चीन के खिलाफ अपनी विदेश नीति पर नए सिरे विचार करें विभिन्न देश: डा. सांग्ये

धर्मशाला। निर्वासित तिब्बती सरकार के प्रधानमंत्री डाॅ. लोबसांग सांग्ये ने कहा कि कोरोना संकट में चीन के बढ़ते जुझारूपन से विभिन्न देशों को चीन पर अपनी विदेश नीति पर नए सिरे विचार करने के लिए प्रेरित किया है। भारत-तिब्बत सीमा पर भारत और चीन के बीच चल रहे तनाव के मूल में तिब्बत मुद्दा है।

डा. सांग्येे ने नई दिल्ली के एक गैर-सरकारी शोध संस्थान तथा गैर-हिंसक विकल्प फाउंडेशन के एक विमर्श कार्यक्रम में बोल रहे थे। डॉ. सांग्ये ने कहा कि दो परमाणु शक्तियों के बीच एक संकट को टालने के लिए, शांतिपूर्ण बफर, तिब्बत की मान्यता और इसकी ऐतिहासिक स्थिति की बहाली अनिवार्य है। उन्होंने कहा कि एशिया के लिए एक आदर्श के रूप में भारत को लोकतंत्र की रक्षा करने में अपने नेतृत्व को मजबूत करना चाहिए और चीन के साथ इस वैचारिक युद्ध पर जीत हासिल करनी चाहिए।

डा. सांग्ये ने कहा कि वास्तविकता को देखते हुए भारत को खुद को बचाना चाहिए। यदि आप इतिहास के अनुसार जाते हैं, तो लालबहादुर शास्त्री को छोड़कर भारत के सभी प्रधानमंत्रियों ने चीन के साथ प्रतिस्पर्धा में चीन के साथ सहयोग को ही चुना। इतने दशकों के सहयोग के बाद, अब नेताओं द्वारा विस्तारित सभी सहयोगों को दिखाने के लिए कुछ भी नहीं है। उन्होंने कहा कि सबक इसलिए बहुत स्पष्ट है कि चीन के साथ प्रतिस्पर्धा ही एकमात्र रास्ता है। अमेरिका, यूरोपीय राष्ट्र, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अन्य देश पहले ही चीन के साथ सहयोग से प्रतिस्पर्धा के लिए अपना दृष्टिकोण बदल रहे हैं, इसलिए भारत ने भी यही किया।

एक लोकतांत्रिक नेता के रूप में भारत के रुख के वैश्विक महत्व को देखते हुए उन्होंने कहा कि दुनिया के देश लोकतंत्र के साथ भारतीय मॉडल और चीनी मॉडल के बीच लोकतंत्र के बिना विकास के एक मॉडल चुनने के लिए एशिया में देख रहे हैं। उन्होंने इस मौके पर तिब्बत में जबरन श्रम शिविरों के खिलाफ 63 विश्व सांसदों के गठबंधन द्वारा जारी हालिया संयुक्त बयान का भी हवाला दिया। इस चर्चा में डॉ. लोबसांग सांग्ये के अलावा प्रख्यात कानूनी सलाहकार और अंतरराष्ट्रीय कानून के प्रोफेसर, डॉ. माइकल वैन वॉल्ट वैन प्राग, अरुणाचल प्रदेश के पूर्व राज्यपाल और थल सेना अध्यक्ष रहे जनरल जेजे सिंह ने भी हिस्सा लिया।

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