चुनाव में चला है मोदी का जादू, अब चलेगा मोदी का “ब्रम्हास्त्र”

भारत में अब तक नरेंद्र मोदी समेत 15 प्रधानमंत्री देश की गद्दी संभाल चुके हैं लेकिन इनमें से कुछ ही प्रधानमंत्री के कार्यकाल को एक युग की संज्ञा दी जाती है मसलन भारतीय राजनीति का नेहरू युग , इंदिरा युग । 2019 के लोकसभा चुनाव परिणामों से अब यह स्पष्ट हो गया है कि देश में अब एक नए दौर की , नये युग की शुरुआत हो गई है जिसे मोदी युग की संज्ञा दी जा सकती है। हालांकि यह कहा जा सकता है कि नरेंद्र मोदी तो पूर्ण बहुमत के साथ 2014 में ही देश के प्रधानमत्री बन चुके थे तो फिर 2019 से इसकी शुरुआत कैसे मानी जा सकती है ? चलिए आपको बताते हैं उन वजहों के बारे में जिसकी वजह से 2019 को मोदी युग की शुरुआत के तौर पर देखा जा रहा है।

नेहरू , इंदिरा के बाद अब मोदी युग की हुई शुरुआत

2014 में आडवाणी समेत कई वरिष्ठ नेताओं की नाराजगी के बीच नरेंद्र मोदी ने देश की बागडोर संभाली थी। उस समय मंच पर मोदी के अलावा भी कई वरिष्ठ नेता मौजूद होते थे और नेतृत्व करने के बावजूद कहीं न कहीं मोदी को उनके सम्मान में सर झुकाना ही पड़ता था । 2014 के उस हालात की तुलना जवाहर लाल नेहरू के प्रधानमंत्री के रूप में पहले कार्यकाल से की जा सकती है जब प्रधानमंत्री होने के बावजूद नेहरू को अन्य वरिष्ठ या समकक्ष नेताओं के प्रोटोकॉल या सम्मान का ख्याल भी रखना पड़ता था और कई बार न चाहते हुए भी उनकी बात माननी पड़ती थी।। बाद में धीरे-धीरे यह परिस्थिति बदलती गई और सरकार से लेकर पार्टी तक नेहरू हर मायने में सर्वे-सर्वा बनते चले गए। शुरुआती कार्यकाल में इंदिरा गांधी भी वरिष्ठ नेताओं के साये तले दबी थी और उन्हे तो गुंगी गुड़िया तक कहा जाता था लेकिन बाद में सबने देखा कि पार्टी से लेकर सरकार तक इंदिरा गांधी की पकड़ इतनी मजबूत हो गई कि कोई उनके सामने बोलने की हिम्मत भी नहीं कर पाता था। 1971 के 48 सालों बाद देश की जनता ने किसी प्रधानमंत्री को पूर्ण बहुमत के साथ दोबारा से सरकार बनाने का मौका दिया है । इसलिए अपने दूसरे कार्यकाल में मोदी भी एक मजबूत नेता के तौर पर उभर कर सामने आए हैं , पार्टी में भी , सरकार में भी और एनडीए में भी।  भारत की जनता के इस जनादेश को इस मायने में भी समझा जा सकता है कि 2019 के नरेंद्र मोदी को न तो आज़ादी के आंदोलन की विरासत का सहारा था जैसा कि जवाहर लाल नेहरू को मिला करता था और न ही उनके पास इंदिरा गांधी की तरह पिता नेहरू की विरासत थी। इस मायने में मोदी की जीत एक इतिहास बनाती हुई नजर आती है।

