राष्ट्रीय चिन्ह का देश में सबसे बड़ा घोटाला, देश की सुरक्षा के लिए बड़ा ख़तरा

देश के राष्ट्रिय  चिन्ह को तो आप जानते ही होंगे और पहचानते भी होंगे…देश का राष्ट्रीय चिन्ह संविधान (National emblem Scam) के सिर्फ तीन ही स्तंम्भ अलग अलग रुप में अपने विभाग में इस्तेमाल कर सकते है ..एक विधायिका..दूसरा कार्यपालिका और तीसरा न्याय पालिका..यहां तक कि लोकतंत्र के चौथे स्तंम्भ यानी मीडिया को भी देश के राष्ट्रीय चिंन्ह को इस्तेमाल करने का अधिकार नही है….लेकिन आज हम आपको इसी राष्ट्रीय चिन्ह को लेकर एक ऐसे घोटाले के बारे में बताएगें जो आपने ना आज तक देखा होगा और ना ही सुना होगा…..लेकिन आज न्यूज़ नशा आपको राष्टीय चिन्ह को लेकर हो रहे इस महा घोटाले के बारें में ना सिर्फ बताएगा बल्कि इस घोटाले से जुड़े हुए दस्तावेंज़ भी आपको दिखाएगा…साथ ही वो ओडियों लिंक भी सुनाएगा जिससे राष्ट्रीय चिन्ह को लेकर हो रहे इस महा घोटाले की तस्वीर आपके सामने बिल्कुल साफ हो जाएगी।

इससे पहले की देश के राष्ट्रीय प्रतीक (National emblem Scam)  पर हो रहे इस महा घोटाले कि परते हम आपके सामने खोलनी शुरु करें उससे पहले राष्ट्रीय प्रतीक को लेकर आपकी जानकारी को थोड़ा दुरुस्त किए देते है। राष्ट्रीय प्रतीक को कोई यूही इस्तेमाल नही कर सकता है। दरअसल संविधान में राष्ट्रीय चिन्ह् के इस्तेमाल पर कानून बनाया गया है और संविधान में बने कानून के मुताबिक

सरकार के मंत्री , अधिकारी और संसद सदस्य ही अशोक चिन्ह को अपने पहचान पत्र, विसिटिंग कार्ड , D .O लेटर्स पर लगा सकते हैं। ‘स्टेट एंब्लेम ऑफ़ इंडिया‘ एक्ट 2005 में भी बताया गया है कि राष्ट्रिय चिन्ह को केवल सरकार से सीधे जुड़े लोगो को ही राष्ट्रीय चिन्ह लगाने कि अनुमति मिलती है। बाकी लोग अगर राष्ट्रिय चिन्ह इस्तेमाल करते हैं तो उन्हें छह महीने कि सजा तक हो सकती है।

राष्ट्रीय चिन्ह् (National emblem Scam) को लेकर संविधान में कानून भी है। राष्ट्रीय चिन्ह् के गलत इस्तेमाल पर सज़ा का प्रावधान भी है, लेकिन इन सभी कानूनों और प्रावधानों के बावजूद देश की राजधानी दिल्ली में केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार की नाक के नीचे नेशनल एम्ल्ब को लेकर इतना बड़ा घोटाला हो जाता है, लेकिन अधिकारियों के कान पर जूं तक नही रेंगती। सरकार की आंखों में धूल झोंककर किस तरह से लगभग चार हज़ार लोग नेशनल एंब्लेम का धड़ल्ले से इस्तेमाल कर रहे है, ये सरकारी सिस्टम और पुलिस महकमें पर कई सवाल खड़े करता है। आज न्यूज़ नशा राष्ट्रीय चिन्ह् पर हो रहे इसी महा घोटाले पर से पर्दा उठाने जा रहा है और खुलासा करने जा रहा है। उन नामों को लेकर जो इस महा घोटाले के लिए ना सिर्फ जिम्मेदार है बल्कि राष्ट्रीय चिन्ह् पर हो रहे इस महा घोटाले की जड़ है।

