ईशान खट्टर और अनन्या पांडेय की फ़िल्म “खाली-पीली दर्शकों“ को भी नहीं भा रही !

– ए॰ एम॰ कुणाल

अभिनेता ईशान खट्टर और अभिनेत्री अनन्या पांडेय की फ़िल्म ‘खाली-पीली’ यूटीटी प्लेटफॉर्म- ज़ीप्लेक्स पर रिलीज़ हो चुकी है। इसके अलावा बेंगलरू और गुरग्राम के सिनेमा हॉल पर भी यह फिल्म रिलीज़ हुई है। इस फ़िल्म को यूटीटी प्लेटफॉर्म ज़ीप्लेक्स पर देखने के लिए जी-5 के मेम्बर्शिप के अलावा आपको अलग से 299 रुपय खर्च करने पड़ेंगे। उसके बाद छह घंटे के लिए ज़ीप्लेक्स पर ये फ़िल्म देख सकते है। ईशान खट्टर और अनन्या पांडेय की फ़िल्म “खाली-पीली“ पहले से बन कर तैयार थी पर कोरोना के कारण लेट से रिलीज़ की गई। सच तो ये है कि सुशांत सिंह राजपूत के बाद नेपोटिज्म के ख़िलाफ़ मुहिम की शिकार ईशान खट्टर और अनन्या पांडेय की फ़िल्म भी हुई थी। फ़िल्म के ट्रेलर को 1.8 मिलियन डिसलाइक और मात्र 166 हज़ार लाइक मिला था। जिसके कारण फ़िल्म की रिलीज़ डेट को टाल दिया गया था। देखा जाय तो कोरोना के कारण घर पर ख़ाली पीली बैठे दर्शकों के चलते ही ओटीटी प्लेटफॉर्म पर फ़िल्में चल रही हैं।

‘खाली-पीली’ नब्बे के दशक की बॉलीवुड मसाला फ़िल्म है। ये फ़िल्म आपको महेश भट्ट की फिल्म “सड़क” की याद दिलाएगी। इस फ़िल्म का हीरो ईशान खट्टर भी एक टैक्सी ड्राइवर है और उसकी हीरोईन अनन्या पांडेय जिस्मफरोशी के अड्डे से भागती है। जबकि विलन के रोल में जयदीप अहलावत का किरदार “महारानी” को ध्यान में रख कर गढ़ा गया है। अगर महेश भट्ट की फिल्म सड़क-2 की जगह यह फ़िल्म सिक्वल होती तो ज़्यादा बेहतर होता। वैसे फ़िल्म को देख कर लगता है कि निर्देशक मक़बूल ख़ान सड़क जैसा फ़िल्म बनाना चाहते थे।

मक़बूल ख़ान की फ़िल्म “ख़ाली पीली” की आधी कहानी फ़्लेशबैक में है। हर एक सीन के बाद फ़िल्म फ़्लेशबैक में चली जाती है। शायद अबतक की सबसे ज़्यादा फ़्लेशबैक दिखाने का रिकोर्ड इस फ़िल्म के नाम हो सकता है। बीस से ज़्यादा बार फ़िल्म की कहानी फ़्लेशबैक में जाती है, जो फ़िल्म में रोमांच बनाये रखता है। फ़िल्म के निर्देशक मक़बूल ख़ान का ये प्रयोग फ़िल्म की यूएसपी है।

‘खाली-पीली’ फ़िल्म की कहानी ब्लैकी उर्फ़ विजय (ईशान) और पूजा (अनन्या) के इर्द-गिर्द घुमती है। बचपन में बिछड़े दो प्रेमी जवानी में मिलते है पर एक दूसरे को इंटर्वल के बाद पहचानते है। दोनों की बचपन की कहानी फ़्लेशबैक में साथ-साथ चलती है। ब्लैकी (वेदांत देसाई) और पूजा (देशना दुग्गड) एक दूसरे को पसंद करते है पर उनकी लव स्टोरी में यूसुफ़ (जयदीप अहलावत) और सेठ हेमंत चौकसी ( स्वानंद किरकिरे) विलेन बनकर आते है। यूसुफ़ एक पिंप है, जो हेमंत चौकसी के लिए जिस्मफरोशी का धंधा करता है। वहाँ रहने वाली मासूम पूजा पर हेमंत चौकसी का दिल आ जाता है। वह उसके जवान होने का इंतज़ार करता है। जब यूसुफ़ को ब्लैकी और पूजा के प्यार के बारे में पता चलता है तो वह ब्लैकी को डरा कर भगा देता है। बड़े होने पर पूजा शादी वाले दिन भाग जाती है और टैक्सी ड्राइवर विजय से टकराती है। एक दूसरे से अनजान दोनों अचानक मिलते है। उसके बाद कहानी में टर्न आता है।