2019 की जीत सिर्फ मोदी की जीत है

2014 में मनमोहन सरकार की नाकामी , भ्रष्टाचार , मंहगाई , राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे कई मुद्दों को उठाकर बीजेपी सत्ता में आई थी लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में मुद्दा सिर्फ और सिर्फ एक था – नरेंद्र मोदी। विरोधी दल जहां मोदी हटाओ का नारा दे रहे थे वहीं बीजेपी सहित एनडीए के तमाम घटक दल मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के नाम पर वोट मांग रहे थे । किसी जमाने में प्रधानमंत्री पद के दावेदार रहे नीतीश कुमार हो या पिछले 5 सालों से लगातार मोदी की आलोचना कर रहे शिवसेना सुप्रीमो उद्धव ठाकरे , ये तमाम नेता मंच से मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के नाम पर अपने-अपने उम्मीदवारों के लिए वोट मांगते नजर आए।

गदगद बीजेपी, नतमस्तक एनडीए और पस्त विरोधी

2019 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने अपने दम पर 303 सीट हासिल करके तमाम तरह की अटकलों को विराम दे दिया है । बीजेपी के तमाम दिग्गज यह मान रहे हैं कि 2019 की जीत मोदी की जीत है। जीत के बाद जिस अंदाज में मोदी और शाह आशीर्वाद लेने के लिए पार्टी के दिग्गज नेता लाल कृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी के घर पहुंचे , उसने मोदी को पार्टी के निर्विवाद नेता के तौर पर फिर से ज्यादा प्रभावशाली अंदाज में स्थापित कर दिया है। मोदी अब सिर्फ बीजेपी के ही नहीं एनडीए के भी निर्विवाद नेता के तौर पर स्थापित हो गए हैं। चुनावी नतीजें आने से पहले ही एग्जिट पोल के बाद हुई एनडीए बैठक में यह साफ हो गया था कि बीजेपी के तमाम सहयोगी दल मोदी के जलवे से प्रभावित है । नीतीश कुमार हो या उद्धव ठाकरे या प्रकाश सिंह बादल या एनडीए के अन्य घटक दलों के नेताओं ने जिस अंदाज में मोदी का स्वागत किया वह अपने आप में काफी कुछ बयां कर रहा था। इस बैठक के माध्यम से बीजेपी ने साफ-साफ यह संकेत दे दिया कि नरेंद्र मोदी बीजेपी के ही नहीं बल्कि एनडीए के भी सर्वमान्य नेता है , एकमात्र नेता है। एनडीए के अंदर से भी अब मोदी को कोई चुनौती नहीं मिलेगी।

गठबंधन और मोर्चा बनाकर मोदी को घेरने की रणनीति हो या फिर भ्रष्टाचार-बेरोजगारी जैसे मुद्दों के सहारे मोदी पर हमला करने की योजना हो ,नतीजों ने दिखा दिया कि विरोधी दलों के सारे हथियार फेल हो गए और जनता ने मोदी हटाओं की बजाय मोदी है तो मुमकिन है के नारे पर ज्यादा भरोसा किया। बीजेपी ने लगभग 17 राज्यों में 50 फीसदी से ज्यादा वोट हासिल किया वहीं लंबे समय तक देश पर राज करने वाली कांग्रेस का इस बार 18 राज्यों में खाता तक नहीं खुल पाया। जनता ने कांग्रेस को इतनी सीट भी नहीं दी कि उसे लोकसभा में मुख्य विपक्षी पार्टी का दर्जा हासिल हो सके। कांग्रेस को 2019 के लोकसभा चुनाव में 11.9 करोड़ के लगभग मतदाताओं का मत हासिल हुआ वहीं बीजेपी 22.6 करोड़ वोट प्राप्त करके कांग्रेस से बहुत ज्यादा आगे पहुंच गई है , अन्य राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों की तो बात ही छोड़िए। मोदी मैजिक का अंदाजा आप इन आंकड़ो से भी लगा सकते हैं कि 2009 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को केवल 8 करोड़ मतदाताओं का ही मत मिल पाया था जिसे मोदी ने 2014 में 17.16 करोड़ तक और 2019 में 22.6 करोड़ तक पहुंचा दिया।

