लिए आयरन व कैल्शियम की टेबलेट का वितरण, गर्भवती महिलाओं की गम्भीर स्थिति होने पर जिला मुख्यालय रेफर करना, महिलाओं की नार्मल डिलेवरी करवाना, ओपीडी में उचित सलाह देना सहित तमाम कामों को अंजाम देती हैं। विमल ने बताया कि अस्पताल में प्रतिमाह करीब 40 से 60 सुरक्षित प्रसव कराये जाते हैं।

पूर्व व वर्तमान स्वास्थ्य केन्द्रों को मिलकर वे करीब एक हजार के आस पास महिलाओं के प्रसव करवा चुकीं है। विशुनपुर विश्राम में अब तक करीब 350 प्रसव के दौरान करीब 40 केस ऐसे है जिसमें सेक्शन मशीन, तापमान नियंत्रण, बैग व मास्क व आक्सीजन के द्वारा नवजात बच्चों की जान वे बचा चुकी हैं। प्रतिमाह करीब 6 से 7 केस ऐसे निकलते है जिसमें बच्चे को सांस लेने में परेशानी या वे सही से रोते नहीं हैं ऐसे केस को अस्पताल में 24 घंटे तैनात 108 एम्बुलेंस से जिला मुख्यालय रेफर किया जाता है। विमल का कहना है कि समाज के अंतिम व्यक्ति तक वे स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचा सकें और महिलाओं का सुरक्षित प्रसव हो इसीलिए वे 24 घंटा ड्यूटी पर एलर्ट रहतीं हैं। मरीजों के दर्द को विमल अपना दर्द समझती हैं इसीलिए वे अपनी ड्यूटी से कम ही छुट्टी लेतीं हैं।

सीएचसी पचपेड़वा के एमओआईसी डा. मिथलेश कुमार ने बताया कि स्टाफ नर्स विमल कुमारी पटेल अपना काम मेहनत और लगन के साथ करतीं हैं। इसकी मेहनत को ही देखते हुए इन्हे थारू विकास परियोजना स्वास्थ्य केन्द्र विशुनपुर विश्राम में प्रसव ईकाई संचालन की जिम्मेदारी दी गई। वहां पर भी उन्होने व्यवहार और मेहनत से ना के बराबर हो रहे संस्थागत प्रसव को काफी बढ़ाया है जिससे मातृ शिशु मृत्युदर में कमीं आई है।

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