ऐसी होती है हैवान की हंसी ! अंकिता भंडारी के हत्यारे का ‘हीरो वाला पोज’.. दरिंदे को कम लगी उम्रकैद ?

उत्तराखंड के कोटद्वार कोर्ट ने 30 मई 2025 को अंकिता भंडारी हत्याकांड में मुख्य आरोपी पुलकित आर्य, सौरभ भास्कर और अंकित गुप्ता को उम्रकैद की सजा सुनाई। लेकिन इस गंभीर फैसले के दौरान पुलकित आर्य की मुस्कान ने पूरे देश को झकझोर दिया। एक निर्दोष युवती की हत्या के बाद भी उसका यह रवैया न्याय और संवेदनाओं का उपहास प्रतीत हुआ।
कैसे हुई अंकिता भंडारी की हत्या ?
19 वर्षीय अंकिता भंडारी, पौड़ी जिले के यमकेश्वर में स्थित वनंत्रा रिजॉर्ट में रिसेप्शनिस्ट के रूप में कार्यरत थीं। सितंबर 2022 में, रिजॉर्ट के मालिक पुलकित आर्य ने अंकिता पर कुछ मेहमानों को “विशेष सेवाएं” प्रदान करने का दबाव डाला। अंकिता द्वारा इनकार करने पर, पुलकित और उसके साथियों ने उसे ऋषिकेश के चीला नहर में धकेल दिया, जिससे उसकी मृत्यु हो गई। घटना के कुछ दिनों बाद, आरोपियों ने अपराध स्वीकार किया और अंकिता का शव बरामद हुआ।
न्यायालय का निर्णय: दोषियों को उम्रकैद की सजा
कोटद्वार की अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश रीना नेगी ने पुलकित आर्य, सौरभ भास्कर और अंकित गुप्ता को भारतीय दंड संहिता की धाराओं 302 (हत्या), 201 (साक्ष्य नष्ट करना), 354A (महिला की मर्यादा का अपमान) और अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम के तहत दोषी ठहराया। सभी दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई और प्रत्येक पर ₹50,000 का जुर्माना भी लगाया गया।
मुस्कान का मतलब: क्या यह न्याय का उपहास है?
सजा सुनाए जाने के बाद पुलकित आर्य की मुस्कान ने लोगों को आक्रोशित कर दिया। एक निर्दोष युवती की हत्या के बाद भी उसका यह रवैया न्याय और संवेदनाओं का उपहास प्रतीत हुआ। सोशल मीडिया पर लोग पूछ रहे हैं: “क्या यह हंसी हमारे न्याय प्रणाली की कमजोरी को दर्शाती है?”
कोर्ट में हँसता पुलकित – मानसिक दरिंदगी की झलक
विशेषज्ञों की मानें तो जब अंकिता भंडारी हत्याकांड के दोषी पुलकित आर्य को उम्रकैद की सज़ा सुनाई गई, तब उसका मुस्कुराना किसी सामान्य प्रतिक्रिया से कहीं ज़्यादा खतरनाक संकेत था। यह सिर्फ एक हँसी नहीं थी, बल्कि एक ऐसी मानसिकता का पर्दाफाश थी जो न तो अपराध का बोझ महसूस करती है और न ही इंसानियत की कोई कदर रखती है।
मानसिक स्थिति क्या दर्शाती है?
साइकोपैथिक प्रवृत्ति: अपराध के बाद पछतावे की जगह हँसी – यह दर्शाता है कि पुलकित के भीतर किसी प्रकार की सहानुभूति या ग्लानि नहीं है।
नार्सिसिस्टिक सोच: रसूख और सत्ता के नशे में चूर होना, कोर्ट में भी खुद को ‘अपराध से ऊपर’ मानना – यह बताता है कि वह अपने किए को गलत मानने को तैयार नहीं।
संवेदनहीन मानसिकता: अंकिता की मौत उसे एक घटना भर लगती है, न कि किसी की बर्बादी।
पुलकित की यह हँसी, अंकिता की हत्या से भी बड़ा संदेश देती है – कि कुछ दरिंदे सिर्फ शरीर से नहीं, दिमाग और आत्मा से भी वहशी होते हैं। ऐसे अपराधी सिर्फ कानून के नहीं, समाज और मानसिक स्वास्थ्य की चेतावनी भी हैं।
परिवार की प्रतिक्रिया: मृत्युदंड की मांग
अंकिता की मां, सोनी देवी ने दोषियों के लिए मृत्युदंड की मांग की है। उन्होंने जनता से अपील की है कि वे न्याय की इस लड़ाई में उनके साथ खड़े रहें और दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाने में सहयोग करें।
क्या न्याय प्रणाली में बदलाव की आवश्यकता है?
अंकिता भंडारी हत्याकांड ने न केवल एक निर्दोष जीवन की क्षति को उजागर किया, बल्कि न्याय प्रणाली की चुनौतियों को भी सामने लाया। दोषियों की सजा के बावजूद, उनके रवैये ने यह सवाल उठाया है कि क्या हमारी न्याय प्रणाली में ऐसे अपराधियों के लिए और कठोर प्रावधानों की आवश्यकता है?