लाल, सफेद, गुलाबी के बाद अब आई स्मार्ट बॉल; जानिए आखिर इससे कितना बदल जाएगा क्रिकेट

एक तरफ भारत और इंग्लैंड के बीच टेस्ट सीरीज चल रही है, वहीं दूसरी तरफ 26 अगस्त से वेस्टइंडीज में कैरेबियन प्रीमियर लीग (CPL) शुरू हो गई है। इस लीग में क्रिकेट को एक नई तकनीक मिली है। क्रिकेट की दुनिया में हो रहा ये नया प्रयोग आने वाले समय में क्रिकेट देखने का आपका नजरिया बिल्कुल बदल सकता है। दरअसल, CPL में एक खास तरह की गेंद का इस्तेमाल हो रहा है। इस बॉल को स्मॉर्ट बॉल नाम दिया गया है। किसी पेशेवर लीग में पहली बार इस स्मॉर्ट बॉल का इस्तेमाल हो रहा है।

आखिर ये स्मार्ट बॉल क्या है? ये काम कैसे करती है? आम कूकाबुरा बॉल से ये कितनी अलग है? आइए जानते हैं…

स्मार्ट बॉल क्या है?
ऑस्ट्रेलिया की बॉल बनाने वाली कंपनी कूकाबुरा ने टेक इनोवेटर्स स्पोर्ट्सकोर के साथ मिलकर स्मॉर्ट बॉल बनाई है। ये दुनिया की पहली ऐसी बॉल है जिसके अंदर माइक्रोचिप लगी होती है। सेंसर वाली ये खास चिप रियल-टाइम में बॉल की स्पीड, स्पिन, पावर जैसी जानकारी इकट्ठा करती है। ये जानकारी खासतौर पर डिजाइन ऐप के जरिए स्मार्टवॉच, मोबाइल, टैबलेट, कंप्यूटर या लैपटॉप पर देखी जा सकती है। कंपनी का दावा है कि रियल टाइम में मिलने वाला फीडबैक कोच, खेल और इसके ऑफिशयल काम में क्रांतिकारी बदलाव लाएगा। इसके साथ ही ये इस खेल के अनुभव को भी पूरी तरह से बदल देगा।

ये काम कैसे करती है?
बॉल जैसे ही बॉलर के हाथ से रिलीज होगी, बॉल के अंदर लगा सेंसर एक्टिव हो जाता है। बॉल के अंदर लगी चिप बॉल की स्पीड, स्पिन और पावर को अलग-अलग स्टेज पर ऑब्जर्व करके तत्काल उसकी जानकारी देती है। बॉलर के हाथ से रिलीज होने के बाद रिलीज के वक्त स्पीड का डेटा आता है, बॉल बाउंस होने के पहले प्रि-बाउंस स्पीड और बाउंस होने के बाद पोस्ट-बाउंस स्पीड का डेटा मिलता है। इसी तरह स्पिन के लिए बॉल के रेवोल्यूशन का डेटा भी रिलीज, प्रि-बाउंस और पोस्ट-बाउंस के वक्त मिलता है। बॉलर जब बॉल को रिलीज करता है तो उस वक्त उस पर कितना फोर्स लगाता है इस पावर का डेटा भी ये चिप बताती है। कंपनी ने इस बदलाव के लिए एक टैग लाइन भी दी है। For the first time, the ball will talk यानी पहली बार गेंद बात करेगी।

स्मार्ट बॉल को बनाने वालों का क्या कहना है?
इस बॉल को बनाने वाली टेक इनोवेटर्स स्पोर्ट्सकोर के चेयरमैन पूर्व ऑस्ट्रेलियाई तेज गेंदबाज माइकल कास्प्रोविज हैं। कास्प्रोविज स्मार्ट बॉल को क्रांति बताते हैं। वो कहते हैं कि ये केवल एक हाई-परफॉर्मेंस टूल नहीं है। बल्कि, इस खेल के प्रेमी और दर्शक खुद को इस खेल के और करीब महसूस करेंगे। या यूं कहें कि वो अब गेंद के दिल को देख सकेंगे।

आम कूकाबुरा बॉल से कितनी अलग है ये स्मॉर्ट बॉल?
कंपनी का कहना है कि स्मॉर्ट बॉल बिल्कुल आम बॉल की तरह ही है। इसका वजन भी उतना ही है जितना आम कूकाबुरा बॉल का होता है। ये आम कूकाबुरा बॉल की तरह ही व्यवहार करेगी। यानी, बॉल का लुक और फील बिल्कुल नहीं बदला है। बस उसके कोर में बदलाव किया गया है।

बॉलर के हाथ से रिलीज होने के कितनी देर बाद बॉल से जुड़ा डेटा मिलेगा?
बॉल के कोर में लगी चिप एक ऐप से लिंक होगी। ऐप पर बस बटन दबाते ही रिकॉर्डिंग शुरू हो जाएगी। गेंदबाज के बॉल डिलीवर करते ही डेटा कलेक्ट होता है। ये डेटा ब्लूटूथ के जरिए जमीन पर रखे राउटर तक पहुंचता है। वहां से इसे क्लाउड पर भेजा जाता है। यहां से डेटा ऐप पर संख्याओं के रूप में दिखाई देता है। गेंद को फेंके जाने से लेकर फाइनल रिजल्ट तक की पूरी प्रॉसेस में औसतन 5 सेकेंड का समय लगता है।

