‘बिना पति को तलाक दिए किसी गैर के साथ रहना… न तो लिव इन.. न शादी, कोर्ट नहीं देगा सुरक्षा

बदलते समय के साथ रिश्तो में भी कई बदलाव देखने को मिल रहे है। वही शादी के बाद तलाक और किसी और के साथ रहना यह रिश्तो की एक नै कड़ी को जोड़ता है वही इसी को लेकर आदत में कई बार सुनवाई की गई है। और इस पक्ष को लेकर आज अदालत ने अपना फैसला भी सुनाया है।

कोर्ट का फैसला

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि अगर कोई विवाहित महिला बिना अपने पति को तलाक दिए किसी दूसरे पति के साथ रहती है तो वह कोर्ट से संरक्षण का अधिकारी नहीं है।

कोर्ट में उपस्थित आशा देवी और सूरज कुमार उस याचिका पर सुनवाई कर रहे थे। जिसमें उन दोनों ने कहा था कि वे दोनों व्‍यस्‍क हैं और ‘पति पत्‍नी की तरह रहते हैं’ इसलिए किसी को उनके जीवन में हस्‍तक्षेप करने का अधिकार नहीं है।

Live-in relationship between consenting adults not an offence: Allahabad High Court

याचिका करता की दलील

दोनों ने अपनी याचिका में कहा था कि उन्‍हें अपने परिवार वालों से सुरक्षा और संरक्षण दिया जाए। इस याचिका का विरोध करते हुए सरकारी वकील ने जिक्र किया कि आशा देवी का पहले महेश चंद्र से विवाह हुआ था। बाद में वह बिना तलाक दिए सूरज कुमार के साथ रहने लगी थी जो कि अपराध है, इसलिए उसे किसी तरह का संरक्षण नहीं दिया जा सकता।

Allahabad City Allahabad High Court said married woman lives like husband and wife with another man it cannot be considered Live in Relationship

‘विवाह छिपाकर अपराध किया’

जस्टिस एसपी केसरवानी और जस्टिस वाईके श्रीवास्‍तव ने सोमवार को सुनवाई के दौरान कहा कि आशा देवी कानून अभी भी महेश चंद्र की पत्‍नी है। चूंकि आशा देवी विवाहित हैं इसलिए याचिकाकर्ताओं का यह काम, खासकर सूरज कुमार का आईपीसी की धारा 494 (पति या पत्‍नी के जीव‍ित रहते दोबारा शादी करना)/495 (जिसके साथ दोबारा विवाह हुआ है उससे पहले का विवाह छिपाना)।

‘न तो लिव इन है न शादी’

जजों का कहना था कि इस तरह का संबंध न तो लिव इन में आता है और न ही यह विवाह ही माना जा सकता है। कोर्ट ने याचिका ठुकराते हुए कहा था, ‘याचिकाकर्ताओं को कानूनन ऐसा कोई अधिकार नहीं मिला जिसके आधार पर वे अदालत में परमादेश रिट ( मैंडेमस रिट) दायर कर सकें।’

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