सीएए ने भारत विभाजन से पैदा हुए भेदभाव को खत्म किया : एस जयशंकर

नई दिल्ली। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि यह एक हकीकत है कि मजहब के आधार पर भारत का विभाजन हुआ था जिसने अल्पसंख्यकों के सामने मुसीबतें खड़ी की थी। इसी भेदभाव का अंत करने के लिए नागरिकता संशोधन कानून बनाया गया। उन्होंने कहा कि विभाजन की विरासत के कारण अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव हुआ था तथा उन्हें नागरिकता से वंचित करके बेसहारा नहीं छोड़ा जा सकता था।

विदेश मंत्री ने न्यूयार्क स्थित थिंक टैंक एशिया सोसाइटी की ओर से ऑस्ट्रेलिया के पूर्व प्रधानमंत्री केविन रड को दिए एक साक्षात्कार में कहा कि हमें अच्छा लगे या बुरा लेकिन यह एक हकीकत है कि भारत का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ था। विभाजन के कारण सीमा के दोनों और बड़ी संख्या में अल्पसंख्यक समुदाय के लोग रहते थे। तत्कालीन नेताओं ने अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए सहमति बनाई थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली ने एक समझौता किया था जिसमें अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और उनके हितों की रक्षा का प्रावधान था।

जयशंकर ने कहा कि भारत ने नेहरू-लियाकत समझौते का पालन करते हुए अपनी जिम्मेदारी को निभाया जबकि पाकिस्तान ने ऐसा नहीं किया। जनगणना के आंकड़ों से स्पष्ट है कि पाकिस्तान से अल्पसंख्यकों का पलायन जारी रहा जबकि भारत की ओर से ऐसा नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि पलायन कर भारत आए शरणार्थियों को बिना नागरिकता दिए नहीं छोड़ा जा सकता था। इन लोगों को भी आम नागरिक की तरह सुविधा और अधिकार मिलने चाहिए थे। पिछले वर्ष संसद में बनाए गए नागरिकता संशोधन कानून के जरिए इस काम को अंजाम दिया गया।

विदेश मंत्री ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने का औचित्य बताते हुए कहा कि वास्तव में इसके जरिए इस राज्य के लोगों के साथ भेदभाव खत्म किया गया है। आजादी के बाद देश में अनेक प्रगतिशील कानून बनाए गए लेकिन अनुच्छेद 370 के कारण इन्हें जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं किया जा सका। उन्होंने कहा कि संविधान में अनुच्छेद 370 एक अस्थाई व्यवस्था थी। इस अस्थाई व्यवस्था को खत्म कर राज्य के लोगों को देश की मुख्य धारा में शामिल किया गया ताकि उन्हें अन्य भारतीय नागरिकों की तरह अधिकार और सुविधाएं मिल सकें।

जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के पुनर्गठन को लेकर चीन और पाकिस्तान की नाराजगी के बारे में पूछे जाने पर विदेश मंत्री ने कहा कि हर देश अपने सीमा क्षेत्र में प्रशासनिक पुनर्गठन करता है। चीन ने भी अपने यहां ऐसा किया है। ऐसे पुनर्गठन को लेकर पड़ोसी देश तब आपत्ति कर सकते हैं, जब सीमाओं में बदलाव किया जाए। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में पुनर्गठन के बाद भी भारत की सीमाएं आज भी वही हैं जो कुछ दशक पहले थी।

केविन रड ने साक्षात्कार के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की राष्ट्रवादी विचारधारा के बारे में सवाल पूछा जिसके उत्तर में जयशंकर ने कहा कि राष्ट्रवाद के अलग-अलग रूप हैं। भारतीय राष्ट्रवाद आजादी की लड़ाई, राष्ट्र निर्माण तथा समकालीन विश्व में भारत के समुचित स्थान पर केन्द्रित है। पश्चिमी देशों का राष्ट्रवाद भले ही संकीर्ण हो लेकिन भारत के संदर्भ में यह ऐतिहासिक पृष्टभूमि पर आधारित है। उन्होंने भारतीय राष्ट्रवाद को ‘विश्वपरक राष्ट्रवाद’ की संज्ञा दी। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान को संरक्षणवाद मानने से इनकार करते हुए कहा कि वास्तव में इसका उद्देश्य घरेलू छोटे-मझोले उद्योगों के बीच प्रतिस्पर्धा पैदा करना है।

विदेश मंत्री ने भारत-चीन सीमा पर चीन के आक्रमक रवैये के बारे में पूछे जाने पर विदेश मंत्री ने कहा कि वह नहीं समझ पा रहे हैं कि आखिर चीन ने ऐसा क्यों किया। सीमा पर शांति और सामान्य स्थिति बनाए रखने के लिए विगत दशकों में हुए समझौतों और सहमति की परवाह न करते हुए चीन ने यह रवैया अपनाया। चीन की इस कार्रवाई से द्विपक्षीय संबंधों में बहुत बिगाड़ पैदा हुआ है।

ऑस्ट्रेलिया के पूर्व प्रधानमंत्री केविन रड ने चीन के रवैये पर टिप्पणी करते हुए कहा कि संभवतः चीन दुनिया को यह बताना चाहता था कि कोरोना वायरस महामारी के बावजूद उसकी ताकत और रवैये में कोई कमजोरी नहीं आई है। चीन की यही मानसिकता भारत-चीन सीमा के साथ ही दक्षिणी चीन सागर और ताइवान के मामले में भी स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।

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