तो क्या चौरी चौरा कांड की गुत्थी सुलझाएंगे मोदी, जानिए आज पूरा इतिहास

गोरखपुर
4 फरवरी, 1922 का चौरीचौरा कांड। 99 साल बाद फिर इसकी यादें ताज़ा हो गई हैं। योगी सरकार की पहल पर शताब्दी वर्ष की शुरुआत अमर शहीदों की याद में आंखें नम कर रही है, लेकिन एक गुत्थी विवाद की वजह भी बनी हुई है। यह गुत्थी कुछ और नहीं, चौरीचौरा थाना फूंकने के दौरान मारे गए 23 पुलिसवालों को भी शहीद बताने को लेकर है। आजादी के दीवानों पर गोलियां बरसाने वाले पुलिसवालों को शहीद का दर्जा क्यों?

दरअसल इस सवाल का जवाब अब तक नहीं मिल सका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुरुवार को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए इस कार्यक्रम को संबोधित कर रहे हैं। अब उम्मीद जताई जा रही है कि शताब्दी वर्ष की शुरुआत पर गुरुवार को गोरखपुर में होने वाले कार्यक्रम में पीएम मोदी इसका जवाब दे सकते हैं। उनका इस बारे में कुछ कहना कई मायनों में अहम होगा।

इतिहास के पन्नों में दर्ज है कि 4 फरवरी, 1922 को चौरीचौरा से सटे भोपा बाजार में सत्याग्रही अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जुलूस निकाल रहे थे। चौरीचौरा थाने के सामने तत्कालीन थानेदार गुप्तेश्वर सिंह ने उन्हें रोका तो झड़प हो गई। एक पुलिसकर्मी ने किसी सत्याग्रही की टोपी पर बूट रख दिया तो भीड़ बेकाबू हो गई।

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पुलिस की फायरिंग में 11 सत्याग्रही शहीद हो गए और कई जख्मी भी हुए। इससे सत्याग्रही भड़क उठे और उन्होंने चौरीचौरा थाना फूंक दिया। इसमें 23 पुलिसवाले जिंदा जल गए। इसके बाद अंग्रेजी हुकूमत ने सैकड़ों सत्याग्रहियों पर मुकदमे चलाए, 19 सत्याग्रही फांसी पर चढ़ा दिए गए। घटना से व्यथित महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया था।

घटना में मारे गए पुलिसवालों की याद में 1924 में अंग्रेज अफसर विलियम मौरिस ने थाना परिसर में शहीद स्मारक बनवा दिया। यहीं से सवाल उठा कि निहत्थे भारतीयों पर गोली दागने वाले पुलिस वाले शहीद कैसे कहला सकते हैं।

लेकिन देश आजाद होने के बाद भी वर्षों तक किसी ने कोई पहल नहीं की। करीब 60 साल बाद बाबा राघवदास जैसे मनीषी जब आगे आए और इस स्मारक को खुद ही तोड़ने निकले तब बहस और तेज हुई। बाद में 1993 में तब के प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने अमर शहीदों की याद में स्मारक का लोकार्पण किया। तब से यहां शहीदों की याद में कार्यक्रम होते हैं।

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