हिमाचल में कांग्रेस को नुकसान पहुंचा रही AAP, कल केजरीवाल फूंकेंगे चुनावी शंखनाद

भले ही अब भाजपा और कांग्रेस इस मुद्दे पर एक सुर में कह रहे हों कि आप का हिमाचल में कोई वजूद नहीं

चंडीगढ़. हिमाचल प्रदेश के मंडी में कल यानी 6 अप्रैल को आम आदमी पार्टी के संरक्षक अरविंद केजरीवाल रैली करने वाले हैं. एक तरह से यह हिमाचल प्रदेश में दिसंबर में होने वाले चुनाव का शंखनाद है. पंजाब में आम आदमी पार्टी की भारी बहुमत के साथ हुई जीत का असर हिमाचल में साफ तौर दिखाई देने लगा है. भले ही अब भाजपा और कांग्रेस इस मुद्दे पर एक सुर में कह रहे हों कि आप का हिमाचल में कोई वजूद नहीं है.

पंजाब में आप की सरकार बनने के बाद कांग्रेस के कई कार्यकर्ता और नेताओं ने दिल्ली पहुंचकर आप का दामन थामा है. हालांकि भाजपा के ऐसे कार्यकर्ताओं और नेताओं की संख्या कम है जो हाल ही में आप में शामिल हुए हैं. आम आदमी पार्टी के मंडी से होने वाले शंखनाद को देखते हुए कांग्रेस भी सतर्क हो गई है और अब जल्द ही कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष बदलने की तैयारी में जुटी है, क्योंकि आप ने कांग्रेस को हिमाचल में डैमेज करना शुरू कर दिया है.

भाजपा और कांग्रेस द्वारा पुरजोर से नकारना

आम आदमी पार्टी की मौजूदगी को भाजपा और कांग्रेस द्वारा पुरजोर से नकारना साबित करता है कि पूरे हिमाचल प्रदेश में कहीं न कहीं यह मौजूद है. आप की हिमाचल में मौजूदगी से सबसे ज्यादा खतरा कांग्रेस का कैडर टूटने का है. जानकारों की मानें तो कांग्रेस के साथ जो लोग लंबे समय से जुड़े हुए हैं, उनमें असुरक्षा की भावना जल्दी पनप सकती है.कांग्रेस अगर सत्ता में नहीं लौटती है इसका एक बड़ा कारण यह भी होगा. आम आदमी पार्टी के पंजाब में सत्ता संभालने के बाद वह हिमाचल की ओर रुख कर रही है. उसका मकसद फिलहाल हिमाचल में सरकार बनाना बिलकुल नहीं होगा, हालांकि 68 सीटों में चुनाव लड़ने का ऐलान पहले से ही कर रखा है. आम आदमी पार्टी की संभावित गतिविधियों के चलते कांग्रेस को अपने उन तिनकों को हर जगह संभाल कर रखना होगा, जो झाड़ू को मजबूत कर सकते हैं.

कांग्रेस को ही अपना कैडर क्यों संभालना होगा भाजपा को क्यों नहीं? जानकारों का कहना है कि भाजपा एक डबल इंजन सरकार है और केंद्र की राजनीति में भाजपा लंबी रेस का घोड़ा है. इसलिए भाजपा की हार पर भी उसके कैडर को केंद्र का सहारा रहता है, जो उसे पार्टी को मजबूत करने के लिए उत्साहित करता है. भाजपा का यही सकारात्मक पहलू और आप की उत्तराखंड में आंशिक घुसपैठ भाजपा को जीत की तरफ ले गई, जहां कहा जा रहा था कि कांग्रेस उत्तराखंड में सरकार बना लेगी. भाजपा को कुछ ऐसे नेता नुकसान पहुंचा सकते हैं जिनकी चुनाव लड़ने की महत्वाकांक्षाएं प्रबल हों, वह पार्टी के आंशिक तौर पर कैडर को तोड़ सकते हैं.

भाजपा प्रदेश में सत्ता में है और अपने कैडर

दूसरा भाजपा प्रदेश में सत्ता में है और अपने कैडर को लाभ देकर उन्हें टूटने से बचा सकती है. इसके विपरीत कांग्रेस में जिस तरह का न दिखने वाला आंतरिक युद्ध छिड़ा हुआ है, उससे बगावत के आसार बढ़ जाते हैं, क्योंकि विकल्प के तौर पर सामने आम आदमी पार्टी खड़ी है, जिसका देश की राजधानी दिल्ली की सत्ता पर कब्जा है. जबकि कांग्रेस के पास राजस्थान और छत्तीसगढ़ राज्य हैं. यहां आपको यह भी बताना जरूरी है कि हिमाचल के करीब 10 लाख लोग दिल्ली में नौकरियां या कारोबार करते हैं. फिलहाल वह किसी न किसी राजनीतिक पार्टी से जुड़े हो सकते हैं, लेकिन आम आदमी पार्टी हिमाचल में पकड़ बनाने के लिए ऐसे लोगों को अपने साथ जोड़ने के लिए प्राथमिकता देगी.

विधानसभा चुनाव हार कर अब दो राज्यों में ही सिमट गई

कांग्रेस पार्टी हाल ही में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव हार कर अब दो राज्यों में ही सिमट गई है. राजस्थान और छत्तीसगढ़ के अलावा अन्य राज्यों में पार्टी का वजूद तो है लेकिन सिंहासन नहीं है. पांच राज्यों में पंजाब भी शामिल है जहां पर कांग्रेस के 3G (सोनिया, राहुल और प्रियंका) कथित प्रयोग सिर के बल गिरे हैं और आम आदमी पार्टी ने रिकॉर्ड के साथ सत्ता संभाल ली है. कांग्रेस के पास राज्यों में अपनी संख्या 2 से 4 करने का दिसंबर में एक और मौका है. हिमाचल और गुजरात में दिसंबर में चुनाव है. दोनों राज्यों में कांग्रेस को लगता है कि इस बार वन बाई वन में उसे हिमाचल में तो सत्ता मिल ही जाएगी, लेकिन कांग्रेस के लिए यह राह आसान नहीं है. चूकि 68 सीटों पर आप के उम्मीदवार 2 से 5 हजार वोट भी हासिल करते हैं तो कांग्रेस को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है.

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