जब भारत मे पहली बार एक जज को फांसी पर चढ़ाया गया, जानिए वो दिलचस्प कहानी

भारत में एक जज को सबसे ज़्यादा इज़्ज़त दी जाती है क्योंकि अदालत में वह सभी को इन्साफ देता है। एक जज अपने जीवन काल में न जाने कितने लोगों को उनके किये की सजा देता है। कुछ को फांसी भी देता है। लेकिन एक जज को कभी फांसी दी गई हो, ये सुनने में काफी विचित्र है, लेकिन सच है। भारत के इतिहास में भी एक जज को फांसी पर चढ़ाया जा चुका है। और इस जज का नाम है उपेंद्र नाथ राजखोवा।

मामला 50 साल पुराना है। उपेंद्र नाथ राजखोवा असम के ढुबरी जिले में जिला एवं सत्र न्यायाधीश पद पर कार्यरत थे। इसके चलते उन्हें सरकारी आवास भी दिया गया था, जिसके पड़ोस में अन्य सरकारी अधिकारियों के भी आवास थे। फरवरी 1970 में सेवानिवृत्त होने के बाद भी उन्होंने सरकारी बंगला खाली नहीं किया। इस दौरान अचानक उनकी पत्नी और तीन बेटियां गायब हो गईं। और इस बारे में उपेंद्र राजखोवा के अलावा किसी को कुछ भी मालूम नहीं था। क्योंकि, उनके परिवार के बारे में पूछने पर वे हमेशा ‘यहाँ गए हैं, घूमने वहां गए हैं’ के बहाने बना देते थे। इसके बाद अप्रैल 1970 में उन्होंने वह सरकारी आवास खाली कर चले गए।

उपेंद्र नाथ राजखोवा के जाते ही उस बंगले में दूसरे जज निवास करने आ गए। और राजखोवा का नाम लोग भूलने लगे। हालाँकि, राजखोवा के साले पुलिस में थे। राजखोवा के साले को जब मालूम हुआ कि वे कुछ दिनों से सिलीगुड़ी के एक होटल में ठहरे हैं, तो वो कुछ पुलिसकर्मियों के साथ होटल जा पहुंचे। यहाँ पहुंचकर वे राजखोवा से अपनी बहिन और भांजियों के बारे में पूछने लगे। यहाँ भी राजखोवा बहाने बनाकर बात घुमाने लगे। इस दौरान बात बिगड़ता देख उन्होंने कमरे के अंदर ही आत्महत्या करने की भी कोशिश की। इसके बाद राजखोवा को अस्पताल में भर्ती कराया गया।

शक होने पर राजखोवा के साले ने अच्छे से तफ्तीश शुरू की। जिसमे कुछ सुराग मिलने और पूछताछ के बाद राजखोवा ने चारों की हत्या का जुर्म कुबूल लिया। राजखोवा ने पुलिस को बताया कि उन्होंने ही अपनी पत्नी और तीनों बेटियों की हत्या कर उनकी लाशों को अपने उसी सरकारी बंगले में जमीन के अंदर गाड़ दिया था। जुर्म कबूलने का बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। लगभग एक साल तक अदालत में केस चलने के बाद निचली अदालत ने उपेंद्र नाथ राजखोवा को फांसी की सजा सुना दी।

निचली अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए उपेंद्र नाथ राजखोवा ने हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया। लेकिन हाईकोर्ट ने भी निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा। इसके बाद राजखोवा ने फांसी के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने भी हाईकोर्ट और निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा । जानकारी के अनुसार, राजखोवा ने इसके बाद राष्ट्रपति से भी दया याचिका की अपील की थी, लेकिन यहाँ भी कुछ हाथ न लगा। और राजखोवा को फांसी की सजा तय हुई।

14 फरवरी, 1976 को जोरहट जेल में पूर्व जज उपेंद्र नाथ राजखोवा को फांसी दे दी गई। इसके साथ ही उपेंद्र नाथ राजखोवा का नाम भारतीय कानून में एक हत्यारे के तौर पर काले अक्षरों से लिखा गया। हालाँकि, उनकी मौत तक कभी यह राज़ नहीं खुला कि उन्होंने चारों की हत्या क्यों की। यह राज़ आज तक एक राज ही है। उपेंद्र नाथ राजखोवा भारत ही नहीं, दुनिया के इकलौते ऐसे जज थे, जिन्हें फांसी पर लटकाया गया।

बता दें कि यह मामला खुलने के बाद ‘उस सरकारी बंगले’ को भूत बंगला कहा जाने लगा। उस समय जो जज वहां रह रहे थे, वो भी वह बंगला छोड़कर चले गए। इसके बाद कोई जज या सरकारी अधिकारी वहां जाने के लिए तैयार नहीं हुआ, और कई सालों तक वह बंगला खाली रहा। हालांकि, दिसंबर 2017 में उस बंगले को तोड़कर एक नया कोर्ट भवन बनाने के लिए नींव रखी गई। उस समय गुवाहाटी हाई कोर्ट के मुख्य जज अजित सिंह ने इसकी जानकारी दी।

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