ये बॉल इंटरनेशनल क्रिकेट में कब से इस्तेमाल हो सकती है?
कंपनी का कहना है कि अभी इस बॉल की पर्याप्त टेस्टिंग नहीं हुई है। हालांकि, कंपनी को उम्मीद है कि अगले साल तक वो इस स्थिति में होगी कि बॉल को आईसीसी और सदस्य देशों के बोर्ड को इस्तेमाल करने के लिए ऑफर कर सके। CPL के बाद कंपनी कई और मेजर टी-20 लीग में इस बॉल का इस्तेमाल करने का प्लान कर रही है।

किन देशों में इस्तेमाल होती है कूकाबुरा बॉल?
कूकाबुरा बॉल ऑस्ट्रेलिया, पाकिस्तान, साउथ अफ्रीका, न्यूजीलैंड, श्रीलंका, बांग्लादेश, जिम्बाब्वे और अफगानिस्तान टेस्ट मैच के लिए इस्तेमाल करते हैं। ये ऑस्ट्रेलिया में बनाई जाती है। इसकी सिलाई मशीन से होती है। इसकी सीम दबी हुई होती है। शुरुआती 20 से 30 ओवर ये गेंद तेज गेंदबाजी के लिए बेहतर होती है। इसके बाद ये बल्लेबाजी के लिए बेहतर होती है। सीम दबी होने के कारण ये गेंद स्पिनरों के लिए अन्य बॉल की तुलना में कम मददगार होती है।

कूकाबुरा की कहानी: इस कंपनी की शुरुआत 1890 में A.G. थॉमसन ने की थी। उस वक्त ये कंपनी घोड़े की हार्नेस और काठी बनाने का काम करती थी। बाजार में कारों के आने के बाद कंपनी संकट के दौर से गुजरने लगी तो उसने क्रिकेट बॉल बनाना शुरू किया। ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न में शुरू हुई कंपनी आज क्रिकेट और हॉकी बॉल और इन खेलों से जुड़े सामानों को बनाने के लिए ही जानी जाती है। वनडे और टी-20 में इस्तेमाल होने वाली सफेद बॉल सबसे पहले 1978 में बनी। इसे कूकाबुरा ने ही बनाया था। 2015 में पहली बार टेस्ट में पिंक बॉल का इस्तेमाल हुआ। इसे भी कूकाबुरा ने ही बनाया था।

बाकी देश कौन सी बॉल इस्तेमाल करते हैं?
इंग्लैंड, आयरलैंड और वेस्टइंडीज में ड्यूक बॉल का इस्तेमाल होता है। वहीं भारत में होने वाले मैचों में SG बॉल का इस्तेमाल होता है। ड्यूक बॉल इंग्लैंड में बनती है। इसकी सीम उभरी हुई होती है। इसकी सिलाई हाथ से होती है। इसकी हार्डनेस 60 ओवर तक बनी रहती है। इस गेंद को तेज गेंदबाजों के लिए मददगार माना जाता है। इससे 20 से 30 ओवर बाद ही रिवर्स स्विंग मिलने लगती है। जबकि कूकाबुरा और SG बॉल 50 ओवर के आसपास रिवर्स स्विंग होनी शुरू होती हैं। कंपनी इंटरनेशनल क्रिकेट शुरू होने से 117 साल पहले यानी 1760 से ड्यूक गेंद बना रही है।

भारत अकेला देश है जो SG बॉल का इस्तेमाल करता है। ये बॉल भारत में ही बनती है। इस बॉल की सीम उभरी हुई होती है। इसकी सिलाई भी ड्यूक की तरह हाथ से की जाती है। इस गेंद को स्पिनर्स के लिए मददगार माना जाता है। नए बदलावों के बाद इससे स्पिनर्स के साथ ही तेज गेंदबाजों को भी मदद मिलने की उम्मीद है। 1931 में केदारनाथ और द्वारकानाथ आनंद नाम के दो भाइयों ने सियालकोट में इस कंपनी की शुरुआत की। बंटवारे के बाद परिवार आगरा आ गया। 1950 में मेरठ से कंपनी की फिर शुरुआत हुई।

बॉल के इस्तेमाल को लेकर ICC का कोई नियम नहीं
बॉल के इस्तेमाल को लेकर अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (ICC) के कोई खास दिशा-निर्देश नहीं हैं। सभी देश अपनी कंडीशन के लिहाज से बॉल का इस्तेमाल करते हैं। जिस देश में सीरीज हो रही होती है, वो देश अपनी पसंद के हिसाब से बॉल का इस्तेमाल करता है। कोई देश चाहे तो एक सीरीज अलग बॉल से खेले, दूसरी सीरीज देश में ही अलग बॉल से खेलना चाहे तो वो ऐसा भी कर सकता है।

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