लोकसभा चुनाव परिणाम ने यह भी साबित किया कि विरोधी देश की जनता के चुनावी मूड को समझ ही नहीं पा रहे थे । वो जितना ज्यादा मोदी हटाओ के नारे लगा रही थी , देश की जनता उससे ज्यादा तेजी से अपने आपको मोदी के साथ जोड़ती जा रही थी। विरोधी दल गठबंधन और जातीय अंक गणित के सहारे मोदी को हराने का मंसूबा पाले बैठी थी तो वहीं अमित शाह इस गोलबंदी को तोड़ने के लिए 3 साल पहले ही राज्यों में 50 फीसदी वोट हासिल करने का लक्ष्य निर्धारित कर चुके थे। नतीजों ने यह साबित कर दिया कि विरोधी दलों की जातीय गोलबंदी फेल हो गई और अमित शाह की रणनीति कामयाब हो गई और देश की जनता ने सिर्फ मोदी के नाम पर वोट किया।

मोदी के नाम पर दीदी के गढ़ पश्चिम बंगाल में 40.3 फीसदी वोट के साथ बीजेपी को 18 सीटों पर और ओडिशा में 38 फीसदी से ज्यादा वोट के साथ 8 सीटों पर विजय हासिल हुई। पूर्वोत्तर में भी मोदी का जादू सर चढ़ कर बोला । हालांकि केरल का किला अभी भी बीजेपी के लिए अभेद्य बना हुआ है जहां बीजेपी को 13 फीसदी के लगभग वोट तो हासिल हुए लेकिन उसका खाता नहीं खुल पाया । दिल्ली , गुजरात , हिमाचल प्रदेश ,हरियाणा और राजस्थान में सभी सीटें जीतकर बीजेपी ने विरोधियों का सफाया कर दिया। बिहार , महाराष्ट्र , कर्नाटक में भी मोदी विरोधी लगभग सफाए की कगार पर ही आ गए।

युवा मंत्रिमंडल – केंद्र से लेकर राज्यों तक मोदी की छाप  

कहने को कहा जा सकता है कि 2014 से 2019 तक मोदी ने अपने मन के मुताबिक सरकार बनाई और चलाई भी । कुछ हद तक सरकार चलाने के मामले में यह सही हो सकता है लेकिन मंत्रिमंडल के गठन के मामले में नरेंद्र मोदी को भी कई नेताओं की वरिष्ठता का ध्यान रखना पड़ा था। अब अपने दम पर 303 के आंकड़े को हासिल करने के बाद तो मोदी के लिए ये तमाम बंदिशें भी टूट चुकी है। अब नरेंद्र मोदी पूरी तरह से अपने पसंद का मंत्रिमंडल बनाएंगे। मोदी युवा चेहरों पर ज्यादा ध्यान देंगे । मतलब बिल्कुल साफ है कि कुछ और वरिष्ठ नेताओं को अब ससम्मान मार्गदर्शक की भूमिका ही स्वीकार करनी होगी और परफॉर्म करने का दायित्व युवा मंत्रियों के कंधों पर होगा जिन्हे महत्वपूर्ण मंत्रालयों से नवाजा जाएगा। अमित शाह के माध्यम से संगठन पर पहले से ही प्रधानमंत्री मोदी की पूरी पकड़ है । अगर शाह मोदी के मंत्रिमंडल में जाते भी हैं तो बीजेपी अध्यक्ष के रूप में जो भी व्यक्ति पंचम तल पर बैठेगा , वह पूरी तरह से मोदी-शाह के निर्देश पर ही काम करेगा। युवा मंत्रियों की केबिनेट पर भी मोदी की ही छाप होगी। बात बिल्कुल साफ है पार्टी के साथ-साथ तमाम बीजेपी यहां तक की सहयोगी दलों द्वारा शासित राज्य सरकारों से लेकर केन्द्र की सरकार तक हर जगह सिर्फ मोदी का जलवा होगा , सिर्फ नरेंद्र मोदी का नाम होगा और इसी दौर के लिए युग शब्द बनाया गया है । इसलिए यह कहा जा रहा है कि अब वास्तव में देश में मोदी युग की आधिकारिक शुरुआत हो गई है ।

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