Nagaland Assembly Election 2023 : नागा विद्रोहियों का कितना असर होगा इस चुनाव में ?

मुख्यमंत्री नेफियू रियो ने कहा कि अगर नागा राजनीतिक मुद्दा अनसुलझा रहता है तो नागालैंड सरकार आगामी विधानसभा चुनाव में भाग नहीं लेने पर अड़े नागरिक।

नगा राजनीतिक गतिरोध और अलग राज्य की मांग समेत कई मुद्दों का समाधान न होने व सत्ता विरोधी लहर के बावजूद आगामी विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ दलों को बड़ी चुनौती का सामना नहीं करना पड़ सकता है, क्योंकि मजबूत विपक्ष का अभाव है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) ने 60 सदस्यीय नागालैंड विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए पिछले साल जुलाई में सीटों के बंटवारे को अंतिम रूप दिया था।

एनडीपीपी 40 सीटों पर चुनाव लड़ेगी और भाजपा शेष 20 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। साल 2013 के विधानसभा चुनावों में उग्रवाद और अन्य कठिन परिस्थितियों के अपने सबसे खराब दौर के दौरान लगभग 15 वर्षो तक पूर्वोत्तर राज्य पर शासन करने वाली कांग्रेस ने 8 सीटें हासिल कीं, लेकिन 2018 के पिछले विधानसभा चुनावों में पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली। नागालैंड राज्य कांग्रेस अध्यक्ष के. थेरी ने कहा कि राष्ट्रीय राजनीतिक परिदृश्य को देखते हुए वोट विभाजन को रोकने और भाजपा को हराने के लिए समान विचारधारा वाले दलों के साथ धर्मनिरपेक्ष गठबंधन का गठन समय की तत्काल जरूरत है।

विपक्षी कांग्रेस चुनाव से पहले समान विचारधारा वाले दलों के साथ धर्मनिरपेक्ष गठबंधन बनाने की इच्छुक थी। भारत की पहली सर्वदलीय और विपक्ष-रहित सरकार, एनडीपीपी के नेतृत्व वाली संयुक्त जनतांत्रिक गठबंधन (यूडीए) में व्यावहारिक रूप से कुछ नगा निकायों और गैर सरकारी संगठनों को छोड़कर कोई मजबूत विपक्ष नहीं है। 12 सदस्यों वाली भाजपा भी यूडीए की सहयोगी है।

सभी पूर्व कांग्रेस नेताओं, कार्यकर्ताओं और शुभचिंतकों से ईसा-विरोधी, ईसाई-विरोधी, मुस्लिम-विरोधी और महिला-विरोधी ताकतों के खिलाफ लड़ने के लिए पार्टी में शामिल होने का आग्रह करते हुए, थेरी ने कहा कि एक धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक सरकार आवश्यक है नागालैंड में बाधाओं को दूर करने और नागा राजनीतिक मुद्दे को हल करने के लिए। विधानसभा चुनाव से कई महीने पहले एनडीपीपी-भाजपा सीट बंटवारे की व्यवस्था की आलोचना करते हुए कांग्रेस नेता ने दावा किया कि गठबंधन नगा मुद्दे के राजनीतिक समाधान से लोगों का ध्यान हटाने की कोशिश है, जिसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था। नगा राजनीतिक मुद्दे के समाधान की मांग के समर्थन में नगालैंड कांग्रेस ने राज्य के सभी 60 विधायकों से इस्तीफा देने को कहा है।

थेरी ने कहा कि उनकी पार्टी ने प्रभावशाली पूर्वी नागालैंड पीपुल्स ऑर्गनाइजेशन (ईएनपीओ) द्वारा उठाए गए एक अलग राज्य – फ्रंटियर नागालैंड के निर्माण की मांग का कड़ा विरोध किया। थेरी ने कहा, हम नागालैंड का और विभाजन नहीं चाहते हैं। हालांकि, प्रस्तावित फ्रंटियर नागालैंड के तहत आने वाले क्षेत्र वर्तमान सरकार के कुशासन के कारण पिछड़े हुए हैं। ईएनपीओ 2010 से अलग राज्य की मांग कर रहा है और दावा करता है कि छह जिले- मोन, त्युएनसांग, किफिरे, लोंगलेंग, नोक्लाक और शामतोर- वर्षो से उपेक्षित हैं।

प्रभावशाली नागा नेशनल पॉलिटिकल ग्रुप्स (एनएनपीजी) ने कहा कि 1998 में कांग्रेस ने समाधान के बजाय चुनाव कराकर नागा लोगों की इच्छाओं के खिलाफ जाकर काम किया। एनएनपीजी ने कहा, वे (कांग्रेस) निर्विरोध सत्ता में आ गए। मगर वे लोगों की आकांक्षा पूरी करने में विफल रहे और मानते थे कि उन्होंने नागालैंड में अन्य सभी क्षेत्रीय दलों का सफाया कर दिया है। नगा लोगों ने तुरंत कांग्रेस को बाहर का रास्ता दिखाकर जवाब दिया। दुख की बात है कि कांग्रेस अब लोगों का विश्वास हासिल करने के लिए संघर्ष कर रही है।

