गोरखपुर कोरोना का हालः अस्‍पताल और क्‍वारेंटाइन सेंटर में आंकड़े पार, रेलवे के तैयार ‘रक्षक’ कोच बेकार

वैश्विक महामारी कोरोना ने कहर बरपा दिया है. जहां पॉजिटि‍व केस बढ़े हैं, तो वहीं मौत के आंकड़ों ने भी सरकार की नींद उड़ा दी है. ऐसे में क्‍वारेंटाइन सेंटर की कमी ने चिकित्‍साधिकारियों के साथ डाक्‍टरों और सरकार की चिंता भी बढ़ा दी है. पहले चरण के 21 दिन के लॉकडाउन में जहां देश थम सा गया, तो वहीं ट्रेन और बसों के पहिए भी जाम हो गए. ऐसे में अस्‍पतालों की कमी और आपात स्थिति से निपटने के लिए ट्रेन के 16 कोच के रैक को ही अस्‍पताल का रूप दिया जाने लगा. लेकिन, लोगों को क्‍वारेंटाइन कर आसोलेशन में रखने के लिए तैयार किए गए, ये ‘रक्षक’ कोच बेकार पड़े हैं.

देश में पहले चरण के लॉकडाउन के समय रेलवे ने आपात स्थिति से निपटने के लिए ‘रक्षक’ कोच तैयार किए. पूर्वोत्‍तर रेलवे की ओर से भी इस ओर पहल की गई और मार्च के अंतिम सप्‍ताह से एनई रेलवे ने रेलवे बोर्ड के निर्देश पर 217 कोच को अस्‍पताल का रूप देकर ‘रक्षक’ कोच तैयार किया. इन कोचों को तैयार करने में रेलवे के इंजीनियर, टेक्निकल टीम और कर्मचारियों ने दिन-रात मेहनत की. उद्देश्‍य ये रहा है कि देश के किसी भी कोने में पहुंचने वाला ये चलने-फिरने वाला अस्‍पताल कोरोना पेशेंट को आसोलेट करने के साथ ही उन्‍हें जीवन दान भी देगा. यही वजह है कि इसका नाम भी ‘रक्षक’ रखा गया.

जून माह के पहले सप्‍ताह यानी अनलॉक के पहले फेज में जब हालात खराब हुए, तो कोरोना अस्‍पताल से लेकर क्‍वारेंटाइन सेंटरों की कमी ने सरकार और चिकित्‍साधिकारियों की भी नींद उड़ा दी. गोरखपुर के प्रमुख चिकित्‍साधिकारी (सीएमओ) डा. श्रीकांत‍ तिवारी से जब क्‍वारेंटाइन सेटरों के बारे में जानकारी मांगी गई, तो उन्‍होंने बेबाक होकर कहा कि जब एक मरीज पॉजिटिव पाया जाता है, तो उसके पीछे उसके संपर्क में आने वाले कम से कम औसत 10 लोगों को क्‍वारेंटाइन करना होता है. ऐसे में उस 10 में दो भी पॉजिटिव केस निकल गए, तो उनके संपर्क में आने वाले भी 10-10 लोगों को क्‍वारेंटाइन करना होता है. ऐसे में क्‍वारेंटाइन सेंटरों को घटाने का सवाल ही पैदा नहीं होता है. उन्‍हें तो बल्कि 100 बेड के एक और फैसिलिटी क्‍वारेंटाइन सेंटर की जरूरत है. क्‍योंकि एक दिन में 10 पॉजिटिव केस आने पर औसत सौ स‍ंदिग्‍धों को क्‍वारेंटाइन करने की जरूरत पड़ती है.

