आस्ट्रेलिया और कनाडा की दाल से प्रतिस्पर्धा कर रही श्रावस्ती व बलरामपुर की मसूर दाल

लखनऊ। यूपी सरकार के ओडीओपी योजना के तहत चल रही योजनाओं और चार पिछड़े जिलों का अध्ययन करने के लिए लखनऊ विश्वविद्यालय ने एक टीम का गठन किया है। आईसीएसएसआर नई दिल्ली द्वारा आईएमपीआरइएसएस स्कीम के तहत डाक्टर रोली मिश्रा और डाक्टर नागेन्द्र कुमार मौर्या ने बलरामपुर और श्रावस्ती जिले का अध्ययन कर लिया है। इसके तहत यह निष्कर्ष निकाला है कि ओडीओपी के तहत लोगों को सही ढंग से जागरूक किया गया तो यह गेम चेंजर साबित होगा।

इस परियोजना में पूर्वी यूपी के चार एस्पिरेशनल जिलों को चुना गया है। हर जिले का अपना विशिष्ट उत्पाद है, जिसे यूपी सरकार ने अपनी ओडीओपी योजना के तहत वर्गीकृत किया है। इस परियोजना का उद्देश्य इन जिलों के पिछड़ेपन के कारणों को समझना है और क्या ओडीओपी योजना उन क्षेत्रों में आय और रोजगार बढ़ाने के लिए गेम चेंजर होगी और क्या यह पलायन को कम करने में सहायक होगी।

श्रावस्ती और बलरामपुर के प्रतिनिधि उत्पाद के रूप में सरकार द्वारा घोषित उत्पादों की व्यवहार्यता का परीक्षण करने पर, हरैया गांव, तुलसीपुर ब्लॉक और भगवतीगंज में अपने क्षेत्र के दौरे के दौरान अनुसंधान दल ने पाया कि बलरामपुर के मामले में लाल मसूर (मसूर दाल) जो कि जिले का उत्पाद घोषित है। ऑस्ट्रेलिया और कनाडा से आयातित दाल से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना कर रहा है, क्योंकि किसान जागरूक नहीं हैं। उन्हें लाल मसूर के उत्पादन के लिए सब्सिडी नहीं मिल रही है।

एक अन्य जिले श्रावस्ती के मामले में, जहां थारू के जनजातीय शिल्प को जिले के प्रतिनिधि उत्पाद के रूप में घोषित किया गया है। सिरसिया ब्लॉक के बच्छाही, कटकुइयां, रानीपुर गांवों में टीम ने पाया कि कला का व्यवसायीकरण नहीं किया गया है। अधिकांश थारू ओडीओपी योजना के बारे में अनभिज्ञ हैं और उत्पादित आदिवासी कला अपने स्वयं के उपभोग के लिए हैं न कि बाजार के लिए।

दोनों उत्पादों के मामले में, जो जिले के प्रतिनिधि उत्पाद बनाए गए हैं, उनको फैलाने और यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि किसानों को लाभार्थियों की सूची में शामिल किया जाना चाहिए। थारू उत्पाद के बारे में, उन्हें उचित प्रशिक्षण और टूल किट देने की आवश्यकता है, तभी उनके उत्पाद को जिले की विशेषता के रूप में सफलतापूर्वक शीर्षक दिया जा सकता है। सर्वेक्षण टीम द्वारा आयोजित प्रश्नावली और फोकस समूह चर्चाओं के माध्यम से डेटा के डोर-टू-डोर संग्रह से निष्कर्ष निकले हैं।

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