गैर बंगालियों को लुभाने के लिए बीजेपी ने फेंका ये जाल, टीएमसी उठा सकती है ये कदम

कोलकाता,

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही यहां इनसाइडर-आउडसाइडर की लड़ाई तेज हो गई है।

सत्ताधारी टीएमसी अक्सर बीजेपी और इसके नेताओं पर बाहरी होने का आरोप लगाती रही है लेकिन ममता को डर है कि उनका यह दांव उलटा पड़ सकता है।

दरअसल बीजेपी ममता के इसी हमले को गैर बंगाली वोटर्स पर हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है।

इसे देखते हुए अब टीएमसी पहले से अधिक चौकन्ना हो गई है और गैर बंगाली वोटर्स की परिभाषा गढ़ने में सावधानी बरत रही है।

बीजेपी कर रही है गैर बंगालियों का इस्तेमाल

टीएमसी के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि वे जानते हैं कि बीजेपी गैर बंगालियों का इस्तेमाल करके

अपने पक्ष में नैरेटिव सेट करने का प्रयास कर रही है।

एक इंग्लिश वेबसाइट से बातचीत में पार्टी के लिए रणनीति तैयार करने वाले टीएमसी के एक वरिष्ठ

नेता ने कहा, ‘हम जानते हैं कि बीजेपी इसका इस्तेमाल हमारे गैर-बंगाली निवासियों को यह बताने

के लिए करेगी कि टीएमसी को उनकी परवाह नहीं है।

हम इस पर काम कर रहे हैं।’

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टीएमसी नेताओं ने कहि ये बड़ी बात

टीएमसी नेता ने आगे कहा, ‘टीएमसी के लिए, जो राज्य में रहता है, इसे समझता है, अपनी

संस्कृति जानता है और इसके लिए योगदान देता है वह बंगाली है।

इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे कहां से आते हैं।

बंगाल में हम सभी का स्वागत करते हैं।

जो लोग बंगाली संस्कृति पर हमला करते हैं और उन्हें इसकी कोई समझ नहीं है, वे बाहरी हैं।’

 

टीएमसी कर रही लोगों को बाँटने का काम

इससे पहले 2 दिसंबर को बंगाल बीजेपी के अध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा था कि जो लोग दूसरे राज्यों

से आए हैं उन्होंने बंगाल के विकास में अहम किरदार निभाया है।

उन्होंने टीएमसी पर लोगों को बांटने की राजनीति का सहारा लेने और राज्य के कल्याण के लिए

काम करने वाले लोगों को आउटसाइडर्स का टैग लगाने का आरोप लगाया।

बंगाल में गैर बंगाली मतदाता की संख्या 15 फीसदी

बता दें कि राज्य में गैर बंगाली मतदाता करीब 15 फीसदी हैं।

कोलकाता में इनकी संख्या ठीक ठाक है जहां ये कुल आबादी का आधा फीसदी भागीदारी रखते हैं।

पड़ोसी राज्यों से यहां बड़ी संख्या में मजदूर आते हैं।

कोलकाता में मारवाड़ी समुदाय के लोग भी रहते हैं जो प्रभावशाली और समृद्ध हैं।

अस्सी के दशक में शुरू हुआ था आमरा बंगाली आंदोलन

अस्सी के दशक में, बंगाली सभ्यता और इसकी भाषा को समर्थन देने वाले ‘आमरा बंगाली’ आंदोलन की शुरुआत हुई।

यह आंदोलन असम के ‘बोंगाली खेड़ा’ आंदोलन का जवाब था जिसके जरिए असम से बंगालियों को भगाया जा रहा था।

अब इस संगठन का बंगाल में छिटपुट असर ही है।

शिवसेना ने आमरा बंगाली के साथ गठबंधन की संभावना जताई है।

बीजेपी को आउटसाइडर्स बुलाते है टीएमसी नेता

टीएमसी के एक नेता कहते हैं कि यह गलत धारणा है कि पार्टी बीजेपी को आउटसाइडर्स बुलाती है।

वह आगे कहते हैं, ‘हम उन्हें आउटसाइडर्स बरगी (मराठा साम्राज्य के सैनिकों की एक टुकड़ी) बुलाते

हैं।

इसी तरह 2011 में सीपीएम को हार्मड (सुपारी किलर) कहा गया था।

हम बीजेपी को बरगी बुलाते हैं कि,

बंगाल में मराठाओं के आक्रमण के दौरान बरगियों ने यहां की फसल चौपट कर दी थी और बंगाल को

लूट लिया था।’

गैर बंगालियों पर गर्व है- टीएमसी नेता 

टीएमसी नेता ने कहा कि पार्टी को अपने गैर बंगालियों पर गर्व है।

इसलिए बंगाल हमेशा से एक मिनी इंडिया है।

बंगाली और गैर बंगाली हमेशा एक दूसरे के लिए खड़े रहते हैं बिल्कुल भाई-बहन की तरह।

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