उद्देशिका में दिये उद्देश्यों से भटका हुआ नजर आता है आज का हिंदुस्तान

रितुराज राजावत  : अन्य दिनों की तरह कल भी व्हाट्सएप्प में दिनभर सन्देश आते रहे फर्क बस इतना था कि प्रतिदिन की तरह आने वाले ज्ञानवर्धक मैसेजों की तुलना में शुभकामनाओ की मात्रा कहीं अधिक थी ।

बधाई संदेशों का पूरे दिन ताता लगा रहा। शादी बारातों में खरीदी जाने वाली थोक भाजी तरकारी की तरह शुभकामनाएं भी कल थोक के भाव में भेजी और ग्रहण की जा रहीं थी ।

नेताओं ने भी इस सुनहरे अवसर को है हाँथ से नही फिसले दिया। जो आम आदमी का फोन तक नही उठाते थे उनके शुभकामना संदेशों को पढ़कर ना जाने कितने लोगों को ह्रदयाघात जैसी स्थितियों का सामना कल के दिन करना पड़ा ।

शासन प्रशासन से लगाकर मैंगो मैन यानी कि आम आदमी ने भी आया राम गया राम की तर्ज पर पूर्व की भांति ही इस गणतंत्र दिवस को मनाया ।

ये बात अलग समझी जानी चाहिए कि जिस गणतंत्र दिवस पर सभी अपनी देशभक्ति का प्रदर्शन बढ़ चढ़ कर कर रहे थे उसके उद्देश्यों से आज अधिकांश लोगों का सरोकार ना रखना इस बात का प्रत्यक्ष उदाहरण है कि समय परिवर्तन के अनुसार हम सभी ने संविधान में दर्ज उद्देश्यों को भी अपनी आवश्यकताओं के साथ बदलकर रख दिया है ।

हम भारत के लोग जैसी उद्घोषणा के साथ संविधान की रूपरेखा बाबा साहब भीम राव अम्बेडकर ने रची थी । हालांकि अब उस दौर से वर्तमान का साथ पूर्णरूप से छूट चुका है। स्वार्थवश टुकड़ों में बाटे जा चुके हिंदुस्तान की फिजाओं में धूर्त राजनीति ने राम रहीम जैसा उन्माद मचा रखा है ।

संविधान के सिद्धांतों को दरकिनार कर आज जाति और धर्म के नाम पर राजनीति अपनी रोटियां सिकती जा रही है । धर्म और उपासना को अब बेड़ियों में बांधा जा चुका है प्रतिस्पर्धा जैसे हालात देश में बनाकर अन्य धर्मों पर निशाना सिर्फ इस बात पर साधा जाता है कि मेरा धर्म दूसरों की तुलना में ज्यादा श्रेष्ठ और अव्वल है ।

सर्व पूजा पद्धतियों को समान रूप से सम्मान देने बात उद्देशिका में लिखी गयी थी । परंतु आज देश का माहौल पूर्णरूपेण बदल चुका है पाबंदियों और विरोधाभास के चक्रव्यूह में आज पूजा पद्धतियों का रूपांतरण जबरजस्ती किया और कराया जा रहा है ।

आम आदमी के साथ किया जाने वाला अन्याय अब समाज का अंग बन चुका है। बदलती मानसिकता के साथ सतयुग में मारे जाने वाले मामा मारीच आज के दौर में सफेदी की चमक बिखेरते यहां से वहां डोल रहें है ।

जिस न्याय की तलाश में आम आदमी को वर्षों इंतजार करना पड़ता है उसी जैसे मिलते जुलते मामलों में इन्हें चंद महीनों में दोषमुक्त करार घोषित कर दिया जाना किस दृष्टिकोण से उचित है ये अपने आपमें एक बड़ा सवाल बन चुका है ।

इस बात को कहना गलत नही समझा जाना चाहिए की बाबा साहब भीम राव अम्बेडकर ने भूलवश शायद दो संविधानों का निर्माण कर दिया था । गरीब और आम आदमी के लिए शायद अलग संविधान लिखा गया होगा और नेता सहित पूंजीवादी विशेष वर्ग के लिए अलग ।

जिस अखंडता को मुख्य बिंदु रखकर संविधान के रचयता ने इसका निर्माण किया था उसको आये दिन खंडित किया जाना अब एक शोभा समझी जाने लगी है । आम आदमी को आज भी संविधान का हवाला देते हुए कोर्ट कचहरी के चक्कर काटने पर मजबूर कर दिया जाता है वहीं अमीरी के सात खून माफ करना बदलते युग का नया संविधान बन चुका है ।

ये कहना कहीं से भी गलत नही होगा की बेजान तंत्र पर गणतंत्र पूर्व की भांति हर साल यूहीं मनाया जाता रहेगा ।

झंडारोहण के साथ भाषणबाजी भी पूर्व की भांति जोरदार ही की जाएगी । पर संविधान के साथ खिलवाड़ कितना कम होगा… । होगा कि नही… । इसपर माथा पच्ची करने की आपको आवश्यकता नही है।

आप अकेले के चिंता का बोझ अपने कंधों पर उठाने से संविधान के साथ खिलवाड़ बन्द नही होने वाला । आप एक ही काम कर सकतें हैं वो है 26 जनवरी और 15 अगस्त में दूसरों को शुभकामनाएं भेजकर स्वम् को देशभक्त घोषित करना अगर आप ऐसा नही करेंगे तो दूसरे आपसे ज्यादा मैसेज भेजकर खुद को आपसे बड़ा देशभक्त भी साबित कर सकतें है ।

सेक्युलर समाजवाद अखंडता और एकता पर भविष्य में चर्चा होगी कि नही ये आज एक प्रश्नचिन्ह है और कल भी रहेगा…. ।

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