 

अब हम पहुंचे हैं पूर्वोत्‍तर रेलवे के मुख्‍य जनसंपर्क अधिकारी पंकज कुमार सिंह के पास. हमने जब उनसे सवाल किया कि कोरोना वार्ड के रूप में बनाए गए रेलवे अस्‍पताल में क्‍या हाल है. तो उन्‍होंने पर्याप्‍त बेड और व्‍यवस्‍था होने की बात तो कही. वे ये भी कहते हैं कि पूर्वोत्‍तर रेलवे ने 217 रक्षक कोचों को पहले ही तैयार कर लिया है. लेकिन, अभी इन्‍हें कहीं भेजा नहीं गया है. हालांकि मिनिस्‍ट्री ऑफ हेल्‍थ और फैमिली वेलफेयर ने गाइडलाइन जारी की थी. जिसके अंतर्गत पूर्वोत्‍तर रेलवे के कुल 20 स्‍टेशन चिन्हित किए गए थे. जिन पर इन कोचेज को लगाया जा सकता है. इसके देखते हुए यूपी सरकार ने एक प्रोटोकाल निर्धारित किया है. वेस्‍ट डिस्‍पोजल, पेशेंट को डाक्‍टर कैसें देखेंगे. उन्‍हें कैसे एडमिट किया जाएगा. कौन से डाक्‍टर्स उन्‍हें देखेंगे. इन्‍हें जरूरत के मुताबिक मांग के अनुसान उन स्‍टेशन के लिए भेजा जाएगा. हालांकि अभी तक आइसोलेशन के लिए तैयार किए गए इन ‘रक्षक’ कोचों को प्रयोग में नहीं लाया गया है. अभी तक राज्‍य सरकार की ओर से इस तरह की मांग नहीं की गई है.

गोरखपुर में पूर्वोत्‍तर रेलवे के मुख्‍यालय के यांत्रिक कारखाना में इस कोच को तैयार किया गया है. इस कोच का नाम ‘रक्षक’ रखा गया है. एक पूरी रैक में कुल 16 कोच हैं. जिसमें तीन एसी कोच आइसोलेशन में रहने वाले कोरोना मरीजों का इलाज करने वाले डाक्‍टरों के आराम करने के लिए तैयार किया गया है. इसके साथ ही इसमें हर कोच में 8 और एक केबिन में एक पेशेंट को रखने की व्‍यवस्‍था होगी. चार में एक लेबोरेटरी को बाथरूम के रूप में कनवर्ट किया गया है. एक पेंट्री कार के साथ 10 कोच में 80 पेशेंट का इलाज हो सकता है. ऐसे ग्रामीण इलाकों जहां पर अस्‍पताल की सुविधा नहीं है, वहां पर आपरेशन की सुविधा से लैस ‘रक्षक’ कोच वरदान साबित हो सकता है.

हालांकि गोरखपुर में कोरोना पॉजिटिव मरीजों को भर्ती करने और इलाज के लिए बीआरडी मेडिकल कालेज और रेलवे अस्‍पताल को 200-200 बेड के वार्ड तैयार हैं. वहीं 100 बेड के टीवी अस्‍पताल और 100 बेड के पूर्वांचल डेंटल कालेज गीडा को फैसिलिटी क्‍वारेंटाइन सेंटर का रूप दिया गया है. लेकिन, आसपास के जिलों के मरीजों का दबाव भी कम नहीं है. इसके साथ ही 100 बेड के एक क्‍वारेंटाइन सेंटर की यहां के चिकित्‍साधिकारियों को महसूस हो रही कमी भी रेलवे के ‘रक्षक’ कोचों की ओर सरकार का ध्‍यान नहीं ले जा रहा है.

जहां चिकित्‍साधिकारी ये मान रहे हैं कि उनके पास फ‍ैसिलिटी क्वारेंटाइन सेंटरों की कमी है. इसके साथ ही अस्‍पताल का हाल भी बुरा है. अस्‍पताल और क्‍वारेंटाइन सेंटर में आंकड़ें पार हो रहे हैं. तो वहीं रेलवे के इंजीनियरों की ओर से आइसोलेशन के लिए तैयार किए गए ‘रक्षक’ कोच बेकार क्‍यों पड़े हैं. ये बड़ा सवाल है. इसके साथ ही सवाल ये भी है कि आखिर सरकार और अस्‍पतालों को इन रक्षक कोचों की जरूरत महसूस क्‍यों नहीं हो रही है.

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