अयोध्‍या में भव्‍य राम मंदिर का निर्माण नए युग की शुरुआत है, नकारात्‍मक ताकतों को ये सब अच्‍छा नहीं लगताः योगी आदित्‍यनाथ

गोरखनाथ मंदिर में आज ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ की 51वीं और ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ की छवीं पुण्‍यतिथि‍ पर सप्‍तदिवसीय संगोष्‍ठी का शुभारम्‍भ हुआ. इस अवसर पर ‘श्रीराम जन्‍मभूमि मंदिर निर्माण का शुभारम्‍भ भारत में एक नए युग का आरम्‍भ’ विषय पर संगोष्‍ठी का आयोजन किया गया. इस अवसर पर गोरक्षपीठ के महंत और यूपी के मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यना‍थ ने कहा कि ये सचमुच नए युग की शुरुआत है. श्रीराम मंदिर के निर्माण्‍ा का कार्य सकारात्‍मकता ओर लोककल्याण की भावना से किया गया कार्य है. जिन्‍होंने अपनी सरकार में गरीबों को आवास, बिजली और गैस कनेक्‍शन नहीं दिलवाएं, उन्‍हें इन लोककल्‍याणकारी कार्यों को होता देख अच्‍छा नहीं लगता है. बुरा लगता है.

मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ ने कहा कि दूसरी ताकतें नकारात्‍मक ताकतें हैं. जिनको हर अच्‍छे कार्य में बुरा ही दिखता है. हम राम पर कार्य करें, तो बुरा. न करें, तो बुरा. हम लोककल्‍याण के विशिष्‍ट अभियान को भी आगे बढ़ाते हैं, तो भी उनको बुरा लगता है. तो भी अच्‍छा नहीं लगता है. गरीब को मकान मिल गया, तो भी उन्‍हें अच्‍छा नहीं लग रहा है. अपने कालखंड में गरीबों को आवास, विद्युत का कनेक्‍शन और रसोईगैस के कनेक्‍शन नहीं दे पाए. गरीबों को बुनियादी सुविधाएं नहीं दे पाए. बेहतर स्‍वास्‍थ्‍य की सुविधाएं नहीं दे पाए. लेकिन, कोई सरकार पूरी ईमानदारी के साथ उस दिशा में काम कर रही है. तो उन्‍हें ये भी अच्‍छा नहीं लगता है. यही नकारात्‍मक सोच है. यही नकारात्‍म सोच रावणी सोच है. जो केवल स्‍वार्थ की बात करता है.

मैं और मेरे से बाहर नहीं जा सकता है. उससे बाहर की वो सोच भी नहीं सकते. यही एक व्‍यापक परिवर्तन इस देश के अंदर आज आया है. जो परिवर्तन जो कभी मैं और मेरे का था. उस सोच को राष्‍ट्रव्‍यापी सोच में बदलकर स्‍वार्थ से परमार्थ में बदलने का काम किया है. लोककल्‍याण के भाव के साथ जोड़ने का कार्य किया है. अयोध्‍या में भगवान श्रीराम के भव्‍य मंदिर के निर्माण का कार्य उसी लोककल्‍याणकारी योजनाओं के माध्‍यम से आगे बढ़ाया जा रहा है. उस कार्य का शुभारम्‍भ उसी प्रधानमंत्री के माध्‍यम से शुरू होता है. जिसका व्‍यवहारिक खाका पहले भी देश के सामने आ चुका है.

ये कार्य उसी श्रृंखला को नया स्‍वरूप प्रदान करने की नई कड़ी है. नया अभियान है. ये केवल मंदिर निर्माण का कार्य नहीं, भारत में नए युग के शुभारम्‍भ का क्षण है. भारत को अपने पूर्वजों को सम्‍मान देने और गौरव की अनुभूति, परम्‍परा और संस्‍कृति का आभास कराने का क्षण है. 5 अगस्‍त 2020 को ये कार्य स्‍वयं देश के संविधानिक प्रमुख के रूप में प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी के कर कमलो द्वारा देश के पूज्‍य संतों, रामभक्‍तों और भारत के प्रति सम्‍मान देने का क्षण है.

इस संगोष्‍ठी में बहुत है समसामयिक विषय पर बोलने का अवसर मिला है. अयोध्‍या में भव्‍य राम मंदिर का निर्माण भारत के एक नए युग की शुरुआत ही है. इस पीठ के साथ पूरे भारत के लिए ये वर्ष अत्यंत ही गौरव का वर्ष माना जाएगा. ये केवल उद्घोषणा नहीं वास्तविकता है. सनातन धर्म में भगवान श्रीराम को हर श्रद्धालुओं को उनकी लीलाओं को जानने के अवसर मिलता है. भले ही कोई भारतीय ऐसा नहीं होगा जो खुद को भगवान श्रीराम से जुड़ने का और उनकी लीलाओं की अनुभूति से प्रत्‍यक्ष और अप्रत्‍यक्ष न मिला हो.

वर्ष 1528 में जब अयोध्‍या में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की जन्‍मभूमि पर बने हुए भव्‍य मंदिर को तोड़ने का दुस्‍साहसिक कृत्‍य किया गया था. तब मंदिर का आंदोलन हर 25-30 वर्ष में हर काल खंड में आंदोलन हुए. समाज मौन नहीं बना रहा. आंदोलन मंदिर निर्माण के लिए नहीं, हम सबके आराध्‍यम मर्यादा पुरुषोत्‍तम भगवान श्रीराम का उस स्‍थान पर मंदिर बनना ही चाहिए. ये स्‍थान वापस हमें मिलना ही चाहिए. इसके लिए 7600 बड़े-बड़े युद्ध हुए. लाखों की संख्‍या में रामभक्‍तों ने अपना बलिदान दिया. अनेकों कार सेवकों को बलिदान देना पड़ा.

