आज़म और अखिलेश यादव की दोस्ती में दीवार बने सीएम योगी ! आज़म और अखिलेश का टूटा याराना !

कहते है तस्वीरें हकीकत बयां करती हैं ..लेकिन सियासी तस्वीरों की हकीकत को समझ पाना इतना आसान नही होता। अगर आप आज़म खान और सीएम योगी की इन तस्वीरों पर गौर करेंगें तो अव्वल तो आप चौक जाएंगें और जब आप ये जानेंगें कि आज आज़म खान सपरिवार जेल में है और उन्हे जेल योगी सरकार में हुई हैं, क्योकि एक दौर वो भी था जब सपा सरकार में योगी आदित्यनाथ ने भी जेल की रोटी का स्वाद चखा था और आज योगी के राज में आज़म खान जेल में हैं। लेकिन कभी योगी के साथ आज़म खान की ये तस्वीरे लोगो को सोचने पर मजबूर कर देती हैं कि आखिर सियासी तस्वीरों में कोई सच्चाई होती भी या नही।

बड़े बुजुर्गों का कहना है कि सियासी लोगो की बातें। लोगो की तस्वीरें भी सियासी ही होती हैं, क्योकि अगर आप इन तस्वीरों पर गौर करे तो साफ पता चलता है कि सीएम योगी को देखकर आज़म खान कितने खुश है उनके साथ कदम से कदम मिलाकर चलने में उन्हे कितना फक्र महसूस हो रहा है और सीएम योगी के चेहरे पर भी पुराने जख्मों को लेकर कोई शिकन नही हैं। बल्कि आज़म खान के साथ उस दौर की मुलाकात का असर उनके चेहरे की मुस्कान के तौर पर साफ नज़र आ रही है। लेकिन ये सियासत है। रामपुर के जिस सांसद आज़म खान के साथ सीएम योगी आदित्यनाथ की ये तस्वीरें है। उन्ही योगी आदित्यनाथ ने बदलते दौर के साथ अपना मिज़ाज़ बदला और विधानसभा में आज़म खान को इशारों इशारों में वायरस तक कह दिया।

वही आज़म खान जो अपने सूबे के नए नवेले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का रामपुर आने पर स्वागत कर रहे थे। उन्होने भी बदलते दौर के साथ अपना मिजाज़ और जबान दोनो बदल दी और अपने ऊपर लगे सभी दागों के लिए योगी आदित्यनाथ को जिम्मेदार बता दिया और यहां तक कह दिया कि योगी की सरकार उनपर जानबूझ कर अत्याचार कर रही हैं।

चलिए ये दोस्ती तो सियासी थी जो नफे की उम्मीद से बनी और नुकसान पर टूट गई। लेकिन अब ज़रा गौर उन तस्वीरों पर भी किजिए जो नफे और नुकसान से परे दिल से दिल तक जुड़ी हुई थी। यानी मुलायम सिंह और आज़म खान की दोस्ती। 1976 में जनता पार्टी से जुड़ने के बाद 1980 में आजम ने पहली बार विधानसभा का चुनाव जीता। इसके बाद  9 बार विधायक बने। आजम-मुलायम की गहरी दोस्ती का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता हैं कि  1989 में पहली बार सीएम बनने पर मुलायम सिंह ने आजम को कैबिनेट मंत्री बनाया था। वहीं, 4 अक्टूबर 1992 को जब समाजवादी पार्टी का गठन हुआ तो मुलायम की अगुआई में आजम इसके संस्थापक सदस्य बने। यही नहीं पार्टी का संविधान लिखने में भी आज़म खान की अहम भूमिका रही।

आज वही आज़म खान अपनी समाजवादी पार्टी से अपने दोस्त मुलायम सिंह से और बेटे जैसे अखिलेश यादव से बेहद खफा है उनका कहना है कि उनके बूरे वक्त में पार्टी उनके साथ दिल से खड़ी नही हुई। हालंकि जब कई मुकद्दमों के चलते आज़म खान जेल की सलाखों के पीछे पहुंचे तो सपा सुप्रीमों अखिलेश यादव आज़म खान से मिलने जेल गए थे और मीडिया के सामने आकर कहा था कि आज़म खान के साथ षडंयंत्र रचा गया हैं। उनसे सियासी रंजिश निभाई जा रही हैं।

दरअसल अखिलेश यादव के आज़म खान के पीछे खड़े होने के कई कारण है पहला तो ये की 2022 के  यूपी विधानसभा चुनाव में आज़म खान की भूमिका सपा के लिए काफी अहम हैं। दूसरी ये कि आज़म खान मुलायम सिंह के काफी करीब हैं। सपा के पुराने सदस्य रामपुर की जनता के चहेते हैं और सबसे अहम बात जब 2012 में मुलायम सिहं ने अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया था तो आज़म खान ने अखिलेश यादव का समर्थन किया था। ऐसे में सपा के लिए आज़म खान का सलाखों से बाहर आना बेहद जरुरी हैं और आज़म खान को सलाखों से बाहर लाने के लिए अखिलेश यादव जब भी कोशिश करते है तो आज़म और अखिलेश यादव के बीच दीवार बन कर खड़े हो जाते है। सीएम योगी आदित्यनाथ ऐसे में एक बार फिर से समाजवादी पार्टी ने आज़म खान को सलाखों से बाहर लाने की कोशिश की हैं।

जिसके चलते समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और उत्तर प्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रामगोविंद चौधरी ने विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित को पत्र लिखकर कहा है कि आज़म खान के परिवार को जमानत दी जाए। ईद के मद्देनजर और आजम खान की तबियत खराब है, साथ ही आजम की पत्नी को फ्रैक्चर भी हो गया है, लिहाजा उन्हें जमानत दी जाए। अब देखना ये है कि समाजवादी पार्टी की ये कोशिश आज़म खान को सलाखों से बाहर ला पाने में कितनी मददगार साबित होती हैं और बार बार अपने और आज़म खान के बीच दीवार बनने वाले योगी आदित्यनाथ को क्या जवाब देते हैं।

 

 

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