लेखक की स्मृतियां उसकी पूंजी – जितेन्द्र भाटिया

जयपुर , प्रसिद्ध लेखक जितेन्द्र भाटिया ने कहा है कि लेखक की स्मृतियां ही उसकी पूंजी होती है।
पीएलएफ के तीसरे चरण में साज़िश, कत्लगाह, शहादतनामा, प्रत्यक्षदर्शी, सोचो साथ क्या जाएगा, सिद्धार्थ का लौटना, रक्तजीवी और अन्य कई महत्वपूर्ण कृतियां रचने वाले श्री भाटिया ने सत्र “अछूती वादियों का सफ़र” में अपनी सृजन यात्रा पर रोशनी डाल रहे थे। उनसे युवा आलोचक प्रांजल धर ने रोचक संवाद किया।

जब जितेंद्र भाटिया से पूछा गया कि क्या उनकी रचनाओं पर विभाजन का प्रभाव रहा है, तो उन्होंने कहा कि वह कभी लाहौर नहीं गए, लेकिन मां और दादी के ज़रिए लाहौर उनके सामने खुलता रहा।
भीष्म साहनी और गुरुदत्त के जीवन प्रसंगों के तार छेड़ते हुए भाटिया बताते हैं कि बी.टेक. की पढ़ाई के दौरान जब एक लड़के ने आत्महत्या की, तो उन्होने इस घटना से प्रभावित हो अपनी पहली कहानी लिखी।

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एक महत्वपूर्ण कृति सदी के प्रश्न का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि हमें भले ही महसूस नहीं हो, लेकिन हमारी कहानियां दूर तक पहुंचती हैं और पाठकों के मन पर असर करती हैं। उन्होंने बताया कि इन दिनों वह यात्रा अनुभवों पर कलम चला रहे हैं, और यूं भी इतिहास खंगालना और इसे अपनी स्मृतियों से जोड़ना उनका पसंदीदा शगल है।

 

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