जस्टिस झा की अगुवाई वाले आयोग का कार्यकाल इसी महीने हो रहा पूरा;

जाट आंदोलन में हुई हिंसा की रिपोर्ट 31 से पहले: सरकार का एक्सटेंशन देने से इनकार

जाट आरक्षण आंदोलन में हुए उपद्रव की जांच के लिए जस्टिस एसएन झा (रिटायर्ड) की अध्यक्षता में गठित कमीशन का कार्यकाल इसी महीने 31 अक्टूबर को पूरा हो रहा है। कमीशन ने रिपोर्ट तैयार करने के लिए सरकार से कुछ महीने का वक्त मांगा था लेकिन गृहमंत्री अनिल विज ने इनकार कर दिया। ऐसे में आयोग 31 अक्टूबर से पहले अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप देगा। कमीशन लगभग सभी की गवाही और सुनवाई की प्रक्रिया पूरी कर चुका है। केवल प्रो. वीरेंद्र सिंह का मामला हाईकोर्ट में है, जिसमें कमीशन संबंधित दस्तावेज कोर्ट में पेश कर चुका है।

जाट आरक्षण आंदोलन में हुई हिंसा की जा कर रहे रिटायर्ड जस्टिस एसएन झा की अध्यक्षता वाले कमीशन ने 97 गवाहों को बुलाया। 31 में से 7 शिकायकर्ताओं ने भी 13 गवाह पेश किए। सूत्रों का कहना है कि कमीशन ने जुटाए गए सबूत और तथ्यों पर रिपोर्ट बनाना शुरू कर दिया है।

फरवरी, 2016 में हुए जाट आरक्षण आंदोलन में हुए उपद्रव की जांच के लिए सरकार ने पहले रिटायर्ड डीजीपी प्रकाश सिंह की अध्यक्षता में कमेटी गठित की और फिर रिटायर्ड जस्टिस एसएन झा की अध्यक्षता में कमीशन गठित कर दिया। इस कमीशन को 6 महीने में रिपोर्ट देनी थी, लेकिन हर बार समय बढ़ता गया। अब लगभग पौने 6 साल बाद कमीशन की रिपोर्ट आ सकती है।

5 लोगों को माना संदिग्ध, वीरेंद्र का मामला हाईकोर्ट में…

कमीशन ने गवाहों और सबूतों के आधार पर पांच लोगों को संदिग्ध मानते हुए उन्हें नोटिस जारी किया। इनमें अखिल भारतीय जाट आरक्षण संघर्ष समिति के अध्यक्ष यशपाल मलिक, प्रोफेसर वीरेंद्र सिंह, सुदीप कलकल, मनोज दुहन और कप्तान मान सिंह शामिल हैं। इन सभी को कमीशन ऑफ इंक्वायरी एक्ट-1952 की धारा 8बी के तहत नोटिस देकर पक्ष रखने को कहा गया। इनमें से 4 ने आयोग के सामने अपना पक्ष रखा जबकि प्रो. वीरेंद्र सिंह ने कमीशन को ही हाईकोर्ट में चैलेंज कर दिया। उन्होंने कोर्ट में कहा कि जब इस मामले में उनके खिलाफ पुलिस में केस दर्ज है तो कमीशन में लाने की जरूरत ही नहीं है।

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