वाह…फलों के राजा पर भी कोरोना का खतरा, पेड़ों पर लगे आम को भी पहनाया ‘मास्‍क’

वैश्विक महामारी कोरोना के खतरे के बीच इंसान और जानवर क्‍या फलों और सब्जियों पर भी कोरोना का खतरा मंडराने लगा है. प्रकृति, पर्यावरण और पेड़-पौधों से प्‍यार करने वाली एक उद्यमी महिला ने जहां पूरी कालोनी को वृक्षों से हरा-भरा कर दिया है. तो वहीं अब सभी पेड़ों पर बरसों से फल भी लगने लगे हैं. उन्‍होंने गर्मी के सीजन में फलने वाले आम को कोरोना के खतरे से बचाने के लिए मास्‍क तक पहना दिया है. इससे कोरोना के साथ फलों को बंदर, गिलहरी, चिडि़यों के साथ कीड़ों से भी बचाया जा सकता है.

वीओ- गोरखपुर के बेतियाहाता इलाके के न्‍यू चन्‍द्रगुप्‍त नगर कालोनी की रहने वाली उद्यमी अनीता मर्तिया ने ये पहल की है. हैरत की बात ये है कि जबसे लॉकडाउन हुआ है, न तो वे घर से बाहर निकली हैं और न ही उनके बेटे उत्‍सव और उनके घर के कामगार. लॉकडाउन के बाद से ही घर में लगे आम के पेड़ों पर मौर आने लगे. उन्‍हें बचाने के लिए उन्‍होंने हल्‍के कपड़े के बने बैग यानी फ्रूट मास्‍क से कवर कर टेप लगा दिया. अब इन पेड़ों में लगी झोलियों में फल भी बड़े हो गए हैं. वे बताती है कि इससे जहां फलों की शुद्धता पर खरीदने वालों का विश्‍वास बना रहेगा.

बाइट- अनीता मर्तिया, उद्यमी

वीओ- तो वही बाहर से आम तोड़ने आने वाले कोरोना संक्रमित या संदिग्‍ध के छूने से भी फल सुरक्षित रहेगा. अनीता बताती हैं कि लॉकडाउन के बाद से कोरोना के खतरे को देखते हुए उनके परिवार में कोई भी बाहर नहीं निकला है. वे घर से ही सारे व्‍यापार को बेटे उत्‍सव की मदद से देख रही हैं. इसके साथ ही घर में पैदा होने वाली सब्जियों और फलों से ही उनके घर का खान-पान भी चल रहा है. उन्‍होंने लॉकडाउन के बाद से अभी तक बाहर से फल और सब्जियां भी नहीं खरीदी है. वे बताती हैं कि फ्रूट मास्‍क पहनाने से कीट-पतंगों के साथ चिडि़या और गिलहरी से होने वाले नुकसान और कीटनाशक के छिड़काव के खर्च और दुष्‍प्रभाव से भी बचा जा सकता है.

अनीता बताती हैं कि उनके मायके में पिताजी के फल और सब्जियों के बड़े बाग रहे हैं. जब वे शादी होकर गोरखपुर आईं, तो यहां पर कालोनी होने के कारण उन्‍हें ऐसी संभावना नहीं दिखी. हालांकि घर बड़ा होने के कारण उन्‍होंने पूरे घर को बागीचा बना दिया है. वे बताती है कि उन्‍होंने पूरी कालोनी में 25 साल पहले 200 से अधिक लीची और आम के पौधे लगाईं, जो अब बड़े होकर फल भी देने लगे हैं.

वे कहती हैं कि अकेले देश के पीएम के चाहने से पर्यावरण शुद्ध नहीं हो सकता है. घंटी बजाने के साथ ही हमें हर घर में दो-दो पौधे लगाने चाहिए. लॉकडाउन की शुरुआत में ऐसा होता, तो वातावरण और अधिक शुद्ध हो जाता. हम और अधिक सु‍रक्षित महसूस करते. अनीता बताती है कि उनके पति की साल 2000 में मौत हो गई. उसके बाद भी उन्‍होंने हिम्‍मत नहीं हारी. उन्‍होंने ज्‍वेलरी का व्‍यापार शुरू किया और अन्‍य उद्यम को भी संभाला. अब उनके बेटे उत्‍सव सारे व्‍यापार को संभालने में उनकी मदद करते हैं. वे बताती हैं कि मर्तिया ग्रुप के नाम से ही आर्गेनिक खेती कर वे फल और सब्जियों से भी अच्‍छे रुपए कमा लेती हैं.

उत्‍सव मर्तिया बताते हैं कि इस साल से वे फ्रूट मास्‍क पहनाए हैं. वे बताते हैं कि कोरोना चल रहा है. ऐसे में वे चाहते हैं कि आर्गेनिक विधि से तैयार किया गया अच्‍छा फ्रूट लोगों को खाने के लिए मिले. उनके फल में वे किसी भी तरह के कैमिकल का प्रयोग नहीं करते हैं. ये फल प्राकृतिक रूप से बड़े होते हैं. वे कहते हैं कि फ्रूट मास्‍क से फलों को हवा-पानी भी मिलता रहता है और झोले के साइज का होने के कारण पूरे गुच्‍छे के आम उसमें सुरक्षित रहते हैं. इसके साथ ही वे बताते हैं कि कोई भी कोरोना संक्रमित इसे छू भी दे तो नुकसान नहीं होता है. उन्‍होंने बताया कि उन्‍होंने पेड़ों को उल्‍टा टेप लगाकर चारों ओर से तने को सुरक्षित किया है. जिससे कोई भी कीट उस पर चढ़ नहीं सकता है.

उत्‍सव बताते हैं कि उनकी मां अनीता ने इसे 20 साल पहले इसे शुरू किया था. उसे आगे बढ़ा रहे हैं. बायोडिग्रेडिबल हैं. इसलिए सस्टिनेबल डेवलपमेंट में भी मदद मिलेगी. इसके साथ ही उनके लिए ये फ्रूट बैग अपने से सड़कर खाद बन जाते हैं. इससे किसान अपने शुद्ध फसल तैयार कर अच्‍छा मुनाफा जैविक खेती के माध्‍यम से कमा सकते हैं. कैमिकल और लेबर का कास्‍ट भी बचता है. घर पर 10 से 11 पेड़ों पर 200 से 300 मास्‍क लगा रखे हैं. इसमें कई-कई आम की पैदावार होती है. वे बताते हैं कि सभी पेड़ों पर लगभग 2000 मास्‍क लगे हुए हैं.

कहावत हैं कि आम के आम और गुठलियों के दाम. कोरोना महामारी के बीच हर कोई शुद्ध फल और सब्जियां खरीदना चाहता है. ऐसे में आम और खास…जी हां…इस आम में कौन सा आम, आम है और कौन सा खास. ये पहचानना भी जरूरी हो गया है.

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