गोरखपुर की मिट्टी में तैयार नारियल से गला तर करेंगे पूर्वांचलवासी

अब वह दिन दूर नहीं जब गोरखपुर की मिट्टी में तैयार किए गए पौधों से तैयार हुए नारियल से पूर्वांचलवासी अपना गला तर करेंगे. गोरखपुर के वैज्ञानिकों ने यहां की मिट्टी में नारियल के पौधों की 5500 नर्सरी तैयार की है. इन पौधों को पूर्वांचल के 24 कृषि विज्ञान केंद्र के तहत किसानों को सौंपा जाएगा. यानी अब दाम के दाम और गुठलियों के दाम. पूर्वांचलवासी अपनी सेहत को भी दुरुस्त रख सकेंगे. उन्हें दक्षिण और महाराष्ट्र से आने वाले महंगे दाम में बिकने वाले नारियल का इंतजार नहीं कर, अपनी जेबें ढीली नहीं करनी होगी.

गोरखपुर के बेलीपार में स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों ने 5500 नारियल के पौधों की नर्सरी तैयार की है. इस नर्सरी को तैयार करने में 14 माह का समय लगा है. जलवायु अनुकूल नहीं होने के बावजूद इस साल गर्मी कम पड़ने से फायदा मिला है. गोरखपुर के बेलीपार में स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के अध्यक्ष और कृषि वैज्ञानिक डॉ एस.के. तोमर बताते हैं कि यहां पर नारियल की 5500 नर्सरी तैयार की गई है. यह पौधे पूर्वांचल के 24 कृषि विज्ञान केंद्र के माध्यम से किसानों को सौंपी जाएंगे. तीन-चार साल से लेकर 15 साल के बीच इसके पेड़ फल देने लायक हो जाते हैं.

उन्होंने बताया कि नारियल विकास बोर्ड पटना केंद्र के सहयोग से यहां पर नर्सरी तैयार करने में काफी मदद मिली है. तत्कालीन केंद्रीय मंत्री राधा मोहन सिंह पूर्वी यूपी में पहली बार इस तरह का प्रयोग किया गया है. कृषि वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इस नए तरह की खेती के लिए जान भी काफी उत्साहित होंगे. नारियल और नारियल पानी की डिमांड को देखते हुए पूर्वांचल में किसानों को बाजार खोजने की जरूरत नहीं पड़ेगी. इसके साथ ही दक्षिण और महाराष्ट्र पर हमें निर्भर नहीं रहना पड़ेगा. किसानों ने लिस्ट के लिए रजिस्ट्रेशन भी करा लिया है और वे काफी खुश भी हैं.

गोरखपुर के बेलीपार स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ एस.पी. सिंह ने बताया कि जून 2019 में नारियल के पौधों को लगाया गया था. इसकी नर्सरी तैयार होने में 14 माह का समय लगा है. इसे तैयार करने में बहुत ज्यादा खर्च नहीं है. किसानों में इसका निःशुल्क वितरण किया जाएगा. इसे तैयार करने में गर्मी के सीजन में थोड़ी दिक्कत होती है. लेकिन, इस बार मौसम अनुकूल होने के कारण अच्छी नर्सरी तैयार हुई है. थोड़ा बहुत संघर्ष की दिक्कत थी उसे ट्रीटमेंट कर ठीक किया गया है. उन्होंने बताया कि इसे तैयार करने के लिए क्षारीय मृदा की जरूरत होती है.

एक घन मीटर के गड्ढे में सड़ी गोबर की खाद डालनी होती है. यहां की मिट्टी कमजोर नहीं है. बलुई दोमट मिट्टी की जरूरत होती है. तो केवल सड़ी गोबर की खाद गड्ढे में डालें. इसमें एक से डेढ़ किलो नमक भी डालें. जहां क्षारीय मृदा होती है. वहां पर फसल अच्छी होती है. जहां सारी उम्र अदाएं होती है. वहां पर इसकी फसल अच्छी होती है. यहां पर सारी उम्र जाएं नहीं है. इसलिए किसानों को पौधा लगाने के पहले जितना ताला पौधे का है उतना ही गड्ढा खोदकर उसमें 100 ग्राम नाइट्रोजन, 50 ग्राम फास्फोरस, 100 ग्राम पोटास डालना होगा.