पैसे के लालच में विजय पूजा की मदद करता है पर पूजा के चक्कर में वह मुंबई क्राइम ब्रांच के अफ़सर तावड़े (ज़ाकिर हुसैन) और यूसुफ़ को अपना दुश्मन बना लेता है। जब तक विजय को अपने बचपन के प्यार के बारे में पता चलता है, वह उसे एक बार फिर से खो देता है। उसके बाद क्या होता है? ये जानने के लिए आपको फ़िल्म देखनी चाहिए।

बतौर लीड एक्टर ईशान ख़ट्टर की यह तीसरी फ़िल्म है। फ़िल्म ‘धड़क’ की तरह एक बार फिर ईशान ख़ट्टर ने अच्छा काम किया है। मुंबई का टपोरी के रोल में क्लीन शैव की जगह हल्की दाढ़ी में काफ़ी जंचें है। मुंबइया स्टाइल में बात करते हुए ईशान काफ़ी सहज लगे है। ईशान की अदायगी में उनके बड़े भाई अभिनेता शाहिद कपूर की झलक मिलती हैँ। डांस में तो वह हूबहू शाहिद लगते हैँ । इस रेस में बने रहने के लिए उन्हे कुछ नया लगातार करते रहना पड़ेगा।

‘स्टूडेंट्स ऑफ़ द ईयर’ से बॉलीवुड में डेब्यू करने वाली अभिनेत्री अनन्या पांडेय पर फ़िल्म के निर्देशक ने काफ़ी भरोसा जताया है। अनन्या का रोल ईशान की टक्कर का है। फ़िल्म अस्सी और नब्बे के दशक की है पर अनन्या उस दौर की हिरोईनो की तरह हीरो को मदद के लिए नहीं बुलाती बल्कि उसके साथ फ़ाइट करती नज़र आती है। अनन्या को ऐक्शन सीन करते देख उनके फ़ैन सिटी ज़रूर बजायेंगे।

उनके अलावा बाल कलाकार वेदांत देसाई और देशना दुगड़ ने अपने शानदार अभिनय से ‘खाली-पीली’ फ़िल्म की गाड़ी को सड़क से उतरने नहीं दिया है। अभिनेता जयदीप अहलावत ने एक बार फिर से साबित कर दिया है कि इस दौर के वे एक बेहतरीन कलाकार है। पूरी तरह से किरदार में नज़र आते है। अभिनेता सतीश कौशिक और गीतकार से अभिनेता बने स्वानंद किरकिरे इस फ़िल्म का सरप्राइज़ पैकेज हैं। अभिनेता ज़ाकिर हुसैन ने हमेशा की तरह अच्छा काम किया है। इसके अलावा ईशान खट्टर के पिता के किरदार में एक छोटे से रोल में अभिनेता अनूप सोनी काफ़ी प्रभावशाली लगे है।

फ़िल्म की कहानी में नयापन ना होने के बावजूद निर्देशक मक़बूल ख़ान अंत तक दर्शकों को बांधने में सफल रहे है। एक कमजोर कहानी पर फ़िल्म बनाना आसान नहीं होता पर मसाला फ़िल्म के नज़रिए से यह एक टाइम पास फ़िल्म है। यश केसरवानी और सीमा अग्रवाल के स्क्रीनप्ले का बेस्ट पार्ट फ्लैशबैक की कहानी है। फ्लैशबैक के कारण फ़िल्म की कहानी रोमांचक लगती है। फ्लैशबैक में विजय और पूजा के बचपन की कहानी में कुछ नयापन है। फ्लैशबैक की कहानी फ़िल्म को बांधे रखता है। फ़िल्म का संगीत विशाल-शेखर ने दिया है। फ़िल्म में तीन गाने है, जो फ़िल्म की कहानी के रफ़्तार को रोकते है। संगीत ऐसा नहीं हैँ जो दर्शकों को याद रह सके ।

इस फ़िल्म को करोना के कारण घर में ‘खाली-पीली’ बैठे दर्शकों से काफ़ी उम्मीदें है। के कारण ही फ़िल्म चल पाएगी। ईशान खट्टर और अनन्या पांडेय के फ़ैन 300 रुपय तो खर्च कर ही सकते है। नेपोटिज्म की शिकार ईशान खट्टर और अनन्या पांडेय लोगों का कितना दिल जीत पाती है, ये देखना दिलचस्प होगा।

फ़िल्म-खाली-पीली
कलाकार- ईशान खट्टर, अनन्या पांडेय, जयदीप अहलावत, ज़ाकिर हुसैन, अनूप सोनी, सतीश कौशिक, स्वानंद किरकिरे, वेदांत देसाई और देशना दुगड़।
निर्देशक- मक़बूल ख़ान
निर्माता- अली अब्बास ज़फ़र/ज़ी स्टूडियो
यूटीटी प्लेटफॉर्म- ज़ीप्लेक्स

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