जानिए क्या है वो वजह जिसके चलते लुप्त हो रही है बुंदेलखंड की पुरानी विरासत

जालौन: उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में अलग अलग नाम से अपनी पहचान रखने वाली आज की चमक दमक में लुप्त होती जा रही हैं। आज की युवा पीढ़ी इनके नाम या उपयोग के बारे में नहीं जानते। जालौन के उरई निवासी वरिष्ठ इतिहासकार हरिमोहन पुरवार ने आज यहां कहा कि कुछ घरेलू उपयोग की चीजे हैं जिनके बारे में अब के बच्चों को पता नहीं है ।हम जिस क्षेत्र में रहते हैं वहां हमारी परम्परा हमारे संस्कार स्थापित होते हैं । इन परम्परा में लोक विरासत को संजोये रखते हैं ।
आज हम उन्हें इसलिए भूलते जा रहे हैं क्योकि अब हमारे जीवन में उनकी कोई खास जगह नही है। जब तक कबाड़ी या रद्दी वाला या हमारा मन नही आया तब तक धरोहर हमारे आस पास पड़ी रहती है।

बुंदेलखंड
बुंदेलखंड

ताला बुंदेलखंड में तारो और चौखरौ भी कहलाता है

श्रज्ञी पुरवार ने ऐसी ही कुछ चीजों का जिक्र किया। घर कि सुरक्षा का जिम्मेदार साथी ताला भी है। ताला तो हर कोई जानता है लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि लोहे से बनने वाला यह ताला बुंदेलखंड में तारो और चौखरौ भी कहलाता है। बुंदेलखंड की आभूषण संस्कृति का महत्त्वपूर्ण उदाहरण पेजना है जो चांदी से बनता है । आर्थिक अभाव में अब गिलट का भी .उपयोग होता है । आज इसका चलन पूर्ण रूप से बंद हो गया है । दतिया का पेजना बुंदेलखंड एवं आस पास में प्रसिद्ध रहें हैं।

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ऐसा ही एक कलमदान है जो लोहे का बना होता था। चित्रकार अपनी तूलिका यानी कलम को इसी और रखते थे । जब वह चित्र का निर्माण कर रहें होते थे तब कलम नीचे रखने से उसका ब्रुश एवं रंग दोंनों गंदे ना हो इसलिए कलम दान महत्त्व रखता था।

लालटेन की आवश्यकता शायद अब गाँव में भी नही है। कौन कांच चिमनी साफ करें कौन घासलेट या मिट्टी का तेल डालें बहुत सारी बातें जो अब असंभव हैं लेकिन एक समय था जब शाम होने से पहले राख या मिट्टी से कांच को साफ किया जाता था। किसकी लालटेन कितनी चमक रही है। यह प्रतिस्पर्धा का भाव भी रहता था।

घर , मंदिर में आचमनी का उपयोग पूजा में किया जाता है। आचमनी पीतल या तांबा से बनी होती है । जब पूजा करते वक्त आचमन करते हैं या पूजा उपरांत जल चरणामृत प्रदान करते हैं तब आचमनी से ही इसे किया जाता है ।
बुंदेलखंड में स्थानीय व्यवस्था से जरूरत की चीजें घर पर ही निर्मित होती है उनमें एक ढिकौली है जो मिट्टी और कागज से बनाई जाती है । पुराने कागज को पानी में गलाते हैं । एक या दो दिन बात जब वह गल जाता है तब उसे कूटा जा है । बाद में उसमें काली मिट्टी मिलाई जाती है तथा मिट्टी की नाद या पीतल के नाद आकार के बर्तन पर उसे लेप किया जाता है । सूखने पर उसे खड़िया मिट्टी से रंग दिया जाता है ।

सुन्दरता को निहारने के लिए जिस वस्तु का उपयोग किया जाता है वह दर्पण,कांच या शीशा के नाम से जाना जाता है ।बुंदेलखंड में इसे तख्ता कहते हैं । तख्ता एक मोटी चादर से बना होता है जिसमें मोटा कांच लगा रहता है । यह गिरने पर टूटता नहीं है । पहले इसे आंगन या किसी दीवार पर लगाया जाता है ।

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