साइरन बजा.. जमीन पर लेट गए लोग, सबसे संवेदनशील बुलंदशहर क्यों ? 1971 की तर्ज पर यूपी में मॉक ड्रिल

22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर की बैसरन घाटी में हुए आतंकी हमले में 26 भारतीय पर्यटकों की हत्या के बाद देशभर में आक्रोश है। भारत ने इस आतंकी हमले का जिम्मेदार पाकिस्तान को ठहराया है और अब केंद्र सरकार, सेना, वायुसेना और नौसेना तीनों मोर्चों पर युद्ध की तैयारियों में जुट चुकी हैं।
ऐसे में भारत सरकार ने एक बार फिर 7 मई को देशभर के 244 जिलों में सिविल डिफेंस मॉक ड्रिल कराने का आदेश जारी किया है। इस आदेश ने 1971 और 1965 की जंगों से पहले की मॉक ड्रिल्स की यादें ताजा कर दी हैं।
सायरन बजते ही लोग लेट गए जमीन पर
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में पुलिस लाइंस में मॉक ड्रिल का आयोजन किया गया, जहां सायरन बजते ही लोग जमीन पर लेट गए और कान बंद कर लिए। इस दौरान सिविल डिफेंस के वॉलंटियर्स ने सिखाया कि गोली लगने या बम धमाके की स्थिति में कैसे खुद को बचाया जाए, घायलों को अस्पताल कैसे पहुँचाया जाए और आग लगने की स्थिति में क्या कदम उठाने चाहिए।
युद्ध में जीवन बचाने की रणनीति पर फोकस
ड्रिल में सिविलियंस को ट्रेनिंग दी गई कि किसी भी हमले की स्थिति में घायलों को कैसे प्राथमिक इलाज दिया जाए और कैसे अस्पताल ले जाया जाए। आत्मरक्षा के साथ-साथ बचाव कार्यों में नागरिकों की भूमिका को सुदृढ़ करने का प्रयास किया गया।
19 जिलों में बड़े स्तर पर ड्रिल: DGP ने दिए निर्देश
उत्तर प्रदेश DGP प्रशांत कुमार ने बताया कि 7 मई को कानपुर, लखनऊ, मथुरा जैसे प्रशासनिक ज़िलों समेत 19 जिलों में मॉक ड्रिल आयोजित की जाएगी। इनमें बक्शी का तालाब (लखनऊ) और सरसावा (सहारनपुर) जैसे इलाके भी शामिल हैं, जहां एयरफोर्स स्टेशन स्थित हैं।
तीन श्रेणियों में बांटे गए जिले: सबसे संवेदनशील बुलंदशहर
सिविल डिफेंस ने जिलों को तीन कैटेगरी में बांटा है —
कैटेगरी-1: बुलंदशहर (यहां नरौरा न्यूक्लियर प्लांट स्थित है)
कैटेगरी-2: लखनऊ, आगरा, कानपुर, वाराणसी, गोरखपुर, प्रयागराज, झांसी, सहारनपुर, गाजियाबाद आदि
कैटेगरी-3: बागपत और मुजफ्फरनगर
मॉक ड्रिल में क्या-क्या सिखाया गया?
- सायरन बजते ही नागरिकों को अलर्ट होकर सुरक्षित स्थान पर पहुँचना है।
- बम गिरने की स्थिति में जमीन पर लेटना है और कानों को बंद करना है।
- राहत दल के पहुँचने तक घायलों की सहायता करना, आग बुझाना और मलबा हटाना जरूरी होगा।
- बिना फटा बम दिखे तो तत्काल कंट्रोल सेंटर को सूचना देना अनिवार्य है।
वाराणसी में वॉर्डन सेवा के जरिए तैयारियां
काशी में स्थानीय क्षेत्र का अच्छा ज्ञान रखने वाले साहसी लोगों को वॉर्डन सेवा का हिस्सा बनाया गया है, जो आपातकाल में प्रशासन और जनता के बीच सेतु का काम करेंगे। ये लोग न तो सैलरी लेते हैं, न ही सरकारी कर्मचारी होते हैं, बल्कि जनहित में निःस्वार्थ सेवा करते हैं।
तुलना: 1971 की जंग से पहले और अब की तैयारी में क्या समानता?
तब: 1971 में जैसे ही एयर रेड सायरन बजते थे, लोग घरों में छुप जाते थे, खिड़कियों पर काला रंग कर ब्लैकआउट किया जाता था।
अब: उसी पैटर्न पर देशभर में ब्लैकआउट की तैयारी, सायरन बजने पर मॉक ड्रिल हो रही है।
तब: स्कूल-कॉलेज बंद, नागरिक पहरा देते थे।
अब: सिविल डिफेंस और वॉलंटियर्स मॉक ड्रिल में आम लोगों को प्रशिक्षित कर रहे हैं।
तब: रेड सायरन के बाद अफवाहों का दौर चलता था।
अब: सोशल मीडिया और अफवाहों को रोकने के लिए सरकार सतर्क है।
ब्लैकआउट का महत्व: दुश्मन को भ्रमित करने की रणनीति फिर शुरू
ब्लैकआउट का मतलब होता है – हर तरह की रोशनी बंद करना, ताकि दुश्मन को टारगेट न मिल सके। अब भी यही रणनीति मॉक ड्रिल में सिखाई जा रही है कि लाइट जलाने की ज़रूरत हो तो खिड़कियों पर काला कार्बन पेपर या पेंट लगाया जाए।
सरकार का संदेश: अफवाहों से बचे, सहयोग करें
मॉक ड्रिल के दौरान नागरिकों से अपील की गई कि अफवाहों पर विश्वास न करें। सरकार हर परिस्थिति के लिए तैयार है और सभी विभागों में समन्वय के साथ कार्रवाई की जा रही है। नागरिकों की सतर्कता ही देश की सबसे बड़ी ताकत है।
इतिहास फिर दोहराने को मजबूर न हो
1971 की तरह आज भी भारत अपने नागरिकों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दे रहा है। मॉक ड्रिल महज एक अभ्यास नहीं, बल्कि आने वाले संकट की पूर्व चेतावनी है। जब तक युद्ध की नौबत न आए, तब तक तैयारी करना ही सबसे समझदारी है।