हुर्रियत ने कश्मीर पर बातचीत करने की अपील की, फिर से विश्वास बहाल करने के बताए उपाए

नई दिल्‍ली. कश्‍मीर विवाद (Kashmir Dispute) का हल निकालने के लिए भारत, पाकिस्‍तान और जम्‍मू-कश्‍मीर के बीच बातचीत की वकालत करने वाले अलगाववादी संगठन हुर्रियत कॉन्‍फ्रेंस (Hurriyat Conference) ने भारत सरकार से बातचीत का माहौल बनाने के लिए कई कदम उठाए हैं.से विशेष राज्‍य का दर्जा हटाए जाने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटे जाने के बाद अपने पहले महत्वपूर्ण राजनीतिक बयान में, हुर्रियत कॉन्‍फ्रेंस के अध्यक्ष मीरवाइज उमर फारूक (Mirwaiz Umar Farooq) ने जम्‍मू-कश्‍मीर में जनसांख्यिकीय परिवर्तन पर रोक लगाने और केंद्र सरकार के सभी कानूनों को रद्द करने को सूचीबद्ध किया है. उन्‍होंने कहा कि जम्‍मू-कश्‍मीर के लिए बनाए गए कानूनों को तुरंत रद्द किया जाना चाहिए, जो घाटी की आवाम को शक्तिहीन करता है. इसके साथ ही उन सभी युवाओं और राजनीतिक कैदियों की रिहाई करनी चाहिए जो कश्‍मीर में शांति और अमन चाहते हैं.

हमने हमेशा क्षेत्र के सभी लोगों के लिए शांति और विकास की वकालत की है. हमें इस बात का विश्‍वास है कि भारत, पाकिस्तान और जम्मू-कश्मीर के लोगों के बीच बातचीत से कश्‍मीर का हल आसानी से निकाला जा सकता है. गुरुवार को दिए अपने नीतिगत बयान में हुर्रियत कॉन्‍फ्रेंस के अध्यक्ष मीरवाइज उमर फारूक ने कहा, किसी भी संवाद के लिए आपस में विश्‍वास का माहौल होना पहली आवश्‍यकता है. इसे हासिल करने के लिए सरकार को जनसांख्यिकीय परिवर्तन के सभी उपायों और जम्मू-कश्मीर के लोगों की शक्ति कम करने वाले सभी कानूनों को रद्द करना चाहिए.विशेष रूप से अगस्त 2019 से जो भी कश्‍मीरी युवा और सभी राजनीतिक दल से जुड़े सदस्‍य जो जेलों में बंद हैं या फिर घर में नजरबंद हैं, जिसमें हुर्रियत अध्यक्ष मीरवाइज उमर फारूक भी शामिल हैं उन्‍हें छोड़ दिया जाना चाहिए.

हुर्रियत का बयान भारत-पाकिस्तान संबंधों के बीच आई कमी के बाद आया है, जिसका अलगाववादी समूह ने स्वागत किया है. हुर्रियत ने कहा कि अब देखना ये होगा कि इसका असर जम्मू-कश्मीर में किस तरह से दिखाई पड़ता है. हुर्रियत ने केंद्र सरकार की ओर से बनाए गए कानूनों को परेशान करने वाला बताया है और कहा है कि इससे कश्‍मीर के किसी भी विवाद का समाधान नहीं निकलेगा. उन्‍होंने कहा, जनसंख्‍या परिवर्तन के उद्देश्य से कानूनों पारित करने और लागू करने के भारत सरकार के एकतरफा फैसले से जम्मू-कश्मीर के लोगों की पहचान खोने का डर लगातार बढ़ता जा रहा है.

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