सड़क के कारोबारी

जे सी बी की खुदाई – हास्य व्यंग्य

 

      डॉ अनीता यादव

मुझे विदेशियों का भारत में दौरे पर आना आश्चर्यजनक रूप से सुखद एहसास देता है। यही एहसास विदेशियों को भारतीय सड़के भी देती होंगी। शायद विदेशियों के भारत आगमन का उद्देश्य भी यही जानना है कि ‘सड़कों का निर्माण कैसे किया जाए ? ताकि अपने देश जाकर भारतीय सड़क निर्माण प्रविधि से लाभ उठा सकें ! उनकी सड़कें इतनी सफ्फाक और धूल धक्कड़ रहित होती हैं कि मिट्टी से जुड़े होने का एहसास उन्हें मिल ही नहीं पाता। यही एहसास हमारे यहां न केवल प्रकृति के कण-कण में ब्रह्म तत्व भांति व्याप्त है बल्कि हमारे रोम रोम में भी समाया हुआ है! इस आधार पर हम विश्व में सबसे अधिक मिट्टी से जुड़े हुए लोग हैं ! इसका क्रेडिट हमें सड़क निर्माण के लिए जिम्मेदार लोक निर्माण विभाग को देना ही चाहिए। यह विभाग इस काम के लिए ठेकेदारों को ठीक उसी तरह चुनता है जैसे कौवा मोती चुनता है। उधर तरीके से चुना हुआ ठेकेदार भली भांति जानता है कि कैसे एक ही सड़क को बार-बार बनाकर पैसा बनाना है। हाल ही में मेरे मोहल्ले की सड़क बनने चली थी।हालांकि वह बेचारी बनना नहीं चाहती थी, पर ठेकेदार ने उसे बनाने का बीड़ा उठा लिया था। यह दीगर बात है कि जो बीड़ा उठाया गया वह सड़क बनाने का नहीं खोदने का ही रहा।

उस दिन जेसीबी मेरे मोहल्ले में दुल्हन की गति से चली आ रही थी।और उसे मंगल ग्रह से आया जान पीछे-पीछे बेरोजगारों की भीड़ मंथर गति से साथ थी। जे सी बी ने अपने मजबूत पंजे से सड़क को मात्र दो दिन में ही खडंजे में तब्दील कर डाला। अचानक तीसरे दिन ठेकेदार को ख्याल आया कि उसके घर में तो शादी है। सो, वह सड़क निर्माण मझधार में छोड़ नव दंपति निर्माण’ हेतु चल पड़ा। अब अकेले मजदूर क्या करते?सो, वे भी ब्याह वाले घर में कुर्सी लगाने का पुण्य कमाने चल पड़े। शादी निपटते ही बंदा मात्र महीने भर में ही खडंजे की सुध लेने आ पहुंचा,जेसीबी के बोनट पर बैठकर। इस दौरान खडंजे ने लोगों के पैर तोड़ने, गाड़ियों के पहिये टेढ़े करने, स्कूटी की हवा समेत बाइकर्स की हेकड़ी निकालने सरीखे बहुत से श्रेष्ठ कर्म निपटा लिये थे। जेसीबी का पंजा खडंजे से फिर उलझ चुका था। देख कर लग रहा था कि अबकी बार तो काम पूरा हो कर ही मानेगा। देखते ही देखते खडंजा 4 फुट खाई में तब्दील हो उठा।सिर मुंडाते ओले पड़ते है लेकिन यहां बारिश पड़ी। बारिश ने भले ही गाड़ी और व्यक्तियों की आवाजाही पर लगाम लगा दी पर ठेकेदार बंदे के हौसले को बारिश भी हिला नहीं पाई।बिना हिले ही कुर्सी पर बैठे बैठे ही सीवर पाइप डलवा दिए गए। उखड़ी मिट्टी को गड्ढों में प्रॉपर तरीके से भरने की साहब को आवश्यकता महसूस न हुई। वह समझदार था। जानता था सड़क किनारे जो दुकानें और घर है वे कब काम आएंगे? आखिर सड़क इस्तेमाल तो उन्होंने ही करनी है।

खैर, हम खुश थे। चूंकि चुनाव सामने थे। हमारा एक मन था और उसमें भरा पूरा विश्वास था। विश्वास यह था कि सड़क बन जाएगी। पर हम बावले थे। भला सड़क निर्माण को सरकार निर्माण जितना आसान कैसे समझ लिया हमने? और एक बार फिर रेत की पगडंडियां बिछाकर ठेकेदार विदेश निकल लिया। वहां उसे जॉनसन साहब की यूनिवर्सिटी में ‘भारतीय सड़क निर्माण प्रविधि’ विषय पर व्याख्यान देना था। उधर विदेश में ठेकेदार उत्तम तारकोल के फायदे गिना रहा था तो इधर देश में हम उंगलियों पर दिन गिन रहे थे। दिन गुजरते रहे। फिर एक दिन अचानक सुबह जेसीबी की आवाज ने नींद में खलल डाली। हम और हमारी सोई उम्मीदें एक साथ उठ खड़ी हुई। लगा तारकोल वाली काली रोड़ी, बजरी समेत बिछनी शुरू हो गई है। उत्सुकता से बाहर झांका तो मालूम चला जेसीबी का पंजा एक बार फिर खुदाई पर लग चुका। खुदाई दर खुदाई देखकर कोई भी कह सकता था कि यहां जरूर ठेकेदार का कोहिनूर खो गया है। जब कोहिनूर याद आता है ठेकेदार चल पड़ता है।अब ठेकेदार को कोहिनूर मिले ना मिले लेकिन इस बार की होली के लिए हमें हौज जरूर मिल गया है। ऐसा होज़ जहां गार, कीचड़ और गटर का पानी सब समाया है।घर से केवल रंग लाना है। गटर का मुख्तार पानी भी तैयार है होली खेलने के लिए। तो आओ मिलकर होली का इंतजार करें! सड़क निर्माण का तो कर हम चुके!

 

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