डा. एसपी सिंह ने बताया कि एक साल का होने पर पौधों में इतनी ही मात्रा रहेगी. दूसरे साल में इस मात्रा को दोगुना कर दिया जाएगा. तीसरे साल में 3 गुना उसके बाद 10 साल तक मात्रा को स्थिर कर देते हैं. नए तरह की खेती को लेकर यहां के किसान काफी उत्साहित हैं. नारियल विकास बोर्ड ने फ्री ऑफ कॉस्ट यह पौधे दिए हैं. उन्होंने बताया कि हर किसान को चार से पांच सौ पौधे पूर्वांचल के 24 जिले में दिए जाएंगे. इसे गर्मी से बचाने के लिए गर्मी के दिनों में एक हरे रंग की जाली भी लगाना अच्छा हो सकता है.

डा. एसपी सिंह ने बताया कि अभी वे ये नहीं जानते कि इसमें केवल नारियल मिलेगा या फिर सिर्फ पानी. लेकिन, जो भी हो अभी तक का प्रयोग काफी सफल दिखाई दे रहा है. लोकल खेती होने से नारियल के दाम भी कम हो जाएंगे. यानी अब सस्ते दरों पर लोग नारियल का पानी पीकर अपनी सेहत सुधार सकेंगे. इससे रेजिस्टेंस पावर भी बना रहता है. प्रति किसानों को चार से पांच पौधे दिए जाएंगे. जिससे अधिक से अधिक किसानों में वितरण कर इसकी खेती को और प्रोत्साहित किया जा सके.

कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार में ट्रेनिंग लेने के लिए आए किसान सोमनाथ उपाध्याय ने बताया कि यहां का मौसम नारियल के पेड़ के लिए अनुकूल नहीं है. लेकिन फिर भी वे काफी उत्साहित हैं. इसकी खेती के लिए साल्टी वॉटर की जरूरत होगी. साथ ही तकनीक का भी इस्तेमाल करना होगा. उनका कहना है कि पहली बार नारियल की खेती का मौका मिला है वे पांच पेड़ ले जाएंगे. किसान पन्ने लाल बताते हैं कि नारियल का पूजा-पाठ में भी काफी इस्तेमाल होता है. अभी तक साउथ और महाराष्ट्र से नारियल की खेप आती है. काफी बड़ा बाजार हो गया है पूर्वांचल में. यही वजह है कि वे उत्साहित हैं क्योंकि बड़ी संख्या में लोग पूजा-पाठ में नारियल का इस्तेमाल करते हैं. वे चार से पांच पौधे ले जाकर लगाएंगे.

किसान प्रेम नारायण साहनी बताते हैं कि वे यहां पर ट्रेनिंग लेने के लिए आए हैं. यहां पर किसानी के साथ बकरी पालन के भी बारे में बताया गया. यहां आने के बाद कृषि विज्ञान केंद्र पर नारियल की 5500 नर्सरी तैयार होने की बात पता चली है. प्रतिकूल मौसम और क्षारीय मृदा होने के बावजूद वे काफी उत्साहित है. वे कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों को इसके लिए धन्यवाद देते नहीं थकते हैं. कहते हैं कि यहां के वैज्ञानिकों ने किसानों को मजबूत और सुदृढ़ बनाने के लिए नया और अभिनव प्रयोग किया है. इसके लिए वे बधाई के पात्र हैं.

साउथ का राजा कहां जाने वाला नारियल अब सस्ते दामों पर पूर्वांचलवासियों के बीच उपलब्ध होगा. अब वह दिन दूर नहीं जब यहां के लोग गोरखपुर की मिट्टी में तैयार हुए नर्सरी के पेड़ों के नारियल का पानी पीकर अपनी सेहत बनाएंगे. कृषि वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि उनका यह प्रयोग रंग लाएगा.

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