कल कितने बजे धरती के पास से गुजरेगा एस्टेरॉयड, जानिए स्पीड और दूरी?

बस कुछ घंटे बाकी है, जब धरती के बगल से एक आफत गुजरेगी. वैसे तो ये आफत धरती से लाखों किलोमीटर दूर से निकल रही है. लेकिन अंतरिक्ष में ये दूरी बहुत ज्यादा नहीं मानी जाती. वह भी तब जब सामने से आ रही आफत की *स्पीड किसी रॉकेट से तीन गुनी ज्यादा हो. इस गति से अगर यह धरती या किसी भी ग्रह से टकराया तो बड़ी बर्बादी ला सकता है.

कोरोना से जूझ रही दुनिया के सामने ये नई मुसीबत अंतरिक्ष से आ रही है. इसे लेकर दुनिया भर के वैज्ञानिक परेशान हैं. अगर दिशा में जरा सा भी परिवर्तन हुआ तो खतरा भयानक होगा.

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने करीब डेढ़ महीने पहले खुलासा किया था कि धरती की तरफ एक बहुत बड़ा एस्टेरॉयड तेजी से आ रहा है. बताया जाता है कि यह एस्टेरॉयड धरती के सबसे ऊंचे पहाड़ माउंट एवरेस्ट से भी कई गुना बड़ा है. इतनी गति से यह अगर धरती के किसी हिस्से में टकराएगा तो बड़ी सुनामी ला सकता है. या फिर कई देश बर्बाद कर सकता है.हालांकि, नासा का कहना है कि इस एस्टेरॉयड से घबराने की जरूरत नहीं है क्योंकि यह धरती से करीब 63 लाख किलोमीटर दूर से गुजरेगा.

अंतरिक्ष विज्ञान में यह दूरी बहुत ज्यादा नहीं मानी जाती लेकिन कम भी नहीं है. इस एस्टेरॉयड को 52768 (1998 OR 2) नाम दिया गया है. इस एस्टेरॉयड को नासा ने सबसे पहले 1998 में देखा था. इसका व्यास करीब 4 किलोमीटर का है. इसकी गति करीब 31,319 किलोमीटर प्रतिघंटा है. यानी करीब 8.72 किलोमीटर प्रति सेंकड. ये एक सामान्य रॉकेट की गति से करीब तीन गुना ज्यादा है. जिस समय यह एस्टेरॉयड धरती के बगल से गुजरेगा, उस समय भारत में दोपहर के 3.26 मिनट हो रहे होंगे. सूरज की रोशनी के कारण आप इसे खुली आंखों से नहीं देख पाएंगे.


इसके बारे में अंतरिक्ष विज्ञानी डॉक्टर स्टीवन प्राव्दो ने बताया कि उल्का पिंड 52768 सूरज का एक चक्कर लगाने में 1,340 दिन या 3.7 वर्ष लेता है. इसके बाद एस्टरॉयड 52768 (1998 OR 2) का धरती की तरफ अगला चक्कर 18 मई 2031 के आसपास हो सकता है. तब यह 1.90 करोड़ किलोमीटर की दूरी से निकल सकता है. खगोलविदों के मुताबिक ऐसे एस्टेरॉयड का हर 100 साल में धरती से टकराने की 50,000 संभावनाएं होती हैं. लेकिन, किसी न किसी तरीके से ये पृथ्वी के किनारे से निकल जाते हैं.

खगोलविदों के अंतरराष्ट्रीय समूह के डॉ. ब्रूस बेट्स ने ऐसे एस्टेरॉयड को लेकर कहा कि छोटे एस्टेरॉयड कुछ मीटर के होते हैं. ये अक्सर वायुमंडल में आते ही जल जाते हैं. इससे कोई बड़ा नुकसान नहीं होता है.बता दें कि साल 2013 में लगभग 20 मीटर लंबा एक उल्कापिंड वायुमंडल में टकराया था. एक 40 मीटर लंबा उल्का पिंड 1908 में साइबेरिया के वायुमंडल में टकरा कर जल गया था।

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