‘राजनीति के दादा’ का सियासी सफर, जब 3 बार पीएम बनने से चुके प्रणब दा

भारतीय राजनीति के दादा प्रणब दा हमारे बीच नहीं रहे। 84 साल की उम्र में प्रणब मुखर्जी ने अंतिम सांस ली। वो पिछले कई दिनों से बीमार थे और अस्पताल में भर्ती थे। बीते दिनों प्रणब मुखर्जी कोरोना पॉजिटिव पाए गए थे, उनकी सर्जरी भी हुई थी। प्रणब मुखर्जी के बेटे अभिजीत मुखर्जी ने ट्वीट कर प्रणब मुखर्जी के निधन की जानकारी दी। राजनीति के इस दादा का जन्म 11 दिसंबर 1935 को बंगाल के वीरभूम जिले में हुआ था।

प्रणव दा को राजनीति का सबक घर से मिला यही कारण था जो प्रणब दा को सबसे बड़े ओहदे और सम्मान तक लेकर आया। प्रणब दा ने कलकत्ता विश्वविद्यालय से इतिहास, राजनीति शास्त्र और कानून की डिग्री हासिल की। प्रणब दा को भारतीय राजनीति में एक विद्वान चरित्र के रूप में सम्मान हासिल रहा। क्लर्क, पत्रकार और टीचर के तौर पर काम किया। फिर 1969 में पिता के नक्श-ए-कदम पर चलते हुए राजनीति में आ गए। 2008 में उन्हें पद्म विभूषण और 2019 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

भारतीय राजनीति में प्रणव दा का नाम विरोधी भी सम्मान से लिया करते हैं। एक क्लर्क और एक टीचर से फिर सियासतदान और राष्ट्रपति बनने का सफर। प्रणब के राजनीतिक करियर में तीन बार ऐसे मौके आए, जब लगा कि वह प्रधानमंत्री बनेंगे, लेकिन तीनों बार प्रणब दा प्रधानमंत्री नहीं बन सके। वे कितने काबिल थे, इसका अंदाजा पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के एक बयान से लगा सकते हैं। तीन साल पहले मनमोहन ने कहा था- जब मैं प्रधानमंत्री बना, तब प्रणब मुखर्जी इस पद के लिए ज्यादा काबिल थे, लेकिन मैं कर ही क्या सकता था? कांग्रेस प्रेसिडेंट सोनिया गांधी ने मुझे चुना था। यहां हम आपको प्रणब के सियासी सफर और उन तीन मौकों के बारे में बता रहे हैं। जब प्रणब दा सत्ता के शीर्ष पर यानी प्रधानमंत्री पद तक पहुंच सकते थे, लेकिन ऐसा हो नहीं सका।

1. इंदिरा की कैबिनेट में प्रणब दा नंबर-2 पर रहे
2. उनके बाद प्रधानमंत्री नहीं बन सके
3. 1969 में पहली बार इंदिरा के आग्रह पर राज्यसभा पहुंचे
4. इंदिरा गांधी राजनीतिक मुद्दों पर प्रणब दा की समझ की कायल थीं

1. इंदिरा गांधी की हत्या के बाद अगले प्रधानमंत्री के रूप में प्रणब का नाम भी चर्चा में था, लेकिन पार्टी ने राजीव गांधी को चुना।

दिसंबर 1984 में लोकसभा चुनाव हुए कांग्रेस ने 414 सीटें जीतीं। फिर कैबिनेट में प्रणब को जगह नहीं मिली। बाद में उन्होंने लिखा- जब मुझे पता लगा कि मैं कैबिनेट का हिस्सा नहीं हूं तो दंग रह गया लेकिन, फिर भी मैंने खुद को संभाला। पत्नी के साथ टीवी पर शपथ ग्रहण समारोह देखा। दो साल बाद यानी 1986 में प्रणब ने बंगाल में (आरएससी) का गठन किया। तीन साल बाद राजीव से उनका समझौता हुआ और आरएससी का कांग्रेस में विलय हो गया

2. सात साल बाद दूसरी बार पीएम बनने का मौका हाथ से निकला

1991 में राजीव गांधी की हत्या हुई। चुनाव के बाद कांग्रेस की सत्ता में वापसी हुई
माना जा रहा था कि इस बार प्रणब के मुकाबले कोई दूसरा चेहरा पीएम पद का दावेदार नहीं है, लेकिन इस बार भी मौका हाथ से निकल गया नरसिम्हा राव को प्रधानमंत्री बनाया गया। प्रणब दा को पहले योजना आयोग का उपाध्यक्ष और फिर 1995 में विदेश मंत्री बनाया गया

3. 2004 में सोनिया ने प्रणब दा की जगह मनमोहन को पीएम पद के लिए चुना
फिर साल 2004 आया। कांग्रेस को 145 और भाजपा को 138 सीटें मिलीं, लेकिन इसे भाजपा की ही हार माना गया। सरकार बनाने के लिए कांग्रेस क्षेत्रीय दलों पर निर्भर थी। सोनिया गांधी के पास खुद प्रधानमंत्री बनने का मौका था, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। प्रणब मुखर्जी का नाम फिर चर्चा में था। लेकिन सोनिया ने जाने माने अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री पद के लिए चुना

2012 तक प्रणब दा मनमोहन सिंह की कैबिनेट में नंबर-2 रहे। प्रणब दा ने 2004 से 2006 तक रक्षा, 2006 से 2009 तक विदेश और 2009 से 2012 तक वित्त मंत्रालय संभाला। इस दौरान प्रणव दा लोकसभा में सदन के नेता भी रहे। यूपीए सरकार में उनकी भूमिका संकटमोचक की रही। 2012 में पीए संगमा को हराकर वे राष्ट्रपति बने। उन्हें कुल वोटों का 70 फीसदी हासिल हुआ। बाद में एक बार प्रणब दा ने कहा था- मुझे प्रधानमंत्री न बन पाने का कोई मलाल नहीं। मनमोहन सिंह इस पद के लिए सबसे योग्य व्यक्ति थे.. लेकिन मनमोहन सिंह ने भी माना था प्रणव दा इस पद के लिए मुझसे ज्यादा काबिल थे लेकिन सोनिया ने मुझे चुना

प्रणब दा को मिले सम्मान

  • 1984 में दुनिया के पांच सर्वोत्तम वित्त मंत्रियों में से एक प्रणव मुखर्जी भी थे
  • 1997 में सर्वश्रेष्ठ सांसद का अवार्ड मिला
  • भारत के दूसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म विभूषण से नवाजा गया
  • प्रणव दा को 26 जनवरी 2019 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया

राजनीति के इस दादा का योगदान देश कभी नहीं भूल सकता। राजनीति के इस रत्न की भरपाई शायद ही कभी हो पाए। इस देश की राजनीति में प्रणब दा की कमी हमेशा खलेगी।

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