कैग ने उठाए डिफेंस ऑफसेट पॉलिसी पर सवाल

नई दिल्ली। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ​ने मानसून सत्र के दौरान डिफेंस ऑफसेट पॉलिसी पर ​​संसद में पेश अपनी रिपोर्ट में ​पिछले 15 साल में विदेशी कंपनियों से हुए रक्षा सौदों में भारत को 8000 करोड़ रुपये का नुकसान होने का अनुमान जताया है​​। ​साथ ही लड़ाकू विमान राफेल बनाने वाली कंपनी पर करार के मुताबिक​ ​​​कावेरी​ इंजन की तकनीक अभी तक हस्तांतरित न करने पर सवाल उठाया है​।

​संसद में ​पेश ​​रिपोर्ट में कहा गया है कि ​फ्रांस की कंपनी दसॉल्ट एविएशन ​से ​36 राफेल ​विमानों ​की डील ​करते समय ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट ​में ​​डीआरडीओ को ​​कावेरी​ इंजन की तकनीक देकर 30 प्रतिशत ​​ऑफसेट पूरा ​करने की बात तय हुई थी लेकिन अभी तक ​यह वादा पूरा नहीं किया गया ​है। ​अनुसंधान एवं विकास संगठन​ (​​डीआरडीओ​)​ को ​​इंजन (कावेरी)​ की तकनीक हासिल करके स्वदेशी तेजस लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट के लिए ​​ ​विकसित करना था। ​​​फ्रांस के साथ 36 विमानों की डील 59 हजार करोड़ रुपये में की गई थी। भारत की ​​ऑफसेट पॉलिसी के मुताबिक विदेशी ​कंपनियों को अनुबंध का 30 प्रतिशत ​हिस्सा ​भारत में रिसर्च या उपकरणों ​पर खर्च करना होता है।​ रक्षा मंत्रालय ने यह ​​​​ऑफसेट​ ​​नीति विदेशी कंपनियों से 300 करोड़ ​रुपये से ज्यादा के ​रक्षा सौदों के लिए ​बनाई है​​​​।​​

इतना ही नहीं कैग ने अपनी रिपोर्ट में ​2005 से 2018 के बीच विदेशी कंपनियों से हुए रक्षा समझौतों की समीक्षा करते हुए कहा है कि ऑफसेट पॉलिसी से मनमाफिक नतीजे नहीं ​मिले​ हैं​​।​ इसलिए रक्षा मंत्रालय को इस पॉलिसी ​की समीक्षा करने ​और लागू करने में आ रही दिक्कतों की पहचान कर​के उनका समाधान ​करने की सलाह दी गई है।​ ​संसद में पेश रिपोर्ट में रिपोर्ट में कैग ने कहा कि ​2005 से 2018 के बीच​ हुए रक्षा समझौतों में किसी भी किसी भी विदेशी कंपनी ने ​​​​​ऑफसेट पॉलिसी के मुताबिक​ अपनी तकनीक भारत को हस्तांतरित नहीं की है​​​।​​ ​कैग ने कहा है कि विदेशी कंपनियों को अगले छह साल में लगभग 55 हजार करोड़ रुपये के ऑफसेट दावे पूरे करने हैं​​।​​​ ​फिलहाल ​हर साल 1300 करोड़ रुपये की ऑफसेट प्रतिबद्धताएं ही अभी पूरी हो पा रही हैं​​।​​​ ​इसलिए ​कैग ने छह साल में 55 हजार करोड़ रुपये की ऑफसेट प्रतिबद्धताओं ​का पूरा हो पाना बड़ी ​चुनौती माना है​​।​​​​

कैग ने ​अपनी रिपोर्ट में बताया है कि 2005 से ​20​18 ​के बीच भारत ने विदेशी​ रक्षा कंपनियों के साथ ​​कुल 66,427 करोड़ ​रुपये ​के​ ​48 ​करार​ किए ​थे। ​रक्षा मंत्रालय की ऑफसेट​ ​​नीति के मुताबिक दिसम्बर,​ 2018 तक ​भारत को ​19,223 करोड़ के ऑफसेट ट्रांसफर हो​ने थे लेकिन केवल 11,​396​ करोड़ का ही ट्रांसफर किया गया। ​​इनमें से भी ​सिर्फ ​5457 करोड़ रुपये की प्रतिबद्धताएं ही स्वीकार की गईं​ हैं​।​ यानी कि ​​केवल 59 प्रतिशत ​​ऑफसेट पॉलिसी​ का पालन किया गया ​है।​ इस तरह देखा जाए तो पिछले 15 साल में विदेशी कंपनियों से हुए रक्षा सौदों में भारत को 8000 करोड़ रुपये का नुकसान होने का अनुमान है​​​​। ​​
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कैग ने फरवरी, 2019 में संसद में राफेल पर अपनी रिपोर्ट पेश करके दावा किया था कि एनडीए सरकार में हुआ राफेल सौदा ​​पूर्ववर्ती​ ​यूपीए सरकार की डील के मुकाबले 2.86 प्रतिशत सस्ता है। उस समय कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों ने कैग रिपोर्ट की आलोचना की थी।

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