प्रयागराज के संगम में संयम, श्रद्धा एवं कायाशोधन का कल्पवास

इलाहाबाद, वैश्विक महामारी कोविड़-19 के बीच माघ मेला में पौष पूर्णिमा के पावन पर्व से कल्पवासी संगम में आस्था की डुबकी के साथ ही विस्तीर्ण रेती पर संयम, अहिंसा, श्रद्धा एवं कायाशोधन के लिए गुरूवार से कल्पवास शुरू करेंगे।


कुछ कल्पवासी “मकर संक्रांति से माघ शुक्ल की संक्रांति तक कल्पवास करते हैं जबकि 90 से 95 फीसदी कल्पवासी पौष पूर्णिमा से माघी पूर्णिमा तक” कल्पवास करते हैं। “मकर संक्रांति से माघ शुक्ल की संक्रांति तक” कल्पवास करने वालो में मैथिल के साथ बिहार और बंगाल के श्रद्धालुओं के साथ कुछ साधु संत शामिल होते हैं।


माघ मेला बसाने वाले प्रयागवाल सभा के महामंत्री राजेन्द्र पालीवाल ने कहा कि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार और राजस्थान से पिछले वर्ष की तुलना में लगभग कल्पवासी मेला क्षेत्र में पहुंच चुके है। यहां पर वे संयम, अहिंसा, श्रद्धा एवं कायाशोधन का एक मास का कल्पवास करेंगे।


श्री पालीवाल ने बताया कि पुराणों और धर्मशास्त्रों में कल्पवास को आत्मा की शुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति के लिए जरूरी बताया गया है। यह मनुष्य के लिए आध्यात्म की राह का एक पड़ाव है। इस दौरान स्वनियंत्रण एवं आत्मशुद्धि का प्रयास किया जाता है।

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कल्पवासी भौतिक सुखों का त्यागकर मोक्ष की कामना से एक महीने तक संगम गंगा तट पर तीन समय स्नान, रेती पर रात्रि विश्राम, अल्पाहार ध्यान एवं दान के साथ कल्पवास का कठोर तपस्या करते है।


कल्पवास का जिक्र वेदों और पुराणों में भी मिलता है। हालांकि कल्पवास कोई आसान प्रक्रिया नहीं है। यह मोक्षदायनी विधि की एक कठिन साधना है। इसमें पूरे नियंत्रण और संयम का अभ्यस्त होने की आवश्यकता होती है।

पद्म पुराण में इसका जिक्र करते हुए महर्षि दत्तात्रेय ने कल्पवास के नियमों के बारे में विस्तार से चर्चा की है। माना जाता है कि कल्पवास का पालन करके अंतःकरण और शरीर दोनों का कायाकल्प हो सकता है।

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