इसके बाद जब मामला न्‍यायालय में जाता है. न्‍यायालय में जाने के बाद फिर इस आंदोलन को अनेक प्रकार से बाधित करने का प्रयास किया जाने लगा. लेकिन अंततः 9 नवंबर 2019 को माननीय उच्‍चतम न्‍यायालय ने सर्वसम्मति से इस फैसले को देकर देश और दुनिया में भारत के न्यायपालिका और लोकतंत्र की ताकत का अहसास कराया. स्‍वाभाविक रूप से लोकतंत्र के प्रति आस्‍था और न्‍यायपालिक के प्रति श्रद्धा व्‍यक्‍त करने का अवसर प्राप्‍त होता है. भारत और राज्‍य सरकार ने इस अवसर को आगे बढ़ाया. ये क्षण हम सभी के लिए गौरव का क्षण रहा है.

इस देश के प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी के द्वारा भगवान राम मंदिर के निर्माण का शुभारम्‍भ किया जाता है, तो ये निश्चित तौर पर नए युग का शुभारम्‍भ है. जो अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा का भाव व्यक्त नहीं कर सकता उसका भविष्य उज्जवल नहीं हो सकता है. उसका भविष्‍य उज्‍जवल हो उसके लिए ये जरूरी है कि वो अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और सम्‍मान का भाव व्‍यक्‍त करे. यही श्रद्धा का भाव 5 अगस्‍त 2020 की ति‍थि अपने पूर्वजों, रामभक्‍तों और उन वीर बलिदानियों के प्रति आस्‍था प्रकट करने का अवसर प्रदान करता है. बात पहल और सकारात्‍मक सोच की होती है. सकारात्‍मक सोच जिसमें परमार्थ लोक कल्‍याण का भाव है. वो राम की तरह है. जहां पर मैं और मेरा नहीं, सर्वे भवन्‍तु सर्वे संतु निरामयः जहां पर सबके विकास का भाव है. यही तो रामराज्‍य की वा‍स्‍तविक अवधारणा है.

एक वो धारा है जिसने लोक कल्‍याण के लिए संकल्‍प लिया. संकल्‍प इसलिए नहीं कि उन्‍हें अयोध्‍या से निकाला गया. संकल्‍प इस बात के लिए नहीं होता है कि अयोध्‍या या कहीं और की सत्‍ता मुझे प्राप्‍त हो. भारत के ज्ञान की समृद्ध परम्‍परा के संरक्षण का संकल्‍प है. मर्यादा पुरुषोत्‍तम भगवान राम देश में जब राक्षसी दुष्‍प्रवृत्ति को खत्‍म करने का के संकल्‍प को लेकर आगे बढ़ते हैं. तो लोककल्‍याण का वो भाव उस रूप में प्रस्‍तुत करने का भाव प्रारम्‍भ होता है. नारी गरिमा की रक्षा कैसे होनी है. नारी गरिमा की रक्षा कैसे होनी है. नारी गरिमा का भाव भी उन्‍होंने उस रूप में प्रस्‍तुत कर एक मिसाल दी.

भगवान श्री राम ने लंका पर विजय प्राप्त की. उसके पहले ही उन्होंने विभीषण का अभिषेक करवा दिया था. विभीषण पूरा राजपाट देकर लौटने लगे उसके बाद हनुमान से अपना दूत बनाकर भरत के पास भेजते हैं. क्‍योंकि 14 बरस में भरत का मानस बदला हो, तो वे अयोध्‍या वापस नहीं जाएंगे. जब देखा कि नहीं भरत तो राम की वापसी के लिए पूरी तरह उतावले दिखाई दे रहे, तो मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का वापस आगमन अयोध्या हुआ. उसमें स्वार्थ का नहीं लोक कल्याण का भाव है.

यही कार्य का शुभारम्‍भ इस देश के अंदर 26 मई 2014 को होता है. जब इस देश के अंदर नरेन्‍द्र मोदी के नेतृत्‍व में एक सरकार बनती है. न जाति, न धर्म, न भाषा और क्षेत्र, न मत, न मजहब. आजादी के बाद से देश में जिस प्रकार की राजनीति चल रही थी सत्ता और जाति पर आधारित थी. क्षेत्र और भाषा के आधार पर निर्णय हो रहे थे. मत और मजहब के आधार पर आधार पर निर्णय हो रहे थे. मत और मजहब के आधार पर देश की अर्थव्‍यवस्‍था को परिवर्तित करने की प्रवृत्ति सी चली आई थी. 2014 के बाद आपने निर्णय देखे होंगे. लोककल्‍याण का भाव उसमें भी है. लोककल्‍याण का भाव 5 अगस्‍त 2020 में भी देखने को मिला.

स्‍पीच- योगी आदित्‍यनाथ, मुख्‍यमंत्री उत्‍तर प्रदेश
भारत की प्राचीन संस्‍कृति के प्रति सम्‍मान का भाव प्रकट करता है. गोरक्षपीठ की इस परम्‍परा के लिए ये वर्ष और क्षण गौरवपूर्ण क्षण है. ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ और ब्रह्रमलीन महंत अवेद्यनाथ की एक-एक सांस अयोध्‍या में भगवान श्रीराम के भव्‍य मंदिर और भारत के परमार्थ के लिए विकास के लिए रहा है. वे जहां भी होंगे आज उनके संघर्ष को सिद्ध‍ि को पूर्ण होते हुए देखना उनके लिए असीम आनंद का क्षण होगा.

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