TMC के मुखपत्र में छपा पूर्व CPI लीडर की बेटी का लेख, ममता बनर्जी की तारीफ के लिए नोटिस थमाएगी पार्टी

 

 

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) यानी सीपीआई (एम), पश्चिम बंगाल इकाई की पूर्व राज्य सचिव अनिल विश्वास की बेटी अजंता बिस्वास के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए पूरी तरह तैयार है। अजंता के खिलाफ यह कार्रवाई महिलाओं के सशक्तिकरण में बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की भूमिका बताते हुए एक लेख को लेकर होनी है। उनका यह लेख सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के दैनिक मुखपत्र जागो बांग्ला में प्रकाशित हुआ था।

शनिवार को सामने आए इस लेख में यह तर्क दिया गया है कि फायरब्रांड नेता ने राज्य की राजनीति में एक ऐतिहासिक भूमिका निभाई और जमीनी स्तर पर महिलाओं और आंदोलन के सशक्तिकरण को सुनिश्चित किया।

अजंता माकपा की सदस्य हैं। इस लेख को लेकर उनसे कारण बताओ नोटिस जारी किया जाएगा। माकपा नेताओं ने हिन्दुस्तान टाइम्स को बताया कि उनके जवाब की जांच के बाद पार्टी अपनी कार्रवाई तय करेगी।

सीपीआई (एम) नेताओं को बुधवार से एक बड़ी शर्मिंदगी का सामना करना पड़ रहा है, जब जागो बांग्ला ने बंगाल की राजनीति में महिला सशक्तिकरण पर एक श्रृंखला छापनी शुरू की। यह लेख बिस्वास द्वारा लिखी गई थी, जो कोलकाता के रवींद्र भारती विश्वविद्यालय में इतिहास के एसोसिएट प्रोफेसर हैं। लेख को संपादकीय पृष्ठ पर प्रमुखता से छापा गया है।

 

2006 में अपने पिता की मृत्यु के बाद से बिस्वास राजनीति में सक्रिय नहीं हैं। इससे पहले, वह प्रेसीडेंसी कॉलेज (अब एक विश्वविद्यालय) में स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) इकाई का एक प्रमुख चेहरा थीं, जहां उन्होंने पढ़ाई की थी। एसएफआई माकपा का छात्र मोर्चा है।

इससे पहले उन्होंने बसंती देवी, सरोजिनी नायडू, सुनीति देवी और स्वतंत्रता से पहले और बाद के युग के अन्य लोगों के बारे में भी लिखा है। यह लेख पूरी तरह से ममता बनर्जी पर केंद्रित कर लिखा गया है।

इस लेख में कहा गया है कि बनर्जी ने हुगली जिले के सिंगूर में टाटा की छोटी कार संयंत्र के लिए कृषि भूमि अधिग्रहण के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व किया। इस आंदोलन ने ही बंगाल में 2011 में वामपंथियों के खिलाफ उनकी ऐतिहासिक जीत में काफी योगदान दिया। वाममोर्चा का 34 साल पुराना शासन उसी साल खत्म हो गया।

सीपीआई (एम) के नेता रहे अनिल विश्वास टीएमसी के खिलाफ सबसे सफल रणनीतिकारों में से एक थे। यह व्यापक रूप से माना जाता है कि 2006 में विश्वास की मृत्यु के बाद टीएमसी सफल आंदोलनों का निर्माण करने में कामयाब रही। वह बंगाल सीपीआई (एम) के दैनिक मुखपत्र गणशक्ति के संपादक और बनर्जी के कटु आलोचक भी थे।

माकपा की कोलकाता जिला समिति के सचिव कल्लोल मजूमदार ने बताया, “सीपीआई (एम) की कोलकाता इकाई बिस्वास से यह बताने के लिए कहेगी कि उसने टीएमसी के मुखपत्र के लिए क्यों लिखा। इससे पार्टी में हड़कंप मच गया है। आमतौर पर किसी सदस्य को कारण बताओ नोटिस का जवाब देने के लिए एक सप्ताह का समय दिया जाता है। लेकिन स्थिति की प्रकृति को देखते हुए, उसे कम समय दिया जाएगा।”

तीन दिन बाद अपनी चुप्पी तोड़ते हुए बिस्वास ने मीडिया से कहा कि उनके लेख शोध पर आधारित हैं। उन्होंने कहा, “मुझे अनिल बिस्वास की बेटी होने पर गर्व है। यही मेरी पारिवारिक पहचान है। इतिहास के प्रोफेसर के रूप में, मैंने ममता बनर्जी पर लेख राजनीति में उनके योगदान और महिलाओं के सशक्तिकरण में उनकी भूमिका को देखते हुए लिखा था।”

टीएमसी के राज्य महासचिव कुणाल घोष, जो अजंता विश्वास को कई सालों से जानते हैं, ने कहा, “लेख शोध पर आधारित हैं और इसे वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य के आलोक में नहीं देखा जाना चाहिए। कारण बताओ नोटिस से पता चलता है कि राज्य विधानसभा में माकपा की संख्या शून्य क्यों हो गई है। जल्द ही पार्टी का वजूद खत्म हो जाएगा।”

 

 

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