भारत में मंदी से परेशान हुए लोग, जानिए कब कब भारत ने झेली थी मंदी कि मार

आज पूरी दुनिया भर में कोरोनावायरस महामारी फैल रही है। यह महामारी पूरी दुनिया भर में आर्थिक मंदी भी लेकर आई है। पूरी दुनिया आज के समय में कठिनाइयों से जूझ रही है। वहीं भारत में भी अब मंदी है। कोरोनावायरस ने देश को मुश्किलों में डाल दिया है। सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया इस मंदी से जूझ रही है। हालांकि अब अर्थव्यवस्था को नए सिरे से शुरू करने की पहल होने लगी है। देश की मोदी सरकार भी लगातार यही कोशिश कर रही है कि देश की अर्थव्यवस्था को दोबारा से पटरी पर लाया जा सके।

इस समय भारत में लोगों की परचेसिंग पावर घट रही है। जिसके चलते उद्योग का पहिया थम रहा है। कंपनियों ने लागत घटाने के लिए छटनी भी कि है। कई लाखों करोड़ों लोगों की जॉब इस घातक वायरस की वजह से गई है। या उनकी जॉब पर बड़ा असर पड़ा है। आर्थिक ग्रोथ तिमाही दर तिमाही सुस्त बढ़ती जा रही है। वही देश का ऑटो सेक्टर रिवर्स गियर में जा चुका है। ऑटो इंडस्ट्री में लगातार गिरावट देखी जा रही है। आइए जानते हैं कि इससे पहले भारत पर मंदी की आंच कब-कब पड़ी है।

आजादी के बाद जब देश ने झेली मंदी

वही आपको बता देंगे आजादी के बाद से भारत को प्रमुख रूप से दो बार आर्थिक मंदी से झटका लगा है। यह साल थे साल 1991 और 2008। साल 1991 में आई आर्थिक मंदी के पीछे आंतरिक कारण थे। लेकिन 2008 में वैश्विक मंदी के चलते भारत की अर्थव्यस्था पर आंच आई थी। 1991 में भारत के आर्थिक संकट में फंसने की सबसे बड़ी वजह भुगतान संकट था। इस दौरान आयात में भारी कमी आई थी, जिससे देश दोतरफा घाटे में था।

विदेशी मुद्रा भंडार घटने से रुपये में तेज गिरावट आई जिससे घाटे का संकट बढ़ गया। पूर्व प्रधानंत्री चंद्रशेखर की सरकार फरवरी 1991 बजट पेश नहीं कर सकी। इसी दौरान अंतर्राष्ट्रीय क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज ने भारत को डाउनग्रेड कर दिया था। कई वैश्विक क्रेडिट-रेटिंग एजेंसियों ने भी भारत को डाउनग्रेड कर दिया। विश्व बैंक और आईएमएफ ने भी अपनी सहायता रोक दी, जिससे सरकार को भुगतान पर चूक से बचने के लिए देश के सोने को गिरवी रखने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था।

देश का व्यापार संतुलन गड़बड़ा चुका था। सरकार बड़े राजकोषीय घाटे पर चल रही थी। खाड़ी युद्ध में 1990 के अंत तक, स्थिति इतनी गंभीर हो गई थी कि भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार मुश्किल से तीन सप्ताह के आयात लायक बचा था। सरकार कर्ज चुकाने में असमर्थ हो रही थी।

1991 में आए आर्थिक संकट की मुख्य वजह

1991 में आए आर्थिक संकट की मुख्य वजह रुपये की कीमत तेजी से घटना, देश का बढ़ता चालू खाता घाटा, निवेशकों का भारत के प्रति घटता भरोसा और रुपये की विनिमय दर में कमी थी। 1980 के दशक के अंत तक, भारत गंभीर आर्थिक संकट में था।

2008 में आई आर्थिक मंदी का भारत की अर्थव्यवस्था पर असर

2008 में आई आर्थिक मंदी से भारत की अर्थव्यस्था को उतना नुकसान नही झेलना पड़ा था जितना अन्य देशों के अर्थव्यवस्थाओ को झेलना पड़ा था। 2008 की मंदी के दौरान भारत का व्यापार वैश्विक जगत के साथ व्यापार काफी घट गया था। आर्थिक ग्रोथ घटकर 6 फीसदी से नीचे चली गई थी।

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