नागा राजनीतिक उलझन का समाधान नागालैंड में सबसे बड़ा मुद्दा है और राज्य सरकार और सभी पार्टियां विधानसभा चुनाव से पहले दशकों पुराने मुद्दे के समाधान की मांग करती रही हैं। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की हाल की नागालैंड यात्रा दो महत्वपूर्ण मुद्दों – नागा राजनीतिक मुद्दे और अलग राज्य की मांग पर बर्फ नहीं पिघला सकी। नागालैंड पीपुल्स एक्शन कमेटी (एनपीएसी) और नागरिक समाज संगठनों के कार्यकर्ताओं ने दीमापुर हवाईअड्डे के बाहर तख्तियां और बैनर प्रदर्शित कर शाह का स्वागत किया। नागालैंड सरकार की बार-बार अपील के बावजूद ईएनपीओ अपनी मांग पूरी नहीं होने पर विधानसभा चुनाव का बहिष्कार करने पर अड़ा रहा। यूडीए सरकार ने हाल ही में एक बार फिर ईएनपीओ से अलग राज्य की उनकी मांग पर पुनर्विचार करने और आगामी विधानसभा चुनावों का बहिष्कार नहीं करने को कहा।

एनएससीएन-आईएम और नगा नेशनल पॉलिटिकल ग्रुप्स (एनएनपीजी) ने शनिवार को भारत सरकार के साथ नगा राजनीतिक मुद्दे के समाधान के लिए सहयोग करने की अपनी बिना शर्त प्रतिबद्धता की घोषणा की।

नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालिम-इसाक मुइवा (एनएससीएन-आईएम) और कम से कम सात नगा समूहों वाले एनएनपीजी के बीच सितंबर में संयुक्त समझौते पर हस्ताक्षर करने के चार महीने बाद यह घोषणा की गई है। ये संगठन जटिल नगा राजनीतिक मुद्दे (एनपीआई) के समाधान के लिए केंद्र के साथ अलग-अलग बातचीत में लगे हुए हैं। 14 सितंबर को ‘सितंबर संयुक्त समझौते’ पर हस्ताक्षर होने के बाद से एनएनपीजी और एनएससीएन-आईएम एनएनपीजी के संयोजक और एनएससीएन के अध्यक्ष के नेतृत्व में “नगा संबंधों और सहयोग परिषद” के गठन पर सहमत हुए हैं। ताकि नगाओं के लिए नागा ऐतिहासिक और राजनीतिक अधिकारों के आधार पर आगे बढ़ने के लिए जल्द से जल्द यथार्थवादी तरीकों का पता लगाया जा सके।

सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) कानून (AFSPA- अफस्पा) देश के गृह मंत्रालय के अधीन काम करता है। अपने अमल में आने के साथ ही यह कानून विवादित रहा है। इसमें जो विशिष्ट शक्तियाँ निहित हैं वो इतनी विशिष्ट हैं कि महज़ नागरिकों को देखते ही गोली मारी जा सकती है।

राज्य के नागरिकों को अनिवार्यतया अपराधियों के रूप में देखे जाने की सख्त पैरवी करने वाला यह कानून राज्य की स्वायत्तता और सरहदों की सुरक्षा करने में कितना कारगर साबित हुआ है कहना कठिन है लेकिन इस कानून की वजह से कितने निर्दोष नागरिकों की हत्याएं हुईं हैं उनका आंकड़ा भयभीत करने वाला है।

कांग्रेस की नगालैंड इकाई ने राज्य विधानसभा के सभी 60 विधायकों से अपना इस्तीफा सौंपने और नगा राजनीतिक समाधान को लागू करने की मांग करने को कहा। नगालैंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी (NCP) के अध्यक्ष के.थेरी ने कहा, ‘‘यदि यूनाइटेड डेमोक्रेटिक एलायंस (यूडीए) सरकार में कोई ईमानदारी बची है, तो उन्हें अपना इस्तीफा केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को सौंप देना चाहिए और उनसे राजनीतिक समाधान लागू करने के लिए कहना चाहिए।’’ उन्होंने भारत सरकार से नगा लोगों को संशय में नहीं रखने के लिए भी कहा। उन्होंने कहा, ‘‘अब बहुत हो गया है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘अगर वे ईमानदार हैं तो यही समय है जब उन्हें राष्ट्रपति शासन की मांग करनी चाहिए और चुनाव टाल देना चाहिए। राजनीतिक समाधान लागू करना चाहिए। यह भाजपा और राज्य सरकार का रुख होना चाहिए।’’

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