इन दो देशों पर बरस रहा है चीन

चीन के जैविक हथियार को लेकर अब तक जो खबरे छन छन कर आती रही हैं उनसे अब पर्दा हटता नज़र आ रहा है। लगभग ये साफ़ हो गया है कि चीन के बुहान में जिस वायरस को तैयार किया जा रहा था वो किसी और मकसद से नहीं बल्कि एक साजिश का हिस्सा था।  जिसका टारगेट खासतौर पर अमेरिका और भारत है। जानकार भी अब मान रहे हैं कि चीन की साजिश खुद को सुरक्षित कर दुनिया के कई देशों को तहस नहस करने की थी।  यही वजह है कि चीन ने भारत को महामारी से जूझता देख तिब्बत में नए कमांडर को भी तैनात कर दिया है। चीनी सेना के पश्चिमी थिएटर कमांड के अंदर आने वाले तिब्बत सैन्य क्षेत्र के नए कमांडर का नाम लेफ्टिनेंट जनरल वांग काई है। जी हां, एक तरफ भारत को महामारी में मदद को बढ़ाता हाथ, दूसरी तरफ  तिब्बत के रास्ते भारत को घेरने साजिश।  खबर है कि चीन तिब्बत सीमा पर पहाड़ी इलाकों में जंग की तैयारी में है जिसके लिए घातक मोबाइल होवित्जर भी पंहुचा दिए गए हैं।  यानी जिस तीसरे विश्वयुद्ध को लेकर आशंका जताई जा रही थी वो शुरू हो चुका है?  अमेरिका की खुफिया एजेंसियों के मुताबिक चीन के वैज्ञानिक वर्ल्ड वार-3 की तैयारी में पिछले 6 सालों से जेनेटिक और बायोलॉजिकल हथियार तैयार कर रहे हैं। जिसका मकसद  दुश्मनों के मेडिकल फैसिलिटी को तहस-नहस कर देना है।

दुनिया में कोरोना के करीब 16 करोड़ मरीज हो गए है।  इनमें से 9 करोड़ से ज्यादा ठीक भी हुए हैं।  लेकिन करीब 33 लाख से ज्यादा मरीजों की जान भी गई है। जिसमें  बड़ी संख्या  भारत और अमेरिका की है।   यानी चीन के सबसे बड़े जो दो दुश्मन रहे अमेरिका और भारत, कोरोना की गाज सबसे ज्यादा इन्ही देशों पर गिरी।

हैरान करने वाली बात ये है कि ये ऐसा हमला है जिसे लेकर किसी भी देश का वैज्ञानिक ठीक ठीक  दावा नहीं कर पा रहा है। जितने मुंह उतनी बातें!  कई वैज्ञानिक मानते हैं कि यह ऐसा वायरस है, जो ‘प्राकृतिक’ न होकर ‘मनुष्य-कृत’ है और चीन के ‘वुहान’ की लेबोरेट्री में बना है। कहते हैं कि वुहान में चमगादड़ों पर रिसर्च कराई जा रही थी। उसी रिसर्च के चक्कर में यह वायरस ‘चमगादड़ टू चमगादड़’ फैल गया और फिर लोगों में फैल गया और लोगों की सांस बंद होने लगी। वे पटापट मरने लगे! कोई बताता है कि इसी ‘वुहान’ की एक ‘लेबोरेट्री’  में इसके प्रयोगों को अमेरिका ने फाइनेंस किया! कोई कहता है कि यह शुद्ध चीनी दुष्प्रयोग था। इसी तरह, कोई कहता है कि यह एक नए ‘जैविक युद्ध’ का ‘ट्रायल रन’ है, तो कोई कहता है कि यह तीसरे विश्व युद्ध का आरंभ है, जिसके एक ओर चीन है, तो दूसरी ओर अमेरिका -यूरोप है । जिसका निशाना दुनिया भर के ‘कमजोर’ और ‘बीमार’ लोग हैं। कुछ कहते हैं कि चीन ने अमेरिका की आर्थिक ‘ब्लेक मेल’ का जवाब देने के लिए अमेरिका के खिलाफ इसे छोड़ दिया है । एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में 18 ऐसी प्रयोगशाला हैं जहां बुहान की तरह जैविक शोध होते रहे हैं। लेकिन कभी इनका मकसद इंसान को ही खत्म करना नहीं रहा। इस बार हालात उलट है।

बायोलॉजिकल वॉर फेयर बहुत पुरानी साइंस है। बायोलॉजिकल वेपन्स वेक्टीरिया या वायरस में कुछ बदलाव कर तैयार किया जाता है। ये चलते फिरते इंसान को अचानक बीमार बना देता है। इससे पहले की इंसान कुछ समझ पाए उसकी सासे उखड़ने लगती है और वह कुछ ही वक़्त या दिनों में  ख़त्म हो जाता है। आपको याद होगा अमेरिका में जब 9 /11 का हमला हुआ था तब लोगों को गोपनीय लिफ़ाफ़े मिले थे जिसमे एंथ्रेक्स जो एक फंगस होता है उसका इन्फेक्शन पाया गया था और उससे  कई लोगों की मौत भी हुई थी। यही वजह है कि चीन को लेकर ये दावा अब पुख्ता होता जा रहा है कि वो बायोलॉजिकल और जेनेटिक वेपन से तीसरे विश्वयुद्ध की तैयारी में जुटा है।

