“बिना सबूत जेल में..” – कोर्ट की ईडी को फटकार, विनय शंकर तिवारी को एक महीना जेल में रखने के बाद

कुछ दिन पहले उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बड़ा मोड़ तब आया, जब इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने समाजवादी पार्टी के नेता और पूर्व विधायक विनय शंकर तिवारी को 45 दिन की गिरफ्तारी के बाद जमानत दे दी। ये वही केस था, जिसमें प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने उन्हें 754 करोड़ की बैंक धोखाधड़ी के आरोप में गिरफ्तार किया था। लेकिन यह मामला जितना कानूनी था, उससे कहीं अधिक राजनीतिक रंग ले चुका था।

विपक्ष को दबाने की साज़िश या भ्रष्टाचार से लड़ाई?

इस केस के पीछे की कहानी यह थी कि विनय शंकर तिवारी—पूर्वांचल के मजबूत राजनीतिक आधार वाले वरिष्ठ नेता हरिशंकर तिवारी के पुत्र—को प्रवर्तन निदेशालय ने लखनऊ स्थित उनके घर से गिरफ़्तार किया था। आरोप था कि बैंक ऑफ इंडिया से जुड़ी एक लोन धोखाधड़ी में उनकी भूमिका है। लेकिन सवाल यह था कि क्या यह कानूनी प्रक्रिया थी, या फिर केंद्र सरकार द्वारा विपक्षी नेताओं को निशाना बनाने का एक और उदाहरण?

अखिलेश यादव की पुरानी चेतावनी को मिला न्यायिक समर्थन

समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव वर्षों से यह बात कहते आए हैं कि केंद्र की मोदी सरकार केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग कर रही है। सीबीआई हो या ईडी—हर एजेंसी का इस्तेमाल विपक्ष की आवाज़ को कुचलने के लिए किया गया है। इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी कुछ ऐसा ही संकेत दिया।

सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने इस मामले को लेकर केंद्र सरकार पर तीखा हमला बोला है। उन्होंने कहा कि ईडी जैसी एजेंसियों का इस्तेमाल विपक्षी नेताओं को डराने और बदनाम करने के लिए किया जा रहा है। अखिलेश ने यह भी कहा कि जब देश में पहले से ही आयकर विभाग और जीएसटी जैसी संस्थाएं मौजूद हैं, तो ईडी की आवश्यकता क्या है? उन्होंने ईडी को समाप्त करने की मांग करते हुए कहा कि यह संस्था अब राजनीतिक हथियार बन चुकी है।

हाईकोर्ट ने लगाई फटकार

सिंगल बेंच के जस्टिस सुभाष विद्यार्थी ने इस केस की सुनवाई करते हुए न सिर्फ विनय शंकर तिवारी को जमानत दी, बल्कि ईडी की कार्यशैली पर भी सवाल उठाए। कोर्ट ने माना कि एजेंसी ने मामले को राजनीतिक रंग देते हुए निष्पक्ष जांच की सीमाओं का उल्लंघन किया है।

हाईकोर्ट ने जमानत देते हुए ईडी की जांच प्रक्रिया पर नाराजगी जताई और कहा कि जांच निष्पक्ष और पारदर्शी होनी चाहिए। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि केवल आरोपों के आधार पर किसी को लंबे समय तक हिरासत में रखना उचित नहीं है।

परिवार पर निशाना साधने की रणनीति?

गिरफ्तारी सिर्फ विनय शंकर तिवारी तक सीमित नहीं रही। उनकी कंपनी ‘गंगोत्री इंटरप्राइजेज’ के जीएम अजीत पांडे, जो उनके रिश्तेदार भी हैं, को भी महराजगंज से गिरफ्तार किया गया। गिरफ्तारी के बाद दोनों को CBI की विशेष अदालत में पेश किया गया और फिर जेल भेजा गया। इस तरह पूरा मामला एक संदेश की तरह प्रतीत हुआ—जो सत्ता के खिलाफ खड़ा होगा, उसे झुकाया जाएगा।

हरिशंकर तिवारी: पूर्वांचल की राजनीति का दबदबा रखने वाला नाम

पंडित हरिशंकर तिवारी उत्तर प्रदेश की राजनीति के उन दुर्लभ नेताओं में शामिल रहे, जो अपराध की दुनिया से निकलकर सत्ता के शिखर तक पहुंचे। वे कई बार विधायक रहे और विभिन्न सरकारों में कैबिनेट मंत्री के रूप में भी कार्य कर चुके हैं। गोरखपुर और पूर्वांचल की राजनीति में उनका दबदबा दशकों तक कायम रहा। उन्होंने ब्राह्मण वोटबैंक के सहारे एक ऐसा राजनीतिक प्रभाव खड़ा किया, जिसे आज भी पूर्वांचल की राजनीति में याद किया जाता है। 2023 में उनका निधन हो गया, लेकिन उनकी राजनीतिक विरासत आज भी ज़िंदा है।

विनय शंकर तिवारी: पिता की राजनीतिक विरासत संभाली

विनय शंकर तिवारी, हरिशंकर तिवारी के छोटे पुत्र हैं और समाजवादी पार्टी के नेता हैं। वे चिल्लूपार विधानसभा सीट से विधायक रह चुके हैं। उन्होंने पिता की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने की कोशिश की और ब्राह्मण राजनीति में अपनी जगह बनाई। हाल के वर्षों में वे भाजपा सरकार के निशाने पर रहे हैं, और ईडी की गिरफ्तारी के बाद उनका नाम फिर से सुर्खियों में आया।

रिहाई के बाद स्वागत, लेकिन सवाल बरकरार

45 दिन बाद जब विनय शंकर तिवारी रिहा हुए, तो रात के करीब 8 बजे उनके बेटे कंदर्व शंकर तिवारी के साथ वे अपने आवास पहुंचे। बाहर बड़ी संख्या में समर्थकों ने उनका स्वागत किया। गले मिलकर बधाइयाँ दी गईं, लेकिन उन आँखों में एक सवाल भी था—क्या लोकतंत्र में सत्ता की एजेंसियाँ इसी तरह किसी को भी कटघरे में खड़ा कर सकती हैं?

मोदी सरकार की एजेंसियों पर उठते भरोसे के सवाल

यह मामला केवल एक व्यक्ति की रिहाई नहीं है, बल्कि एक बड़ी राजनीतिक और न्यायिक टिप्पणी है। जब एक उच्च न्यायालय खुद एजेंसी की कार्यशैली पर सवाल खड़े करता है, तो अखिलेश यादव जैसे नेताओं के आरोप सिर्फ आरोप नहीं रह जाते। यह घटना उस लंबी सूची में एक और उदाहरण बन गई, जहाँ राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को दबाने के लिए कानून का सहारा लिया गया।

क्या यह सिर्फ शुरुआत है?

विनय शंकर तिवारी की रिहाई और कोर्ट की तीखी टिप्पणी एक संकेत है कि देश में सत्ता और जांच एजेंसियों के रिश्ते को फिर से परिभाषित करने की ज़रूरत है। यदि लोकतंत्र में एजेंसियाँ राजनीतिक उपकरण बन जाएँ, तो न कानून बचेगा, न विश्वास।

 

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