अतीक और अशरफ को कैद होगी या फांसी? जानिए, फैसला किसके पास

उत्तर प्रदेश –माफिया अतीक अहमद और उसके पूरे परिवार पर 161 मुकदमे दर्ज हैं और ये उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा माफिया परिवार है। लेकिन किसी को भी अभी तक एक भी मामले में सज़ा नहीं हुई है।अतीक अहमद पर पहला मुकदमा 1979 में प्रयागराज के खुल्दाबाद थाने में दर्ज हुआ था। ये मुकदमा हत्या का था। 1979 से 2023 तक 44 साल में अतीक अहमद पर 100 मुकदमे हैं लेकिन सजा किसी में नहीं हुई। अतीक अहमद के भाई, सभी बेटे और पत्नी, हर किसी पर मुकदमे दर्ज हैं। आज प्रयागराज की नैनी सेंट्रल जेल में माफिया अतीक अहमद, उसका बेटा अली अहमद और अतीक का भाई खालिद अज़ीम उर्फ अशरफ, यानी अतीक का पूरा परिवार एक साथ मौजूद होगा। बेटे पर 5 लाख का इनामी भी है ।

2006 के किडनैपिंग केस में आना है फैसलाआपको बता दें कि प्रयागराज की एमपी/एमएलए कोर्ट कल 2006 के अपहरण मामले में सज़ा सुना सकती है। प्रयागराज में 2005 में बीएसपी विधायक राजू पाल की हत्या कर दी गई थी। उमेश पाल हत्या के चश्मदीद गवाह थे। उमेश पाल का आरोप था कि अतीक, अतीक के भाई और उसके गुर्गों ने अपहरण कर उसका बयान बदलाया था। इसके बाद उमेश पाल की अभी पिछले महीने हत्या हो गई, लेकिन उमेश के दर्ज कराए मुकदमे में कल फैसला आने की उम्मीद है। इसी फैसले के दौरन अदालत में पेशी के लिए ही अतीक को साबरमती और अशरफ को बरेली जेल से प्रयागराज लाया जा रहा है। 2020 से बरेली जेल में अशरफ तो 2019 से साबरमती गुजरात में बंद है अतीक अहमद लेकिन इन दोनों भाइयों की अदालत में कल सुनवाई है ।कहते हैं जब ये दोनो भाई चरम पर थे , बड़ी बड़ी और महंगी महंगी गाड़ियों का शौकीन था कभी उसके काफिले में रेंज रोवर तो कभी इंडोवर तो कभी फॉर्च्यूनर थी शामिल रहती थीं।

 

 

 

 

 

 

 

 

गौरतलब है कि 2005 में राजू पाल हत्या मामले में उमेश पाल ने अतीक अहमद के खिलाफ गवाह दी थी। इसको लेकर 2006 में उसका अपहरण हो गया था। राजू पाल प्रयागराज में नेता थे। 2002 के विधानसभा चुनाव में राजू पाल ने प्रयागराज पश्चिम सीट से अतीक अहमद के खिलाफ चुनाव लड़ा, लेकिन वह हार गए। 2004 में यही सीट अतीक के लोकसभा चुनाव में फूलपुर सीट से सांसद बनने और विधायकी से इस्तीफे के बाद खाली हो गई। 2005 को राजू पाल अस्पताल से घर लौट रहे थे ,तब उनकी कार पर ताबड़तोड़ गोलियां मारकर हत्या कर दी गई। इसी मामले में उमेश पाल ने गवाही दी थी।
इसमें करीब 17 साल लग गए थे, लेकिन 28 मार्च को फैसले से ठीक 31 दिन पहले उमेश पाल की गोली मारकर हत्या कर दी गई। उमेश पाल अपहरण केस की सुनवाई के बाद ही घर लौट रहे थे। देश से लेकर प्रदेश की सभी की निगाहें कल न्यायालय पर टिकी है ,कि आखिर इस हत्या का अंजाम क्या होगा उम्र कैद या फिर फांसी।

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