बिहार चुनाव : महागठबंधन के लिए बागी बने सरदर्द, बिहार चुनाव में बगावत का झंडा बुलंद

बिहार विधानसभा चुनाव में जहां एक तरफ बिहार के दो बड़े दल यानी एनडीए और महागठबंधन जनता का रुख अपनी तरफ करने में जुटे हुए हैं। वही दुसरी तरफ AIMIM और एसजेडी और रालोसपा-बसपा जैसा गठजोड़ बिहार की जनता के सामने विकल्प बनकर सामने आया हैं और जिस तरह चुनावी मौसम में दल बदल का कार्यक्रम शुरु हुआ। महागठबंधन के दो बड़े बंधन यानी हम और वीआईपी अपने बंधन खोलकर एनडीए में शामिल हो गए और एनडीए से जिस तरह से एलजेपी अपने रास्ते अलग करके चुनावी मैदान में अकेले दम भर रहा है उसके सियासी दलों में बागियों का सैलाब आ गया हैं। बिहार विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ एनडीए और विपक्षी महागठबंधन में शामिल दलों के कारण बागियों की संख्या बढ़ गई हैं। ऐसे में एनडीए और महागठबंधन के लिए बागी बड़ा सिरदर्द बन गए हैं। समझौते में कम सीट मिलने और दावेदारों की भारी संख्या ने खासतौर से बीजेपी,  जेडीयू,  आरजेडी और कांग्रेस के लिए नई चुनौती खड़ी कर दी है हालांकि बीजेपी बागियों को चुनौती मानने से इंकार कर रही हैं।
वही महागठबंधन में भी बागी कांग्रेस और आरजेडी की नैया को डुबाने की कसम खा चुके हैं। जहां जेडीयू से बागी प्रमोद सिंह भभुआ से तोल ठोकने का मन बना चुके है वही दुसरी तरफ कांग्रेस से बागी अशोक पांडेय ने भी भभुआ से बड़े दलों को टक्कर देने को तैयार हैं। हालिंकि आरजेडी बागियों को कोई समस्या नही मानती हैं।

ये तीनों राज्य के मुख्य दल हैं। इसमें भाजपा-जदयू में गठबंधन होने और भाजपा को वीआईपी तो जदयू को हम को अपने हिस्से की सीटें देने से इनके लिए सीटों की संख्या कम बची है। ऐसे में दोनों दलों में करीब-करीब हर सीट पर दावेदार हैं, जबकि इनके अपने हिस्से में महज 115 और 110 सीटें ही मिली हैं। जाहिर तौर पर करीब सौ सीटें ऐसी हैं जहां कई दावेदार टिकट का इंतजार कर रहे थे। इसी तरह आरजेडी को वाम दलों और कांग्रेस से समझौते के कारण महज 144 सीटें ही मिली हैं और जो सीटें सहयोगियों के कोटे में गई हैं उन सीटों पर पार्टी के दावेदार खफा हैं। अब देखना ये होगा कि जिस समीकरण को बागी बिगाड़ेगें उस समीकरण को सियासी दल कैसे ठीक करते हैं।

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