एक एयरहोस्टेस के कारण टूट गई थी राम विलास पासवान की पहली शादी !

आज कांग्रेस का चुनाव चिन्‍ह अभी भले ही ‘हाथ या पंजा’ हो, लेकिन पहले ऐसा नहीं था। कांग्रेस ‘दो बैलों की जोड़ी’ के नाम पर वोट मांगती थी और ऐसा कई सालो तक रहा लेकिन फिर कांग्रेस को समय के साथ अपना चुनाव चिन्ह भी बदलना पड़ा….कांग्रेस की स्‍थापना कि बात की जाए तो इसकी स्थापना 1885 हुई थी। यह देश का सबसे पुराना राजनीतिक दल है… कांग्रेस का चुनाव चिन्‍ह तब से अब तक कम से कम दो बार बदला गया है… जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्‍व काल में कांग्रेस का चुनाव चिन्‍ह ‘दो बैलों की जोड़ी’ था। यह किसानों के साथ बेहतर तालमेल स्थापित करने का संकेत देता था, लेकिन 1969 में पार्टी विभाजन के बाद चुनाव आयोग ने इस चिन्ह को जब्त कर लिया और फिर कांग्रेस को अपना चुनाव चिन्ह बदलना पड़ा…

दरअसल विभाजन के बाद कामराज के नेतृत्व वाली पुरानी कांग्रेस को ‘तिरंगे में चरखा’ चुनाव चिन्‍ह मिला था जबकि नई कांग्रेस को ‘गाय और बछड़े’ का चिन्‍ह मिला… अब नई कांग्रेस को ‘गाय और बछड़े’ का चुनाव चिन्ह मिला था फिर 1977 में आपातकाल खत्म होने के बाद चुनाव आयोग ने ‘गाय के बछड़े’ के चिन्ह को भी जब्त कर लिया। उस दौर में हुए लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी रायबरेली से चुनाव हार गई थीं… यह चुनावी हार इंदिरा के लिए जहर के घूंट जैसा था… वह शंकराचार्य स्वामी चन्द्रशेखरेन्द्र सरस्वती का आशीर्वाद लेने पहुंची थीं। समझा जाता है कि इंदिरा गांधी की बात सुनकर शंकराचार्य मौन हो गए थे, लेकिन कुछ देर बाद उन्होंने अपना दाहिना हाथ उठाकर आशीर्वाद दिया…कांग्रेस के मौजूदा चुनाव चिन्‍ह ‘हाथ के पंजे’ की कहानी यहीं से शुरू हुई..

इंदिरा गांधी ने कांग्रेस (आई) की स्थापना की। बूटा सिंह चुनाव आयोग के कार्यालय गए तो चुनाव आयोग ने उन्हें चुनाव चिन्ह के रूप में हाथी, साइकिल और खुली हथेली का विकल्प दिया। इंदिरा गांधी ने पार्टी नेता आरके राजारत्नम के कहने और शंकराचार्य के आशीर्वाद वाले विचार के आधार पर ‘पंजा’ को चुनाव चिन्ह बनाने का निर्णय किया। पार्टी का ऐसा मानना था कि हाथ का पंजा शक्ति, ऊर्जा और एकता का प्रतीक है और फिर इस तरह कांग्रेस का चुनाव चिन्ह पंजा बन गया और आज भी कांग्रेस का चुनाव चिन्ह पंजा ही है जो कि शक्ति , ऊर्जा और एकता का प्रतीक है…

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