अमेरिकी रिपोर्ट तो यहाँ तक कहती है कि उसे ऐसा चीनी दस्तावेज हाथ लगा है जिसके मुताबिक  चीन 2015  से ही सार्स कोरोना वायरस को सैन्य क्षमता के लिए इस्तेमाल करने की तैयारी कर रहा है। उसमे एक बीमारी से छेड़ छाड़ कर नए किस्म के वायरस तैयार करने का जिक्र है।  डोजियर में ये भी लिखा है कि ऐसे हमले साफ़ दिन में नहीं किये जाने  चाहिए। क्योंकि सूरज की रौशनी रोग क्षमता को कम कर सकती है। जबकि बारिश के वक़्त और शांत हवा में टारगेट पर पूरा असर होता है। ये वो हथियार है जो मिसाइल और गोली से कई गुना खतरनाक है।

इस रिपोर्ट से पहले कोरोना को लेकर ये भी  कहा गया कि यह ‘मेड इन चाइना’ बीमारी है, जो चीनी खान-पान से पैदा  हुई है। हालांकि  चीनी इसका खंडन करते हैं।  कई कहते हैं कि वहां के किसी व्यक्ति ने चमगादड़ का सूप पिया और यह उससे फैला। ऐसी ही कहानी हॉलीवुड की 2011 में बनी फिल्म कंटेजियन भी कहती है! फिल्म दिखाती है कि किस तरह एक चीनी चमगादड़ के कुतरे हुए फल को  एक सूअर खा लेता है, फिर उस सूअर के मांस को कुछ लोग खाते हैं और फिर उनके संपर्क में जो भी आता है, वह संक्रमित हो जाता है। देखते-देखते यह फैलता जाता है और लोग मरते जाते हैं।

चीन कहता है कि उसने रिकॉर्ड सत्तर दिनों में इस पर काबू पाकर दुनिया को दिखा दिया कि वही अब असली सुपर पावर है, अमेरिका नहीं। अमेरिका अब भी महामारी से रो रहा है, जबकि चीन ने दिखा दिया कि कोई भी उसके मुकाबिल नहीं है। उसी ने बीमारी दी, उसी ने कंट्रोल किया। अब अगर इससे बचना है, तो चीन की शरण में जाओ, उससे वेंटीलेटर, सुरक्षा कवच, दवा खरीदो, क्योंकि वही इन सबका सबसे बड़ा निर्माता है।

नए उदारवादी ग्लोबल नीतियों के चलते जिन अमेरिकी-यूरोपीय बहुराष्ट्रीय कपनियों  ने चीन के सस्ते श्रम को देख वहां अपनी फैक्टरियां लगाईं और वहां बने माल को दुनिया में बेचकर अकूत कमाई की और चीन से भी कमाई करवाई, वही अब कोरोना महामारी को रोकने के लिए जरूरी ‘लॉकडाउन’ करने के बजाय उसे जनता में फैलने दे रहे हैं, ताकि जनता में सामूहिक रोग अवरोधक क्षमता पैदा हो जाए, जिससे दवाई बनाई जा सके और इस तरह इस बीमारी से भी कमाया जा सके! चाहे इस चक्कर में लाखों मरें तो मरें!

6 वीं शताब्दी ईसा पूर्व में ‘दि आर्ट ऑफ वॉर’ में सुन त्सू ने लिखा था कि दुश्मन को बिना लड़े हुए वश में कर लेना रणनीति की पराकाष्ठा है।  ‘दि आर्ट ऑफ वॉर’ 13 चैप्टरों से बना एक चीनी सैन्य ग्रंथ है। इसे सैन्य रणनीति पर सबसे पुरानी किताबों में से एक माना जाता है। जिसका हर चैप्टर  युद्ध के एक पहलू को समर्पित है। शी जिनपिंग लेकिन ये भूल गए कि भारत के प्राचीनतम वैदिक ग्रंथों में सतयुग, त्रेतायुग की कई ऐसी लड़ाइयों का जिक्र है जिसके महाप्रलयंकारी अस्त्र शस्त्र ने  संपूर्ण धरती को चपेट में ले लिया था।

सुन त्सू की ने ही सिखाया है कि रणनीति एक टू – डू सूची के माध्यम  से काम करने की योजना नही है, बल्कि इसके बदले में बदलती स्थितियों के लिए जल्द  और उचित प्रतिक्रिया की जरुरत है। योजना हमेशा एक नियंत्रित माहौल में काम करती है। रक्षा के क्षेत्र में जो भी देश ताकतवर हो, लंबी जंग से किसी देश को फायदा नहीं होता। चीन ने अपने नागरिकों को भले वायरस से सुरक्षित कर लिया हो। सच यही है कि वो भी धरती का ही हिस्सा है जहां हवा पानी को रोकना मुमकिन नहीं है।

 

Related Articles

Back to top button