गुवाहाटी : कांग्रेस और भाजपा को एक ही श्रेणी में रखना दुर्भाग्यपूर्ण : देवव्रत सैकिया

गुवाहाटी। असम विधानसभा में कांग्रेस लेजिसलेटिव पार्टी (सीएलपी) के नेता देवव्रत सैकिया ने कहा है कि कई नवगठित राजनीतिक दलों द्वारा कांग्रेस और भाजपा को एक ही श्रेणी में रखकर आरोप लगाना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस और भाजपा के कार्य और आदर्श दोनों में ही अंतर है। और, भाजपा अपने इस अंतर को बखूबी दिखा चुकी है, नागरिकता संशोधन कानून लाकर।

उल्लेखनीय है कि सैकिया राज्य के सभी गैर भाजपा दलों को एकत्रित करने की मुहिम में लगे हुए हैं। कांग्रेस नेता सैकिया ने राज्य के सभी गैर भाजपा दलों से अपील की है कि सभी दलें कांग्रेस के साथ मिलकर भाजपा को पराजित करने की मुहिम में शामिल हों। उन्होंने कहा कि कांग्रेस हमेशा ही राज्य एवं देश के नागरिकों के हितों के लिए कार्य करती रही है।

उन्होंने राज्य में बन रहे नए राजनीतिक दलों को लेकर खुशी जाहिर करते हुए कहा कि ये सभी दल भाजपा के विरोध से ही बन रहे हैं। सभी दलों को एकत्रित होने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि अखिल गोगोई के नेतृत्व में कृषक मुक्ति संग्राम समिति भी एक नया राजनीतिक दल बनाने की घोषणा कर चुकी है। उन्होंने कहा कि इन सभी शक्तियों को एकत्रित होकर भाजपा के विरुद्ध चुनाव लड़ना चाहिए, तभी जाकर भाजपा को पराजित किया जा सकता है।

अब सवाल यह उठता है की भाजपा को हराने के नाम पर बीते कई चुनावों में करारी हार का सामना कर चुकी पार्टियां एक बार फिर से महागठबंधन की राह पर चलने के लिए तैयार होंगी? कोई भी दल कांग्रेस सरकार के बीते वर्षो के शासनकाल के दौरान हुए भ्रष्टाचार से लेकर तानाशाही शासन तक का ठीकरा अब अपने सर नहीं फोड़ना चाह रही हैं। सभी दलें यह देख चुकी है कि कांग्रेस और एआईयूडीएफ के साथ जाकर उन्हें कभी भी जनता का विश्वास हासिल नहीं हो सकेगा। क्योंकि, ये दलें बीते दशकों में अपना विश्वास जनता के बीच पूरी तरह खो चुकी है। नई पीढ़ी के मतदाता जब तक चुनाव में मतदान के अधिकारी फिर से नहीं बनते हैं, तब तक के लिए कांग्रेस की एक प्रकार से छुट्टी हो चुकी लगती है।

दूसरी बात यह कि यदि सभी गैर भाजपा पार्टियां चुनाव में एकत्रित होकर चुनाव लड़े तो आखिर उन नेताओं की महत्वाकांक्षाओं का क्या होगा, जो मुख्यमंत्री और मंत्री बनने के लिए राजनीति के मैदान में अलग-अलग पार्टियों से दाव लगा रहे हैं। राज्य में फ़िलहाल गैर भाजपा पार्टियां इतनी है कि यदि सभी एक मंच पर एकसाथ आ जाएं तो किसी भी पार्टी को 10 से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने की जगह नहीं मिलेगी।

क्या कांग्रेस अपने सहयोगी दलों के लिए राज्य की 126 विधानसभा सीटों में से 116 विधानसभा सीटें छोड़ सकेगी? क्या एआईयूडीएफ के विधायक अपनी सीटें असम छात्र संघ (आस), असम जातीयतावादी युवा छात्र परिषद (अजायुछाप), कृषक मुक्ति संग्राम समिति आदि के उम्मीदवारों के लिए छोड़ देंगे? क्या सभी दलें मिलकर अखिल गोगोई को या फिर लूरिन ज्योति गोगोई को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार बना सकेंगे? क्या देवव्रत सैकिया सीएलपी लीडर का पोस्ट छोड़ सकेंगे? कई ऐसे सवाल हैं, जिनके जवाब गैर भाजपा दलों की एकता की बात करने वालों के पास नहीं हैं।

सच्चाई तो यह है कि असम प्रदेश कांग्रेस अपने पार्टी के अंदर ही एकत्रित नहीं हो पा रही है। पार्टी में इन दिनों कितना गुट चल रहा है इसकी गिनती करना भी मुश्किल है। सभी की अपनी डफली, अपना राग जनता को सुनाई दे रहा है। पार्टी आलाकमान सोनिया गांधी अब उम्रदराज हो चुकी है। राहुल गांधी का नेतृत्व कुछ खास किस्म के लोगों के अलावा पार्टी के किसी भी नेताओं को जम नहीं रहा है। ऐसे में गैर भाजपा दलों की एकजुटता की बात छोड़ कर देवव्रत सैकिया जैसे नेताओं को कांग्रेस की एकजुटता को लेकर अधिक सोचने की जरूरत है। क्योंकि, उनके पिता हितेश्वर सैकिया की विरासत में उन्हें मिली राजनीति को जिंदा रखने के लिए आखिरकार कांग्रेस का जिंदा रखना अत्यंत आवश्यक है। लेकिन, राजनीति में कुछ भी आवश्यक नहीं है। न नीति, ना आदर्श। बस रंग बदलने की कला में माहिर होना चाहिए। फिर तो राजनीतिक समन्वय।

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