फांसी की सजा से बचने के लिए शबनम के पास बाकी है अभी इतने विकल्प, जानिए क्या

अमरोहा
प्रेमी के साथ मिलकर अपने ही परिवार के 7 लोगों की हत्या करने वाली शबनम ने राज्यपाल आनंदीबेन पटेल के पास दया याचिका भेजी है। शबनम को उम्मीद है कि शायद उसे इस बार माफी मिल जाए। हालांकि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति के पास से दया याचिका खारिज हो चुकी है लेकिन इस जघन्य हत्याकांड के दोषी शबनम और सलीम के पास अभी भी विकल्प मौजूद हैं।

इस केस में अमरोहा की जिला अदालत ने 2010 में दोनों को फांसी की सजा सुनाई थी। हाईकोर्ट ने भी फांसी की सजा दी थी। 2015 में मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो वहां भी लोअर कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा गया। राष्‍ट्रपति प्रणब मुखर्जी की ओर से भी 11 अगस्‍त 2016 को शबनम की दया याचिका को ठुकरा दिया गया था।

साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट से शबनम की फांसी की पुनर्विचार याचिका भी खारिज हो गई थी। आज शबनम रामपुर जेल में बंद है और अपनी फांसी की सजा का इंतजार कर रही है। अब शबनम से राज्यपाल के माध्यम से राष्ट्रपति के पास अपनी याचिका भिजवाई है तो वहीं उसके बेटे ने भी राष्ट्रपति से मां के लिए दया की गुहार लगाई है। शबनम का बेटा नाबालिग है और मां से मिलने जेल जाता रहता है।

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट से फांसी की सजा मिलने के बाद कोई भी शख्स, विदेशी नागरिक अपराधी के लिए राष्ट्रपति के दफ्तर या गृह मंत्रालय को दया याचिका भेज सकता है। इसके अलावा संबंधित राज्य के राज्यपाल को भी दया याचिका भेजी जा सकती है। राज्यपाल अपने पास आने वाली दया याचिकाओं को गृह मंत्रालय को भेज देते हैं।

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इन दो अपीलों के बाद शबनम के पास फिलहाल उम्मीद बची है कि शायद उसे राष्ट्रपति से राहत मिल जाए। हालांकि अगर राष्ट्रपति रिव्यू पिटिशन में फैसला बरकरार रखते हैं तो शबनम फांसी की सजा पाने वाली आजाद भारत की पहली महिला होगी। उधर शबनम की फांसी के लिए मथुरा की महिला जेल में तैयारियां पूरी होने की खबर थी लेकिन जेल प्रशासन का कहना है कि फिलहाल उसके पास ऐसी जानकारी नहीं है।

शबनम का डेथ वारंट का कभी भी जारी हो सकता है और शबनम को किसी भी वक्त फांसी पर लटकाया जा सकता है। रामपुर जेल सुपरिटेंडेंट का कहना है कि शबनम को आभास हो गया है कि मौत का फरमान कभी भी आ सकता है। आजकल वह जेल में वह चुपचाप रहती है। किसी से ज्यादा बात नहीं करती है। इससे पहले वह जेल की महिलाओं को सिलाई सिखाती थी और उनके बच्चों को भी पढ़ाती थी।

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