अमित शाह को नीतीश का धोखा सोने नहीं दे रहा।

अमित शाह को नीतीश का धोखा सोने नहीं दे रहा।

नीतीश का धोखा

जर्नलिस्ट – हरिकेश कुमार
पूर्णिया के दौरे पर गए अमित शाह ने नीतीश कुमार को घेरते हुए आरोप लगाया कि कांग्रेस और राजद से हाथ मिला कर उन्होंने भाजपा को धोखा दिया है , नीतीश कुमार प्रधान मंत्री बनना चाहते हैं और इस लिए उन्होंने भाजपा को धोखा दिया है , अमित शाह ने दावा करते हुए कहा कि 2025 के अगले विधान सभा चुनाव में भाजपा पूर्ण बहुमत से सरकार बनाएगी साथ ही 2024 के लोक सभा चुनाव में भी जनता नीतीश कुमार के साथ इस गठबंधन को उखाड़ फेंकेगी
उखाड़ने और फेकने की बात अमित शाह अक्सर करते हैं दिल्ली , बंगाल और पंजाब के चुनावों में भी ऐसे ही बयान अमित शाह ने दिए थे और इन चुनावों में धर्म की राजनीति भी करते नज़र आए थे ध्रुवीकरण अमित शाह का मुख्य हथियार है जिसके बल पर भाजपा जीत की आधार शिला रखती है
अमित शाह जब ये कहते हैं कि दूसरी पार्टियाँ धोखा देती हैं तब वो खुद के गिरेबान में झांकना भूल जाते हैं ऐसा लगता है , आश्चर्य होता है कि पार्टियों को तोड़ने , ख़रीदने और विधायकों सांसदों को धमकी दे कर अपने ख़ेमे लाने की रणनीति को वो किस आधार पर उचित और न्याय परक कहते हैं , शिवसेना हो कांग्रेस हो , TMC हो या फिर सपा से लेकर खुद नीतीश कुमार के विधायक रहे हों सभी की ख़रीद फ़रोख़्त और यहाँ तक की सरकारों को गिराने से ले कर जम्मू में महबूबा मुफ़्ती के साथ सरकार बनाने तक की क़वायद खुद इनकी देख रेख में हुई है , तो फिर अन्य दलों पर आरोप कैसे ।


नीतीश के बारे में जग ज़ाहिर है की वो पलटू हैं और जब भी अवसर मिलता है पलट कर दूसरे ख़ेमे में पहुँच जाते हैं उन्हें पद पर बने रहना है और ये बात अब कोई छिपी हुई नहीं है , तो फिर अमित शाह खुद को अंधेरे में रखे हुए थे ऐसा क्यूँ , क्यूँकि बिहार में राजद के पास सीटें ज़्यादा थी और अगर नीतीश मुख्यमंत्री बनना चाहते तो शुरू में ही उधर का रुख़ कर सकते थे ऐसे में भाजपा की बिहार पर शासन की मंशा धरी की धरी रह जाती और साथ ही एक बड़ा राज्य भी भाजपा के हाथ से निकल जाता , दबाव की राजनीति से पल्ला झाड़ते हुए नीतीश ने पाला बदल लिया तो ये बात अमित शाह एण्ड पार्टी को नागवार गुजरी साथ ही अपनी चालों पर सेंध लगी तो सहसा समझ नहीं आया
अब कौन किस पर भारी पड़ता है आगामी चुनावों की रणनीति कैसे बनेगी कौन कौन किस ख़ेमे में रहेगा अभी सिर्फ़ अटकलें है , बहुत सारे जोड़ तोड़ बाक़ी हैं और बहुत सारी गणितीय व्याख्या होनी है लेकिन फिर भी 2024 के चुनावों में दिलचस्पी बढ़ती जा रही है।


नए मोर्चे और उन मोर्चों पर भाजपा के तथाकथित चाणक्य और स्वयंभू नेता कौन सी चालें चलते हैं देखना होगा

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