बिहार चुनाव में जनता मांगेगी 30 साल का हिसाब ,जानिए कैसे


जैसे जैसे बिहार चुनाव क़रीब आ रहे है वैसे वैसे सारी राजनैतिक पार्टियाँ अपने गुणगान गा रही है ।देश का पहला ऐसा चुनाव होगा जहां 30 साल का हिसाब माँगा जा रहा है । सभी पार्टियाँ एक दूसरे से हिसाब माँगने में लगी है। 30 साल के इस लम्बे समय में सभी विरोधी पार्टियों के राजनेता एक टाइम पर एक साथ पार्टी में भी थे। एक साथ काफ़ी लोगों ने काम भी किया और फिर समय बदला और विरोधी भी बन गए।

चुनाव में आम तौर पर 5 साल के हिसाब किताब की बात की जाती है। रूलिंग पार्टी 5 साल की उपलब्धियाँ का ब्योरा देती है। बिहार में रूलिंग पार्टी अपने 15 साल के कार्यकाल की बात कर रही है उनका कहना है की इन 15 सालों में ही सड़के बनी है , बिजली आइ है और तमाम सभी काम इसी समय में हुए है। इससे पहले तो सड़कों में गड्ढे थे, स्कूलों में ना पढ़ाई थी ना अस्पतालों में दवाई थी , कुछ भी कहीं नही था।

वहीं विपक्ष का कहना है की उनके 15 साल में जो भी काम उनकी सरकार ने किए थे वो सभी रूलिंग पार्टी ने तबाह कर दिए है। मतलब सभी सड़कों को खोद दिया गया है, कुल मिला कर कोई भी काम अच्छा नही किया गया है। एक दूसरे पर तौमद लगाना तो हर चुनाव का दस्तूर है । इन चीजों के बिना चुनाव प्रचार पूरा हो ही नही सकता है।

लेकिन अब समझने वाली बात यह है की जो आज के शत्रु है वो एक जमाने में दोस्त भी थे, एक ही पार्टी में रहकर सत्ता में आए और साथ काम भी किया है लेकिन पार्टी बदलने पर मत भी बदल जाते है ।

अब आपको बताते है सत्ता के 15 साल पहले की कहानी

1990 में जनता दल की सरकार बनी। लालू प्रसाद मुख्यमंत्री बने। भाजपा के 39 विधायकों ने सरकार का बाहर से समर्थन किया। वहीँ भाकपा माले (तब आइपीएफ) के छह विधायकों ने सरकार को नकारात्मक समर्थन दिया। आज के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 1990 से 1994 तक जनता दल में थे। वह सांसद थे। जनता दल की सरकार थी। 1994 में जनता दल से अलग हुए। 1995 से उन्होंने लालू प्रसाद को हटाने के संकल्प के साथ संघर्ष शुरू किया और वो अलग हो गए। आज राजद, कांग्रेस और वाम दल महागठबंधन बनाकर चुनाव लड़ रहे हैं, उसमें भाकपा माले भी शामिल है।

सत्ता के 15 साल बाद की कहानी

यह हिसाब भी रोचक है। नवम्बर 2005 से जून 2013 तक राज्य में जदयू-भाजपा की सरकार रही। जून में भाजपा सरकार से अलग हो गई। राजद, कांग्रेस और वाम दल अंदरूनी सहमति के आधार पर सरकार के बचाव में आ गए। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही रहे। 2014 के लोकसभा चुनाव में पराजय के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पद से इस्तीफा दे दिया। उन्हीं की पार्टी के जीतनराम मांझी मुख्यमंत्री बने। यह मई 2014 में सरकार जदयू की रही। फरवरी 2015 में फिर नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने। वे आज तक हैं। हां, फर्क यह पड़ा कि जिस राजद से पुराने और खराब 15 साल का हिसाब मांगा जा रहा है, वह भी नवम्बर 2015 से 26 जुलाई 2017 तक उपलब्धियों वाली सरकार का अंग रहा। उसी अवधि में तेजस्वी यादव उप मुख्यमंत्री थे। पद से हटने के बाद विपक्ष के नेता हैं। तेजस्वी भी उस सरकार से हिसाब मांग रहे हैं, जिसमें वह खुद शामिल थे। तेजस्वी के हटने पर उप मुख्यमंत्री के पद पर फिर सुशील कुमार मोदी आ गए। 15 में करीब चार साल तक भाजपा नीतीश सरकार से अलग रही।

कुल मिलाकर राजनीतिक दलों के मामले में बात यह बन रही है कि 30 वर्षों के अच्छे और खराब शासन में सबकी भागीदारी है। सब एक साथ भी थे और अलग भी हो गए पर राजनीती कभी नहीं रुकी। और एक दूसरे से सवाल से आक्रमण करना तो हर पार्टी का जन्मजात अधिकार है।

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