प्रयागराज: अनेकता में एकता एक आधार बन जाता है- पालीवाल

पालीवाल ने बताया कि माघ मेले में सभी प्रकार के ऊंच-नीच, भेद-भाव,अमीर-गरीब, जाति, रंग, धर्म, भाषा, क्षेत्र और परंपरा की दीवारें धराशायी हो जाती हैं। यहां सभी विश्व बंधुत्व के सूत्र में बंध जाते हैं । अनेकता में एकता एक आधार बन जाता है। सभी प्रकार की सर्कीणताओं से ऊपर उठ कर श्रद्धालु अस्पृश्यता का बोध से दूर प्रेम और भक्ति जीवन का अभिन्न अंग मान कर अपनी दिनचर्या में शामिल कर लेते हैं।

धर्म समाज के सभी वर्गों में आध्यात्मिक जागृति , नैतिकता और सांस्कृतिक मूल्यों को स्थापित करने का साधन है। उसका एक मार्ग कल्पवास भी है। लोग कड़के के ठंड में भौतिक सुख का त्याग कर एक माह का कल्पवास करते है। श्रद्धालु प्रात:काल उठकर संगम में आस्था की डुबकी लगाने के बाद संत-महात्माओं का प्रवचन एवं समागम और आध्यात्मिक बयार के बीच अपने को धन्य मानते हैं।

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उन्होने बताया कि समागम स्थल का वातावरण सभी प्रकार के सांसारिक तनावों से परे होता है और प्रेम, भक्ति तथा बंधुत्व की भावना से ओत प्रोत हो जाता है। समागम में होने वाली प्रत्येक गतिविधि भक्ति का अंग बन जाती है । प्रत्येक श्रद्धालु समागम में इसी भाव से उत्साहित तथा आनंदित रहते है कि प्रभु परमात्मा ने उसे समागम में भाग लेने का अवसर प्रदान किया। सभी श्रद्धालु भक्त पूरे वर्ष माघ मेला के समागम की प्रतीक्षा करते हैं।

उनकी श्रद्धा तथा विश्वास समागम पर मूर्त रुप से जीवंत हो उठती है और यह भावना समागम स्थल में होने वाली प्रत्येक गतिविधि में झलकती है। संगम के विस्तीर्ण रेती पर बसे रंग बिरंगी तंबुओं की अस्थायी आध्यात्मिक नगरी की छटा ही निराली रहती है। चहुंओर धर्मिक भावनाओं से ओतप्रोत वातावरण अत्यंत सुहाना लगता है। मेले में किसी डेरे में श्रीकृष्ण की लीला, मर्यादा पुरूषोत्तम की लीला की एवं धार्मिक व्याख्यान चलते रहते है। संगम तट पर भोर में ऊं नम: शिवाय, हर.हर महादेव, जय मां गंगे के उच्चारण मन को असीम आध्यात्मिक सुख का भाव पैदा कराती है।

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