जातीय जनगणना पर अभी और बढ़ने वाली है मोदी सरकार की टेंशन, गरमा सकती है राजनीति

आने वाले दिनों में जातीय जनगणना के मुद्दे पर राजनीति गरमा सकती है। बिहार में भाजपा की सहयोगी जदयू न सिर्फ स्वयं इस मुद्दे को जोर-शोर से उठा रही है, बल्कि अन्य दलों को भी साथ लेने की कोशिश में हैं। राजद भी इस मुद्दे को राज्य के साथ-साथ संसद में उठा रहा है। उत्तर प्रदेश एवं अन्य पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों के मद्देनजर ‌अन्य दल भी इस मुद्दे को हवा देने की कोशिश कर सकते हैं। ऐसे में केंद्र सरकार पर इस मामले में निर्णय लेने का दबाव आने वाले दिनों में बढ़ सकता है।

हाल में मेडिकल के ऑल इंडिया कोटे में ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर जिस प्रकार से केंद्र सरकार ने तत्परता से फैसला लिया है, उसके बाद राजनीतिक दलों को सरकार पर दबाव बनाने का मौका मिल गया है। जदयू के प्रतिनिधिमंडल ने सोमवार को गृहमंत्री अमित शाह से मिलकर इस मुद्दे पर ज्ञापन भी दिया है। उधर, राजद 7 अगस्त को बिहार में मंडल दिवस के मौके पर इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाने जा रहा है। इस बीच बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का यह बयान भी बेहद महत्वपूर्ण है कि यदि केंद्र सरकार जातीय जनगणना से इनकार करती है तो राज्य स्तर पर यह कार्य करने का विकल्प खुला है। इससे केंद्र की बेचैनी और बढ़ सकती है। यदि ऐसा हुआ तो हर राज्य इस प्रकार के कदम उठा सकते हैं और इसस केंद्र को राजनीतिक नुकसान हो सकता है।

राजद के राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रोफेसर सुबोध कुमार मेहता ने कहा कि सरकार के पास कई विकल्प हैं। सबसे पहले उसे 2011-12 में हुई सामाजिक आर्थिक जनगणना के आंकड़े जारी करने चाहिए। इसमें जातीय आंकड़े जुटाए गए हैं। ये आंकड़े इसलिए रोके गए थे कि उनमें खामियां हैं, लेकिन वह खामियां अब दुरुस्त कर दी गई हैं। उन्हें सार्वजनिक किया जाना चाहिए। जिससे स्थिति साफ हो जाएगी। दूसरे 2021 में प्रस्तावित जनगणना कोरोना के कारण विलंबित हुई है, लेकिन जब भी हालात अनुकूल हो और जनगणना आरंभ हो उसमें जातीय आंकड़े एकत्र किए जाएं। अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के आंकड़े पहले से एकत्र होते आ रहे हैं। सिर्फ ओबीसी और सामान्य वर्ग के आंकड़े और जुटाने होंगे। इसलिए यह ज्यादा मुश्किल नहीं है।

केंद्र की मुश्किल
जातीय जनगणना को लेकर केंद्र सरकार अभी कोई कानूनी प्रावधान नहीं होने की बात कह रही है, लेकिन यह बड़ी बात नहीं है। ऐसे प्रावधान किए जा सकते हैं। लेकिन, डर यह है कि जातीय जनगणना कराए जाने से यदि विभिन्न जातियों के आंकड़ों में अंतर मिलता है तो इससे आरक्षण को लेकर नई मांगें शुरू हो सकती हैं। इसलिए केंद्र सरकार इससे बच रही है। लेकिन अगर इस मुद्दे पर राजनीति गरमाती है तो फिर केंद्र को कोई न कोई रास्ता निकालना पड़ सकता है।

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