“ज़फारुल इस्लाम और करतार सिंह कोचर” दिल्ली सरकार के अंतर्गत आने वाले दिल्ली माइनॉरिटी कमीशन के चेयरमैन हैं…ज़फारुल इस्लाम खान उनके साथ 20 जुलाई 2017 को दो मेम्बर कि नियुक्ति हुई। जिसमें करतार सिंह कोचर और इन्स्तेसिया गिल हैं। कमीशन का काम होता है कि दिल्ली में माइनॉरिटी से जुड़े लोगो कि शिकायत सुनना और उन्हें जरुरत के हिसाब से मदद देना। यहाँ तक तो मामला बिलकुल सही था लेकिन इसके बाद शुरू होता है राष्ट्रिय चिन्ह के साथ खिलवाड़ या यूँ कहे कि राष्ट्रीय चिन्ह का सबसे बड़ा घोटाला। कमीशन के chairmen  और मेम्बर को नियुक्त करने में दिल्ली  के उपराज्यपाल  और मुख्यमंत्री दोनों के हस्ताक्षर कि जरुरत होती है और अगर कमीशन में कोई भी कार्य होता है तो सेक्शन 7 ऑफ डीएमसी एक्ट 1999  के मुताबिक  कमीशन को उपराज्यपाल से पहले से अनुमति लेनी होती है। जिसके चलते कमीशन में होने वाले सभी कार्यो कि उपराज्यपाल को पूरी जानकारी रहती है, क्यूंकि कमीशन सरकार के लिए कार्य करने वाली एक संवेधानिक शाखा है। दरअसल 2017 में कमीशन के चयेर्मन ज़फारुल खान और मेम्बर करतार सिंह कि नियुक्ति के बाद कमीशन में दो कमिटी बनाई गई। माइनॉरिटी कमीशन कि एडवाइजरी कमिटी और पीस कमिटी है। इन दोनों कमिटी में तक़रीबन 4000 मेम्बर बनाये गए, लेकिन यहीं हुआ कानून से खिलवाड़। जब कमिटी के सदस्य बनाये गए तो उन्हें सरकारी पहचान पत्र  दे दिए गए। अब आप ज़रा इन पहचान पत्रों पर नज़र डालिए जिसमें आपको दिखेगा राष्ट्रीय चिन्ह और साथ ही दिल्ली सरकार का नाम। अब आपको बताते हैं कि ये कार्ड बनाने और रखने में हो सकती है जेल क्यूंकि ये मेम्बर न तो सरकारी अधिकारी हैं न ही जनता द्वारा मनोनीत हैं। न सिर्फ इतना बल्कि ये कार्ड इन्हें आजीवन के लिए मिले हैं जो कि पूरी तरह गैर कानूनी है…. दरअसल मेम्बेर्स को एक समय सीमा के लिए चुना जाता है लेकिन यहाँ जीवन भर के लिए राष्ट्रिय चिह्नित पहचान पत्र दे दिए गए हैं …इन मेम्बेर्स का सरकार से सीधे कोई नाता नहीं है..और न ही सरकार इन्हें सैलरी देती है… अगर कमीशन में मेम्बेर्स को चुना जाता है तो वो उपराज्यपाल को संज्ञान में रखते हुए होता है और कमीशन के हर कदम हर फैंसले कि जानकारी भी उपराज्यपाल को दी जाती  है…साथ ही इस मामले पर जब न्यूज़ नशा ने उपराज्यपाल का पक्ष जानना चाहा तो अभी तक राजनिवास से कोई जवाब नहीं मिला है..लेकिन राष्ट्रीय प्रतीक के मामले में एक तथ्य और गौरतलब है कि अगर उप राज्यपाल को इसकी जानकारी होती भी है तब भी उपराज्यपाल कानून का पालन करते हुए इन मेम्बेर्स को राष्ट्रीय चिन्ह इस्तेमाल करने कि अनुमति नहीं दे सकते थे.. हालाँकि राजनिवास से अभी ये जानकारी नहीं मिल सकी है है कि कमीशन द्वारा बनायीं गयी दो कमिटी उपराज्यपाल कि जानकारी में है या नही

जिन कमेटिंज़ के तहत राष्ट्रीय चिन्ह (National emblem Scam) को लेकर इतना बड़ा घोटाला हुआ, राष्ट्रीय चिन्ह् का मज़ाक बनाया गया ,जिन कमेटिंज़ के तहत लगभग चार हज़ार लोगो को रेविड़ियों की तरह राष्ट्रीय प्रतीक चिन्हित आईडी कार्ड बांटे गए। आखिर इन कमेटिंज़ का काम क्या है। इस सवाल का जवाब पाने के लिए जब हम दिल्ली सरकार की वेबसाइट पर पहुंचे इन कमेटिंज़ का सच खुलकर सामने आ गया। दरअसल दिल्ली सरकार की वेबसाइट पर कमीशन की जानकारी तो है लेकिन कमीशन की एडवाज़री कमेटि और पीस कमेटी के बारे में कोई भी जानकारी 2016 से अपडेट ही नही हुई है। कमेटी के कामों की तो छोड़िए कमेटि के ढाचें तक की कोई जानकारी वेबसाइट पर उपबल्ध नही है। यानी कि दिल्ली सरकार कि वेबसाइट पर डीएमसी द्वार किसी भी कार्य की जानकारी 2016 से अपडेट ही नही हुई है। यहाँ तक कि शाहीन बाग जैसी घटना जहाँ माइनॉरिटी कमीशन कि मौजुदगी बेहद जरुरी थी वहां से भी ये कमीशन नदारद मिला। जब्कि खुद कमीशन के chairmen डॉ ज़फरुल खान शाहीन बाग के निवासी हैं।

