नाम बदलने पर योगी ने खर्च किए करोड़ो, जानिए आंकड़ा

उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के सत्ता में आने के बाद 25 शहर,जिले ,गाँव और रेलवे स्टेशन के नाम बदलने के लिए नोटस जारी कर दिया गया था। 2017 में योगी सरकार सत्ता में आई और शहरो के नाम बदलने में लग लग गई है । शुरूवात इलाहाबाद से हुई और नाम बदल कर प्रयागराज रख दिया गया है । इलाहाबाद में चार रेलवे स्टेशन के नाम बदले गए है ।

इलाहाबाद जंगशन ,इलाहाबाद सिटी ,इलाहाबाद छिवकी और प्रयागराज घाट के नाम बदलकर प्रयागराज जंगशन, प्रयागराज रामबाग,प्रयागराज छिवकी और प्रयागराज संगम रख दिए गए है। इसके साथ में ही फ़ैज़ाबाद जिले का नाम अयोध्या जिले में बदल दिया गया है। मुग़लसरय का नाम बदल के पंडित दीन दयाल उपाध्या हो गया है। पनकी से पनकी धाम और हाल ही में नौगढ़ रेलवे स्टेशन – सिद्धारतनगर रेलवे स्टेशन में बदल गया है । रेलवे स्टेशन के साथ , सड़कों के नाम , शहरों के नाम भी बदले गये है। इन सभी जगाओ के नाम बदलने के लिए एक प्रक्रिया होती है। काफ़ी काग़ज़ातों में भी बदलाव करने पड़ते है।

अब आपको बताते है की नाम के साथ और क्या चीज़ें बदली जाती है।

जब भी कभी इन नामों को बदलने की प्रक्रिया शुरू होती है तो सरकारी खजाने पर भारी बोझ पड़ता है। जिले या प्रदेश में स्थित सभी बैंक, रेलवे स्टेशन, ट्रेनों, थानों, बसों तथा बस अड्डों, स्कूलों-कॉलेजों को अपनी स्टेशनरी व बोर्ड में लिखे पतों पर जिले का नाम बदलना पड़ता है और इन में से बहुत से संस्थानों को अपनी वेबसाइट का नाम भी बदलना पड़ता है। पुरानी स्टेशनरी और मोहरों की जगह नयी सामग्री मंगानी पड़ती है। आश्चर्य की बात यह है कि इन सभी बदलावों के लिए जो टेंडर जारी किये जाते हैं वे सभी नेताओं के परिचितों और सगे सम्बन्धियों और पार्टी के कार्यकर्ताओं को ही दिए जाते हैं। इस प्रकार सिर्फ एक नाम बदलने से करोड़ों रुपयों के बारे न्यारे इन लोगों के हो जाते हैं।

किसी भी जिले के नाम को बदलने की अपील उस जिले की जनता या जिले के जन प्रतिनिधियों के द्वारा की जाती है। इस सम्बन्ध में एक प्रस्ताव राज्य विधान सभा से पास करके राज्यपाल को भेजा जाता है। या इसे इस प्रकार भी कह सकते हैं कि किसी भी जिले या संस्थान का नाम बदलने के लिए पहले प्रदेश कैबिनेट की मंजूरी जरूरी होती है।

अब आपको इसकी पूरी प्रक्रिय बताते है।

सबसे पहले राज्यपाल नाम बदलने की अधिसूचना को गृह मंत्रालय को भेजता है। गृह मंत्रालय इसे एक्सेप्ट या रिजेक्ट कर सकते है। यदि मंजूरी मिल जाती है तो
राज्य सरकार जिले के नाम को बदलने की अधिसूचना जारी करती है या शासन एक गजट प्रकाशित करता है। इसकी एक कॉपी सरकारी डाक से संबंधित जिले के डीएम को भेजी जाती है। कॉपी मिलने के बाद डीएम नए नाम की सूचना अपने अधीन सभी विभागों के विभागाध्यक्ष को पत्र लिखकर देते हैं। एक जिले में 70 से 90 तक सरकारी डिपार्टमेंट होते हैं। सूचना मिलते ही इन सभी विभागों के चालू दस्तावेजों में नाम बदलने का काम शुरू हो जाता है।

सभी सरकारी बोर्डों पर नया नाम लिखवाया जाता है। सरकारी-गैर सरकारी संस्थानों को अपने साइन बोर्ड बदलवाने पड़ते हैं। ऐसा नहीं है कि जिस जिले का नाम बदला जाता है केवल वहीँ पर स्टेशनरी, मोहरों और साइन बोर्ड इत्यादि के नाम बदले जाते हैं बल्कि पूरे देश में व्यापक पैमाने पर बदलाव किये जाते हैं.

यह कहा जा सकता है कि नाम बलदने से बहुत ज्यादा फायदे नजर नहीं आते हैं बल्कि इससे लोगों की कीमती कमाई की बर्बादी ही होती है इसके अलावा विदेशों में भी नए नाम को पहचान बनाने के बहुत समय लग जाता है।
ऐसा नहीं है कि योगी सरकार से पहले किसी नेता ने ऐसा नहीं किया था। भारत में इससे पहले भी कई शहर, अस्पताल, कॉलेज, सड़कों और चौराहों के नाम बदल दिए गये हैं।

लेकिन सवाल ये उठता है की अख़िर इन नामों को बदलने की ज़रूरत क्या है ?

सरकार से जब पूछा गया तो उनका जवाब ये था की लोगों की माँग है इसलिए ये फ़ेसला लिया गया।

2017 में योगी सरकार सत्ता में आइ और 16 अक्टूबर 2018 को इलाहाबाद का नाम फिर से बदल के प्रयागराज कर दिया और इसके बाद कई रेलवे स्टेशन के नाम बदले गये और ये सिलसिला अभी भी जारी है। मंडुआडीह रेलवे स्टेशन का नाम बदल के बनारस रेलवे स्टेशन करने की प्रक्रिया चल रही है और भी शहरों के बदलने की बात चल रही है।

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