साथ ही न्यूज़ नशा की पड़ताल में ये भी सामने आया कि कमीशन  में बनायीं गयी दोनों कमिटी का रिकॉर्ड भी वेबसाइट नही है। कमिटी में एक है एडवाइजरी कमिटी है जिसमें मुस्लिम, सिख ,इसाई , बोध , पारसी और  जैन शामिल हैं क्यूंकि ये सभी माइनॉरिटी कि श्रेणी में आते हैं। वहीँ पीस कमिटी में भी माइनॉरिटी को होना चाहिए था, लेकिन यहाँ माइनॉरिटी के अलावा दुसरे समुदाय और जाति के लोगो को लिया गया है। दरअसल कमेटी के मेम्बर बनने के लिए कमीशन द्वारा दिए गए फॉर्म को भरना होता है जिसमें व्यक्ति कि पूरी जानकारी ली जाती है और उसे मेम्बर बनाया जाता है और मेम्बर को लेकर पूरी जानकारी उपराज्यपाल  को दी जाती है। बावजूद इसके ये मेम्बेर्स राष्ट्रिय चिन्ह का इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं।

कमीशन का मेंम्बर बनने के लिए इतनी लंबी प्रक्रिया होने के बावजूद भी राष्ट्रीय चिन्ह् को लेकर इतना बड़ा घोटला होना कई सवाल खड़े कर देता है कि आखिर इस घोटाले के पीछे कौन है..इस घोटाले का मकसद क्या है..लगबग 4 हज़ार लोगो को फर्जी राष्ट्रीय चिनहित आईडी कार्ड देने के पीछे मंसूबा क्या है..आखिर कहां से इतनी भारी संख्या में फर्जी आईडी कार्ड छपवाएं गए..और जब न्यूज़ नशा का कैमरा इन सभी सवालों का जवाब तलाशते हुए पहुंचा कमीशन के मेम्बर करतार सिंह कोचर के दफ्तर में तो, जो तस्वीरें और दस्तावेज करतार सिंह कोचर के दफ्तर से निकल कर सामने आई…उन तस्वीरों और दस्तावेज़ों ने राष्ट्रीय चिन्ह को लेकर हुए घोटाले का सच परत दर परत खोल कर रख दिया।

माइनॉरटी कमीशन के मेम्बर करतार सिंह कोचर के दफ्तर से कई सौ पहचान पत्र बरामद हुए। जिनमें राष्ट्रिय चिन्ह साफ़ देखा जा सकता है। ये कार्ड तक़रीबन 4000 सदस्यों को आजीवन के लिए दिए गए हैं।

राष्ट्रीय चिन्ह पर इस महा घोटाले पर एक दिलचस्प और सिस्टम को मज़ाक बनाने वाला तथ्य और सुन लीजिये, 14000 सैलरी पाने वाले करतार सिंह कोचर इन कार्ड् को छपवाने के लिए अब तक लगभग लाख रूपये खर्च कर चुके हैं। जो इन बिलस में साफ़ दिखता है कि बिना टेंडर के ही एक प्रिंटिंग प्रेस सिंघला एनटरप्राइज़ेज को.ये फर्जी पहचान पत्र बनाने का ऑर्डर दिया गया। ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर ऐसी क्या जरुरत आ गयी थी जिसके चलते कि महज 1400 कि सैलरी वाला व्यक्ति लाख रूपये प्रिंटिंग प्रेस को दे देता हैं। ये भी तब हुआ जब सरकार ने इस बिल को पास करने से मन कर दिया। बिना संदेह ये कहा जा सकता है कि गेर कानूनी है।

सबसे हैरान करने वाली बात ये है कि राष्ट्रिय चिन्ह को 4000 लोगो में बाटने वाला कमीशन शायद ये देखना भूल गया कि इतने कार्ड तो खुद दिल्ली के सरकारी अधिकारियों के पास भी नहीं है। दिल्ली सरकार में चल रहा राष्ट्रिय चिन्ह घोटाला न सिर्फ कमीशन पर सवाल खड़े करता है बल्कि देश कि सुरक्षा के लिए भी खतरा है।

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